वर्ष 2018 लोन संवितरण घोटाला : एमपी हाईकोर्ट द्वारा पीएनबी अधिकारियों को जमानत न देने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार किया

LiveLaw News Network

28 April 2020 3:15 AM GMT

  • वर्ष 2018 लोन संवितरण घोटाला : एमपी हाईकोर्ट द्वारा पीएनबी अधिकारियों को जमानत न देने मामले में सुप्रीम कोर्ट ने  हस्तक्षेप करने से इंकार किया

    सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के 19 मार्च के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है, जिसमें वर्ष 2018 के लोन घोटाले में फंसे पंजाब नेशनल बैंक के कर्मचारियों को जमानत देने से इंकार कर दिया गया था। इन सभी पर आरोप है कि इन्होंने राज्य के कोयला व्यापारियों की मदद की थी, जिस कारण वह सार्वजनिक धन के करोड़ों रुपये लेकर फरार हो गए थे।

    एमपी हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि-

    '' इस न्यायालय के सामने कई ऐसे मामले आ रहे हैं, जिनमें बैंक के अधिकारी गिरवी रखी गई संपत्ति के सत्यापन के बिना व्यावसायिक टायकून को ऋण मंजूर कर देते हैं। बैंक अधिकारियों की संलिप्तता के बिना, उन सभी के लिए यह संभव नहीं है कि वह जनता के पैसे को किसी अन्य उद्देश्य के लिए बेइमानी से निकाल सकें। बैंक घाटे में जा रहे हैं और कुछ बैंक बंद हो गए हैं। इस न्यायालय की राय में, यदि आवेदकों को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो इससे जनता में एक गलत संदेश जाएगा।''

    शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज कर दिया क्योंकि उन्हें वापस लेने की अनुमति मांगी गई थी। न्यायालय ने कहा कि-''हम इस विशेष अनुमति याचिका में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हैं।''

    उज्जैन में पीएनबी की कंथल शाखा के तत्कालीन मुख्य प्रबंधक और वरिष्ठ प्रबंधक ने मिलकर साजिश रची और जमानत के तौर पर रखी गई अचल संपत्तियों का अति-मूल्यांकन करके बैंक में चार सौ लाख रुपये के सार्वजनिक धन का गबन कर दिया था। वही इसके लिए फंड को भी डाइवर्ट कर दिया गया था अर्थात कोयले के स्टॉक को बेच दिया गया और उनकी आय को बैंक में जमा नहीं किया गया था।

    भोपाल स्थित सीबीआई कार्यालय में वर्ष 2018 में कोयला ट्रेडिंग कंपनियों के बीच कैश-क्रेडिट फंड के रोटेशन के बारे में शिकायत मिली थी। कंपनी ने उक्त शाखा से ऋण और नकद-ऋण की सुविधाएं लीं परंतु इस धन से अचल संपत्तियां खरीद ली, ब्याज का भुगतान कर दिया और बाकी पैसे की नकद निकासी कर ली थी।

    बैंक की धनराशि से खरीदी गई इन संपत्तियों को अन्य कामों के लिए कैश-क्रेडिट लिमिट/ ऋण लेने के लिए फिर से बैंक के पास ही गिरवी रख दिया गया था। इसके लिए यह तौर-तरीका अपनाया गया था कि उधारकर्ता अलग-अलग संस्थाओं के नाम पर जाली दस्तावेज बनाकर बैंक से धन एकत्र करता था और अपनी कंपनियों या एक ही समूह द्वारा नियंत्रित कंपनियों को धनराशि देने में कामयाब रहता था।

    इस वर्ष 24 फरवरी को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम(Prevention of Corruption Act) की धारा 13 (2) और 13 (1) (डी) और आईपीसी की धारा 409, 420, 467, 468, 471, 120 बी के तहत इन अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था।

    इन सभी को जमानत देने से इनकार करते हुए, एमपी हाईकोर्ट ने कहा था कि

    ''इन्होंने मैसर्स अरिहंत कोल कॉरपोरेशन के प्रोपराइटर नरेंद्र प्रजापति के साथ साजिश रची और मैसर्स अरिहंत कोल कॉरपोरेशन की प्रोपराइटर श्रीमती आशा जैन के लिए 400 लाख रुपये की कैश-क्रेडिट लिमिट की सिफारिश की और मंजूरी दे दी। आवेदकों के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने अपनी मंजूरी की शक्ति से परे जाकर कैश-क्रेडिट लिमिट को मंजूरी दी थी।

    आवेदकों की पूर्व-अनुमोदन की कार्रवाई में भी अनियमितताएं पाई गई थी। ऋण प्रस्ताव में फर्म के जिस व्यावसायिक परिसर का उल्लेख किया गया था,वास्तव में बैंक अधिकारियों ने उस जगह की बजाय किसी अन्य जगह का दौरा किया था या जाकर देखा था। स्पॉट सत्यापन रिपोर्ट में इस बात का कोई उल्लेख नहीं था कि वहां पर कोयले का कितना स्टॉक उपलब्ध था।

    11.7.2013 को आवेदकों द्वारा किया गया पूर्व-अनुमोदित दौरा भी झूठा पाया गया था या वो उस दिन दौरा करने गए ही नहीं थे। इसलिए बैंक अधिकारियों ने जानबूझकर उस अनिवार्य पूर्व-अनुमोदन दौरे को नहीं किया था और केवल कागज का सत्यापन दिखा दिया गया था।''

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि

    "जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने चालान तैयार किया और आवेदकों को अदालत में पेश होने के लिए नोटिस जारी किया था। आवेदक न्यायालय के समक्ष पेश हुए और सीआरपीसी की धारा 439 के तहत आवेदन दायर किया था। परंतु 24 फरवरी 2020 को सीबीआई के विशेष न्यायाधीश ने अपने आदेश में इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया था। इसलिए सीआरपीसी की धारा 439 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष वर्तमान आदेवदन दायर किया गया था।''

    हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि-

    ''इस अदालत ने पहले ही सह-अभियुक्त नरेंद्र प्रजापति की जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। वर्तमान आवेदकों की मदद के बिना सह-अभियुक्त नरेंद्र प्रजापति बैंक के धन को डाइवर्ट नहीं कर सकता था। जांच के बाद आवेदक, नरेंद्र प्रजापति और फर्म के अन्य निदेशक/ मालिकों के बीच साजिश पाई गई थी।

    जाली दस्तावेज बनाकर जनता के पैसे का गबन किया गया और उसका उपयोग दूसरे कामों के लिए किया गया। इसलिए, आवेदक जमानत देने के हकदार नहीं हैं ... यह सही है कि जांच के दौरान आवेदकों को गिरफ्तार नहीं किया गया था, लेकिन जांच के बाद उनके खिलाफ पर्याप्त सामग्री एकत्र की गई है ... चूंकि अन्य मामलों में जांच अभी भी जारी है और अन्य आरोपी व्यक्तियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। इसलिए इस स्तर पर जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है।''

    आदेश की कॉपी डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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