सरकारी संस्थाओं को आईबीसी प्रक्रिया से छूट के खिलाफ संवैधानिक चुनौती को सुप्रीम कोर्ट ने नकारा

LiveLaw News Network

2 Dec 2019 10:52 AM IST

  • सरकारी संस्थाओं को आईबीसी प्रक्रिया से छूट के खिलाफ संवैधानिक चुनौती को सुप्रीम कोर्ट ने नकारा

    मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 87 को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इंसोल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के कुछ प्रावधानों को दी गई संवैधानिक चुनौती को भी नकार दिया।

    सरकारी संस्थाओं को आईबीसी से छूट है क्योंकि ये वैधानिक संस्थाएं या सरकारी विभाग हैं। याचिकाकर्ता हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोड की धारा 3(7) में सरकारी कंपनियों के अलावा सरकारी संस्थाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए।

    इस मामले में संबंधित सरकारी संस्था नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया थी। इस मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा,

    "यह स्पष्ट है कि एनएचएआई एक वैधानिक संस्था है जो केंद्र सकरार के एक अंग की तरह काम करता है और सरकार के कार्यों को अंजाम देता है और उसके कार्य को इंसोल्वेंसी कोड के तहत कोई पेशेवर प्रस्ताव या कोई और निगमित इकाई अपने हाथ में नहीं ले सकती है न ही इस तरह के किसी प्राधिकरण को इंसोल्वेंसी कोड के तहत समेटा जा सकता है। इन सब कारणों से डॉ. सिंघवी की दलील को नहीं माना जा सकता।"

    दूसरी दलील थी कि इंसोल्वेंसी कोड की धारा 5(9) के तहत वित्तीय स्थिति को परिभाषित किया गया है और इस पर तभी गौर किया जा सकता है जब प्रस्ताव के बाद किसी पेशेवर की नियुक्ति होती है न कि इंसोल्वेंसी कोड की धारा 3(12) के तहत 'डिफ़ॉल्ट' का निर्णय किया जाता है। इस दलील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति सूर्य कान्त और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमनियन ने कहा,

    "यह किसी भी तरह से हमें इस निर्णय की और नहीं ले जाता कि इस तरह के प्रावधान स्पष्ट रूप से मनमाना है। जैसा कि पायनियर अर्बन लैंड एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य (2019) 8 SCC 416, मामले में कहा गया कि इंसोल्वेंसी कोड रिकवरी प्रक्रिया के लिए नहीं है।


    कोड स्ट्रेस्ड एसेट की स्थिति में लागू होता है. इसके लिए धारा 5(6) के तहत 'विवाद' की परिभाषा, धारा 3(6) के तहत 'दावा', धारा 3(11) के तहत 'ऋण' और धारा 3(12) के तहत 'डिफ़ॉल्ट' सहित सभी को एक साथ पढ़ने की जरूरत है. जैसा कि स्विस रिबंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूओआई (2019) 4 SCC 17 में कहा गया है कि इंसोल्वेंसी कोड आर्थिक क़ानून के तहत आता है और इसमें संसद को खुली छूट मिली हुई है।"

    गैमन इंजीनियर्स एंड कांट्रेक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के वकील रितिन राय ने कहा कि इंसोल्वेंसी कोड के तहत सीपीसी के आदेश VIIIA जैसी किसी प्रक्रिया को लागू किया जा सकता है ताकि जब उनके मुवक्किल का उपठेकेदार उनके मुवक्किल के खिलाफ इंसोल्वेंसी कोड के तहत जब मामला दायर करता है तो उसका मुवक्किल इसके मुख्य नियोक्ता को इस प्रक्रिया का पक्षकार बना सके और उपठेकेदार सीधे मुख्य नियोक्ता से यह राशि वसूल सके और इस तरह अपने क्लाइंट को इंसोल्वेंसी कोड की गिरफ्त से मुक्त कर सके।

    इस बारे में अदालत ने कहा,

    "इंसोल्वेंसी कोड के तहत मध्यस्थता प्रक्रिया इन तीन में से किसी एक बात से संबंधित है - (a) ऋण की राशि की मौजूदगी से; (b) वास्तु और सेवा की गुणवत्ता से; या (c) प्रतिनिधित्व या वारंटी के उल्लंघ से. ऋण की मौजूदगी करार और अन्य संबंध होने की बात सिद्ध करता है जो कानूनी पक्षकारों के बीच देनदारी निर्धारित करता है. 'C' करार में शामिल पक्षों के बीच किसी प्रतिनिधित्व या वारंटी को नहीं मानने से जुड़ा है. जहां तक वस्तु और सेवा की बात है, तो यह भी दोनों कानूनी पक्षों के बीच करार होने का सबूत है।"

    मोबिलोक्स इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम किरुसा सॉफ्टवेर प्राइवेट लिमिटेड (2018) 1 SCC 353 a मामले में पीठ ने कहा,

    "यह सपष्ट है कि इंसोल्वेंसी कोड में जिसे पक्षकार कहा गया है, उनके बीच विवाद का होना जरूरी है जिसमें सीपीसी के तहत आदेश VIIIA जैसी प्रक्रिया शामिल नहीं है. इसलिए इस दलील को भी खारिज किये जाने की जरूरत है।"

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं


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