1984 सिख विरोधी दंगा : सज्जन कुमार को फिलहाल नहीं मिलेगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट अगले साल गर्मी की छु्ट्टियों में करेगा सुनवाई

LiveLaw News Network

5 Aug 2019 2:38 PM GMT

  • 1984 सिख विरोधी दंगा : सज्जन कुमार को फिलहाल नहीं मिलेगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट अगले साल गर्मी की छु्ट्टियों में करेगा सुनवाई

    सज्जन कुमार को राहत नहीं दी जा सकती। उनकी वजह से 800 से ज्यादा सिखों की हत्या की गई। वहीं सज्जन कुमार की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि वो बीमार हैं और उन्हें इलाज के लिए बंगलूरू जाना है। इसलिए इस मामले में उनकी सुनवाई की जानी चाहिए।

    1984 में हुए सिख विरोधी दंगे में आजीवन कारावास के सजायाफ्ता कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद सज्जन कुमार को सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील और सजा के निलंबन की याचिका को अगले साल गर्मियों की छुट्टियों तक टाल दिया है।

    सुनवाई के दौरान पीड़ितों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने जस्टिस एस ए बोबड़े की पीठ के सामने कहा कि सज्जन कुमार को राहत नहीं दी जा सकती। उनकी वजह से 800 से ज्यादा सिखों की हत्या की गई। वहीं सज्जन कुमार की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि वो बीमार हैं और उन्हें इलाज के लिए बंगलूरू जाना है। इसलिए इस मामले में उनकी सुनवाई की जानी चाहिए।

    सुनवाई के बाद जस्टिस एस ए बोबडे की पीठ ने कहा कि फिलहाल इस मामले की सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है। इसकी सुनवाई अवकाश पीठ करेगी। वहीं CBI ने जमानत का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में जांच एजेंसी ने कहा है कि सज्जन कुमार शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति हैं और उनके जेल से बाहर आने पर मामलों के गवाह प्रभावित हो सकते हैं।

    CBI ने कहा है कि सज्जन कुमार की जमानत अर्जी में कोई योग्यता नहीं है और उसे खारिज किया जाना चाहिए। 14 जनवरी को सज्जन कुमार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सज्जन कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी है जिसमें उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने सज्जन कुमार की जमानत देने की अर्जी पर भी सीबीआई को नोटिस जारी कर 6 सप्ताह में जवाब मांगा था।

    31 दिसंबर 2018 को सज्जन कुमार ने दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में सरेंडर कर दिया था। इसके बाद उन्हें मंडोली जेल भेजा दिया गया। वहीं इस दौरान सज्जन कुमार के वकीलों ने मांग की थी कि उन्हें तिहाड़ जेल भेजा जाए क्योंकि मामला दिल्ली कैंट थाने का है लेकिन नियमों के तहत सज्जन कुमार को अलग वैन में मंडोली जेल भेजा गया। 21 दिसंबर 2018 को कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली थी। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने सज्जन कुमार की उस अर्जी को ठुकरा दिया था जिसमें आत्मसमर्पण करने के लिए 30 दिन और देने की गुहार लगाई थी।

    इससे पहले 17 दिसंबर 2018 को दिल्ली हाईकोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगे में सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उसे उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई थी और 31 दिसम्बर 2018 तक आत्मसमर्पण करने को कहा था। न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति विनोद गोयल की पीठ ने निचली अदालत के फ़ैसले को पलटते हुए कहा, "पीड़ितों को यह आश्वासन देना जरूरी है कि चुनौतियों के बावजूद, सच जीत की होगी।"

    गौरतलब है कि सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ 1984 के सिख विरोधी दंगों में पालम के राजनगर में एक ही परिवार के केहर सिंह, गुरप्रीत सिंह, रघुवेंद्र सिंह, नरेंद्र पाल सिंह और कुलदीप सिंह को जान से मारने का दोषी पाया गया है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 31 अक्टूबर 1984 को यह दंगा फैला था।

    आरोपी के ख़िलाफ़ मामला न्यायमूर्ति जीटी नानावटी आयोग के सुझाव के आधार पर 2005 में दायर हुआ था।निचली अदालत ने 2013 में पाँच लोगों को दोषी माना था जिसमें बलवान खोखर, महेंद्र यादव, किशन खोखर, गिरधारी लाल और कैप्टन भागमल शामिल था जबकि सज्जन कुमार को बरी कर दिया था। लेकिन सीबीआई ने सज्जन कुमार के ख़िलाफ़ यह कहते हुए अपील की थी कि भीड़ को उकसाने वाला सज्जन कुमार ही था।

    हाईकोर्ट ने सज्जन के अलावा तीन अन्य दोषियों- कैप्टन भागमल, गिरधारी लाल और कांग्रेस के पार्षद बलवान खोखर की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था। बाकी दो दोषियों - पूर्व विधायक महेंद्र यादव और किशन खोखर की सजा तीन साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई।

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