INX मीडिया : चिदंबरम की ED केस में अग्रिम जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की, कहा हो सकती है जांच प्रभावित
LiveLaw News Network
5 Sept 2019 11:01 AM IST
INX मीडिया मामले में जस्टिस आर बानुमति और जस्टिस ए एस बोपन्ना की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। गुरुवार को अपना फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि जांच के इस चरण पर उन्हें अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती। ये अग्रिम जमानत के लिए फिट केस नहीं है और अगर इस समय जमानत दी जाती है तो केस की जांच प्रभावित हो सकती है।
पीठ ने कहा कि मनी लॉंड्रिंग का केस अलग श्रेणी का अपराध है और इसे आम अपराध की तरह नहीं देखा जा सकता क्योंकि इसके तार कई देशों से जुड़े होते हैं। ऐसे में एजेंसी को अपने तरीके से जांच करने का अधिकार है।
पीठ ने चिदंबरम की ओर से उन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि कोर्ट केस डायरी या एजेंसी की जांच की सील कवर रिपोर्ट नहीं देख सकता। पीठ ने कहा कि ट्रायल शुरू होने से पहले भी कोर्ट केस डायरी दे सकता है और सील कवर नोट भी देख सकता है।
हालांकि पीठ ने कहा कि उसने सील कवर नोट नहीं देखा है क्योंकि उसकी टिप्पणियों से केस पर प्रभाव पड़ सकता है। पीठ ने कहा कि चिदंबरम नियमित जमानत याचिका दाखिल कर सकते हैं। पीठ ने ये भी कहा कि ये असाधारण मामला नहीं है।
पीठ 29 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट के 20 अगस्त के फैसले के खिलाफ पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा दायर याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया था जिसमें उन्हें अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था।
कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को निर्देश दिया था कि वह उसके द्वारा एकत्रित सामग्री को तीन दिनों के भीतर सीलबंद कवर में दाखिल करे। पीठ ने 5 सितंबर को आदेश के लिए मामला सूचीबद्ध किया था और स्पष्ट किया कि तब तक कांग्रेसी नेता को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण जारी रहेगा।
ईडी के इस रुख का मुकाबला करने के लिए कि चिदंबरम असहयोगी रहे हैं, उनके वकीलों ने प्रस्तुत किया था कि उनसे कोई महत्वपूर्ण सवाल नहीं किया गया था और उन्होंने अदालत से एजेंसी द्वारा एकत्र की गई जांच और सामग्रियों के प्रतिलेख को तलब करने का आग्रह किया। इस मामले में चार दिनों तक मैराथन सुनवाई हुई जो 23 अगस्त को शुरू हुई।
अपनी दलीलें जारी रखते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि जांच किसी भी एजेंसी का विशेषाधिकार है। न्यायालय को जांच के तरीके में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता के संबंध में जांच एजेंसी के फैसले को टाल दिया जाना चाहिए।
"जिम्मेदार अधिकारियों को पता है कि बिना थर्ड डिग्री के जानकारी कैसे निकाली जाए। संबंधित जानकारी को आरोपी से निकालना एक कला है। कुछ मामलों में चीजों को प्रकट नहीं करना चाहिए," उन्होंने कहा था।
चिदंबरम के वकीलों की दलीलों के जवाब में कि HC ने अपराध को गंभीर माना है, SG ने कहा था कि सजा की मात्रा गंभीरता का संकेतक नहीं है। मनी लॉन्ड्रिंग का देश की अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और इसलिए हाई कोर्ट ने अपराध को गंभीर के रूप में सही माना है।
तुषार मेहता ने PMLA के पूर्वव्यापी आवेदन पर तर्क को भी खारिज कर दिया था कि अधिनियम की धारा 8 हमेशा से थी। 2007 में INX लेनदेन के बाद भी अपराध जारी रहा।
जवाब में वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि गिरफ्तारी की मांग अनुचित और गैरवाजिब है। उन्होंने इस दलील को दोहराया था कि HC के न्यायाधीश ने ED द्वारा प्रस्तुत एक सीलबंद कवर नोट की सामग्री को 'कॉपी-पेस्ट' किया।
सिब्बल ने कहा था, " मैंने कभी ऐसा फैसला नहीं देखा जहां एक नोट को कार्यवाही के बाद जज के सामने रखा जाता है, फिर उसी फैसले को दोबारा पेश किया जाता है और फिर इसे अदालत के निष्कर्षों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।"
सिब्बल के बाद, वरिष्ठ वकील ए एम सिंघवी ने इन तर्कों को यह कहते हुए पूरा किया कि चिदंबरम को एक ऐसे अपराध के लिए खोजा जा रहा है जो 2007 में अपराध नहीं था।
आरोप है कि 2007 में केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम ने INX मीडिया के FDI के लिए FIPB अनुमति के लिए फायदा लिया और यह पैसा उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के साथ जुड़ी कंपनियों के माध्यम से निकाला गया।
सीबीआई ने भ्रष्टाचार के आरोपों के संबंध में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक अलग मामला दर्ज किया है। उन्हें सीबीआई ने 21 अगस्त को उनके जोर बाग स्थित आवास से गिरफ्तार किया था और वो सीबीआई हिरासत में है। सीबीआई अदालत के रिमांड आदेश को चुनौती देने वाली याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है।