बिहार, यूपी में ईंट भट्ठों में 187 बंधुआ मज़दूरों की तत्काल रिहाई के लिए याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
LiveLaw News Network
4 Jun 2020 7:26 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, बिहार के विभिन्न ईंट भट्ठों में 187 बंधुआ मज़दूरों को शीघ्र छुड़ाने और उनके पुनर्वास के लिए दायर जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है। इन बंधुआ मज़दूरों में गर्भवती महिलाएँ और बच्चे भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति रविंद्र भट की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता जाहिद हुसैन की याचिका पर सुनवाई करने के बाद यह नोटिस जारी किया।
याचिका में COVID-19 महामारी के दौरान बंधुआ मज़दूरों को छुड़ाने, उनकी सुरक्षा और पुनर्वास के बारे में दिशानिर्देश जारी करने का भी आग्रह किया है। इस बारे में तेलंगाना हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को जारी दिशानिर्देश का भी ज़िक्र किया गया है।
एनएचआरसी ने कोई कार्रवाई नहीं की
याचिका में कहा गया है कि 8 मई को सिविल सोसायटी संगठन की मदद से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में (एनएचआरसी) में शिकायत दर्ज की गई कि ईंट भट्ठों में 45 परिवारों (187 लोगों) का बंधुआ मज़दूरों के रूप में शोषण हो रहा है। 11 मई को एनएचआरसी ने उत्तर प्रदेश के संभल और बिहार के रोहतास के ज़िला मजिस्ट्रेटों को पत्र लिखकर इसकी जांच करने और 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट देने को कहा।
संभल ज़िला प्रशासन ने इस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। बाद में दबाव डालने पर जांच हुई लेकिन ज़िला प्रशासन ने मज़दूरों को भट्ठा मालिक की दया पर छोड़ दिया और उन्हें ईंट भट्ठा पर काम करते रहने को कहा।
रोहतास के ज़िला मजिस्ट्रेट ने भी कोई कार्रवाई नहीं की है और गर्भवती महिला सहित अन्य मज़दूरों को छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की है।
याचिका में बंधुआ श्रम अधिनियम, 1976 का हवाला दिया है जिसमें कहा गया है कि इस बारे में शिकायत होने पर 24 घंटे के भीतर उन्हें छोड़ दिया जाएगा और इस तरह, इस मामले में क़ानून की धज्जियां उड़ाई गई हैं। इस अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि अधिनियम के लागू होते ही बंधुआ श्रम समाप्त हो जाएगा और बंधुआ मज़दूर मुक्त हो जाएंगे। इस अधिनियम की धारा 12 इस तरह के श्रम को समाप्त करने की ज़िम्मेदारी ज़िला मजिस्ट्रेट को दी है।
बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के बारे में 17 जनवरी 2017 को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि उन्हें छुड़ाए गए बंधुआ श्रमिकों को ₹20 हज़ार की तत्काल मदद दी जाएगी पर इस नियम का भी पालन नहीं किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि COVID-19 के कारण राज्य सरकारें दबाव में हैं लेकिन संविधान के अनुच्छेद 24 और 21 के तहत जीवन के अधिकार सहित बंधुआ श्रमिकों के संवैधानिक अधिकारों को निलंबित नहीं किया जा सकता।
याचिका में मांग की गई है कि -
a. बंधुआ श्रमिकों को कोई शारीरिक या नुक़सान नहीं पहुंचे और उनके ख़िलाफ़ यौन हिंसा नहीं हो और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखा जाए ताकि महामारी से वे बचे रहें।
b. उन्हें नियमानुसार मुआवज़ा शीघ्र मिले ताकि महामारी के कारण आजीविका के वैकल्पिक स्रोत नहीं मिलने से वे मुश्किल में नहीं पड़ें।
c. उन्हें उचित स्वास्थ्य सुविधा और मास्क, सैनिटाइज़र मुहैया कराया जाए।
d. छुड़ाए जाने के बाद उनके भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
e. नियोक्ताओं को इन श्रमिकों के बकाए राशि का भुगतान करने को कहा जाए और ऐसा नहीं करने पर उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई हो।
f. छुड़ाए गए मज़दूरों को उनके गांव तक सुरक्षित पहुंचाया जाए।
g. इन्हें बंधुआ मज़दूरों के रूप में रखने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाए।
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