सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

LiveLaw News Network

18 Jan 2020 10:16 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया है,जिसमें ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, और वायु प्रदूषण पर जीवाश्म ईंधन पर आधारित वाहनों के गंभीर प्रभाव के मद्देनजर देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए सरकारी नीतियों की विफलता को रेखांकित किया गया है।

    याचिका, जो सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन, कॉमन कॉज एंड सीताराम जिंदल फाउंडेशन सहित संगठनों द्वारा संयुक्त रूप से दायर की गई थी, जिसमें जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग पर गैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन का उपयोग करने वाले वाहनों के प्रभाव के बारे में चिंता जताई गई है।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं ने बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर का उल्लेख किया और शीर्ष अदालत के ध्यान में लाया कि 2012 में सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए एक राष्ट्रीय ई-मोबिलिटी मिशन योजना, 2020 जारी की थी।

    शुक्रवार को याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश होते हुए, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि इस योजना के माध्यम से इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करने को अनिवार्य करने और उचित बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराने और इसी सुविधा के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए कई सिफारिशें की गई थीं।

    इस योजना से आगे, वर्ष 2015 में भारत में फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग (हाइब्रिड एंड) इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम-इंडिया स्कीम) (Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid & )Electric Vehicles in India( FAME-India Scheme )) की घोषणा या एलान किया गया था और इसे 2019 फिर से अनुमति दी गई ताकि उपभोक्ताओं को सब्सिडी दी जा सकें। हालांकि, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि फेम-इंडिया स्कीम एक अनिवार्य मांग बनाने और आवश्यक चार्जिंग बुनियादी ढांचा प्रदान करने में सक्षम नहीं थी। यह इस योजना की विफलता का कारण है।

    इसके अलावा, अदालत को इस तथ्य से भी अवगत कराया गया था कि वर्ष 2012 के लक्ष्य 7 मिलियन के विपरीत ,वर्ष 2019 की शुरुआत तक केवल 0.263 मिलियन इलेक्ट्रिक वाहन बेचे गए थे। इस योजना पर सात वर्षों में केवल 600 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं, जबकि इस योजना के लिए 14,500 करोड़ रुपए के आवंटन का आह्वान किया गया है।

    याचिकाकर्ताओं ने नीती अयोग की क्रमिक या सिलसिलेवार रिपोर्ट का हवाला देकर अपनी चिंताओं को पुख्ता किया जिनमें वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करने का आह्वान किया गया है। वहीं लैंसेट जर्नल की रिपोर्ट का हवाला दिया,जिसके अनुसार वायु प्रदूषण के कारण 8 में से 1 बच्चे की मृत्यु हो जाती है। जबकि डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के अनुसार दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 शहर भारत के हैं, और वल्लभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट का एक अध्ययन है, जिसके अनुसार एक भारतीय बच्चे के फेफड़ों का औसत आकार प्रदूषण कारकों के कारण कोकेशियान समकक्षों की तुलना में स्थायी रूप से छोटा है।

    उपरोक्त के आलोक में, प्रशांत भूषण ने पीठ से आग्रह किया, जिसमें सीजेआई एस.ए बोबड़े, जस्टिस जे. बी. आर गवई और जस्टिस जे.सूर्यकांत शामिल हैं, कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए और मामले में की गई प्रार्थना के अनुसार इलेक्ट्रिक वाहनों के क्रमिक या नियमित तौर पर अपनाने को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाए।

    भूषण ने कहा कि, सरकार को, इस तरह की मांग के लिए जनादेश जारी करने या अनिवार्य करने, पहले से बुनियादी ढाँचे को तैयार करने और जीवाश्म ईंधन पर चलने वाले वाहनों पर मामूली शुल्क लगाकर 'क्रॉस सब्सिडी' करने और इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करने का खर्च कम करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।

    पीठ इस बात को महत्व देने की आवश्यकता पर सहमत दिख रही थी और आगे इस पर ध्यान देने के लिए एक समिति गठित करने की इच्छुक थी। हालाँकि, कुछ समय के लिए, सरकार को नोटिस जारी कर दिया गया है और इस मामले में व्यक्त की गई चिंताओं के बारे में स्थिति से अवगत कराने के लिए पहले एक स्टेटस रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है।

    सीजेआई ने यह भी निर्देश दिया है कि संबंधित मंत्री (नितिन गडकरी) के माध्यम से भूतल परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को भी इस मामले में जोड़ा जाए या पक्षकार बनाया जाए।

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