सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे बसी 48 हजार झुग्गियों को हटाने के आदेश दिए, अदालतों को स्टे देने से रोका 

LiveLaw News Network

3 Sep 2020 5:24 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे बसी 48 हजार झुग्गियों को हटाने के आदेश दिए, अदालतों को स्टे देने से रोका 

    सुप्रीम कोर्ट ने तीन महीने के भीतर नई दिल्ली में 140 किलोमीटर लंबी रेल पटरियों के आसपास की लगभग 48,000 झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने का आदेश दिया है और आगे निर्देश दिया है कि कोई भी अदालत झुग्गी-झोपड़ियों को हटाने पर कोई स्टे न दे।

    शीर्ष अदालत ने आदेश दिया कि

    "सुरक्षा क्षेत्रों में जो अतिक्रमण हैं, उन्हें तीन महीने की अवधि के भीतर हटा दिया जाना चाहिए और कोई हस्तक्षेप, राजनीतिक या अन्यथा, नहीं होना चाहिए और कोई भी अदालत विचाराधीन क्षेत्र में अतिक्रमण हटाने के संबंध में कोई स्टे नहीं देगा।"

    न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने 31 अगस्त को दिए एक आदेश में कहा,

    "यदि कोई अतिक्रमण के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है, जो रेलवे पटरियों के पास किया गया है, तो यह प्रभावी नहीं होगा।"

    यह आदेश एम सी मेहता मामले में पारित किया गया, जिसमें शीर्ष अदालत 1985 के बाद से दिल्ली और उसके आसपास प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर समय-समय पर दिशा निर्देश दे रही है।

    न्यायालय के समक्ष उस दायर हलफनामे पर पीठ ने यह निर्देश पारित किया जिसमें रेलवे द्वारा कहा गया कि दिल्ली क्षेत्र में 140 किमी मार्ग की लंबाई के साथ दिल्ली में झुग्गियों की "प्रमुख उपस्थिति" है।

    रेलवे ने कहा कि इसमें से लगभग 70 किलोमीटर लंबा ट्रैक पटरियों के निकटवर्ती क्षेत्र में मौजूद बड़े झुग्गी झोपड़ी समूहों से प्रभावित है। कोर्ट में बताया गया कि ये कलस्टर रेलवे ट्रैक से सटे क्षेत्र में लगभग 48000 झुग्गियों के हैं।

    रेलवे ने आगे कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, प्रिंसिपल बेंच द्वारा पारित निर्देशों के बाद, अक्टूबर 2018 में, रेलवे संपत्ति से अतिक्रमण हटाने के लिए एक विशेष कार्य बल का गठन किया गया है।

    रेलवे द्वारा अदालत को आगे बताया गया कि "राजनीतिक हस्तक्षेप" अतिक्रमण हटाने के रास्ते में आता है।

    पर्यावरण प्रदूषण (संरक्षण और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के जवाब में रेलवे ने हलफनामा दायर किया है जिसमें कहा गया कि रेलवे नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के अनुपालन में नहीं है।

    इस संबंध में इस पीठ, जिसमें जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी भी शामिल हैं, उस पीठ ने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड, निगमों और राज्य सरकारों जैसे वैधानिक प्राधिकरण के सहयोग से प्लास्टिक की थैलियों और कचरे को पटरियों से हटाने के संबंध में निर्देश दिए।

    पीठ ने कहा,

    "हम निर्देश देते हैं कि तीन महीने की अवधि के भीतर प्लास्टिक की थैलियों, कचरा आदि को हटाने के लिए योजना तैयार हो और दिल्ली और संबंधित नगर निगमों के सभी हितधारकों, अर्थात् रेलवे, सरकार व दिल्ली शहरी आश्रय सुधार ट्रस्ट (DUISB) की अगले सप्ताह बैठक की जाए और तुरंत काम शुरू किया जाए।

    अपेक्षित राशि का 70% रेलवे द्वारा वहन किया जाएगा और 30% राज्य सरकार द्वारा दिया जाएगा। कार्यबल SDMC, रेलवे और सरकारी एजेंसियों द्वारा नि: शुल्क उपलब्ध किया जाएगा और वे इसे एक-दूसरे से चार्ज नहीं करेंगे। SDMC, रेलवे और अन्य एजेंसियां ​​यह सुनिश्चित करेंगी कि उनके ठेकेदार रेलवे पटरियों के किनारे कूड़ा / कचरा ना डालें।"

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