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सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 के बहुमत से दो साल की बच्ची से रेप और हत्या के दोषी की मौत की सजा बरकरार रखी

LiveLaw News Network
4 Oct 2019 6:31 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 के बहुमत से दो साल की बच्ची से रेप और हत्या के दोषी की मौत की सजा बरकरार रखी
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2: 1 के बहुमत से 2 साल की बच्ची की हत्या और बलात्कार के लिए 25 वर्ष की उम्र के व्यक्ति को दोषी पाया। जस्टिस आर. एफ. नरीमन और जस्टिस सूर्य कांत ने बहुमत से रवि बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि की गई मौत की सजा को बरकरार रखा जबकि जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी ने इससे अलग फैसला दिया।

वर्ष 2019 में POCSO अधिनियम में हुए संशोधन पर अदालत ने किया गौर

बहुमत के फैसले ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि संसद ने वर्ष 2019 में POCSO अधिनियम में संशोधन करके बाल बलात्कार के लिए मौत की सजा देने के लिए उपयुक्त माना है। हालांकि यह संशोधन इस मामले पर लागू नहीं होगा क्योंकि वर्ष 2012 में ये अपराध हुआ था, लेकिन बहुमत के फैसले में यह कहा गया कि मामले का मूल्यांकन करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

"यदि संसद, पर्याप्त तथ्यों और आंकड़ों से लैस है और उसने एक बच्चे के यौन शोषण के अपराध के लिए मृत्युदंड की सजा देने का फैसला किया है तो अदालत नवीनतम विधान नीति को ध्यान में रखेगी, भले ही उस मामले में कोई प्रयोज्यता न हो क्योंकि अपराध पूर्व में घटित हुआ था।" जस्टिस सूर्यकांत द्वारा लिखित बहुमत के फैसले में टिप्पणी की गई।

पीड़िता की उम्र के मद्देनजर अदालत ने क्रूरता का किया आकलन

अदालत ने कहा कि पीड़िता मुश्किल से 2 साल की बच्ची थी, जिसका अपीलकर्ता ने अपहरण कर लिया और जाहिर तौर पर 4-5 घंटे तक उससे मारपीट करता रहा जब तक कि उसने आखिरी सांस नहीं ली। "दो साल के बच्चे के साथ अप्राकृतिक यौनाचार एक गंदे और विकृत दिमाग को प्रदर्शित करता है, क्रूरता की एक भयानक कहानी दिखा रहा है," पीठ ने कहा।

आरोपी की मंशा, मनोस्थिति एवं उसके सुधार की संभावना का अदालत ने किया आकलन

फैसले में आगे यह कहा गया कि अपीलार्थी ने सावधानीपूर्वक अपने नापाक मंसूबे को अंजाम देने के लिए अपने घर के एक दरवाजे को बाहर से बंद किया और दूसरे को अंदर से बंद कर लिया ताकि लोगों को यह विश्वास दिलाया जाए कि अंदर कोई नहीं था। अपीलकर्ता इस प्रकार अपने पूरे होश में था जब वह इस मूर्खतापूर्ण कार्य में लिप्त था।

फैसले में कहा गया, "अपीलकर्ता ने इस गंभीर अपराध के लिए कोई पश्चाताप नहीं दिखाया है, बल्कि उसने धारा 313 CrPC के अपने बयान में चुप रहने का विकल्प चुना। `झूठे' आरोप के बचाव के साथ उसकी जानबूझकर, अच्छी तरह से तैयार की गई चुप्पी से उसकी दया या करुणा की कमी का पता चलता है और यह विश्वास होता है कि उसका कभी सुधार नहीं किया जा सकता है। ऐसा होने के कारण, यह न्यायालय तब तक मृत्युदंड को हटा नहीं सकता, जब तक कि यह क़ानून की किताब में अंकित रहता है।"

जस्टिस रेड्डी द्वारा असहमति एवं दिया गया कारण

जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी ने कहा कि यह "मौत की सजा के लायक मामला" नहीं है। यह देखा गया कि यह हत्या पूर्व नियोजित या साजिशन नहीं थी। यह अपराध शराब के प्रभाव में किया गया था। अपीलकर्ता की आयु 25 वर्ष थी और उसका कोई भी पिछला आपराधिक इतिहास नहीं था। इन कारकों को मौत की सजा के लिए परिस्थितियों को हल्का करने के रूप में लिया जाना चाहिए। अभियोजन पक्ष ने यह दिखाने के लिए कोई तथ्य स्थापित नहीं किया था कि अपीलकर्ता पुनर्वास या सुधार से परे था।

"इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि उक्त घटना के दिन, वह शराब के प्रभाव में था और उसकी उम्र लगभग 25 वर्ष थी और उसका किसी भी अपराध का कोई पिछला इतिहास नहीं था।अभियोजन पक्ष की ओर से इस संबंध में कोई सबूत न होने के कारण कि उसका समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए सुधार और पुनर्वास नहीं किया जा सकता, अपीलकर्ता के लिए पेश वकील द्वारा दलील सजा को संशोधित करने के लिए दी गई पूरी तरह से अपीलकर्ता के मामले का समर्थन करती है।"

उन्होंने आगे कहा, "मामले में, जहां साक्ष्य से ये स्पष्ट है कि अपीलकर्ता शराब के प्रभाव में था और किए गए अपराध को एक पूर्व नियोजित के रूप में नहीं कहा जा सकता, सजा कम करने के लिए परिस्थितियों के लिए काफी है।"

"परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामले में मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए"

जस्टिस रेड्डी ने कहा कि यह परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर बनाया गया मामला था। सामान्य नियम यह है कि सामान्यत: परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर किसी मामले में मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए।

असहमति के अपने फैसले में उन्होंने कहा, "इस मामले में, अपीलकर्ता की सजा मुख्य रूप से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। इस आधार पर, मेरा यह भी मानना ​​है कि मौत की सजा को संशोधित किया जाना चाहिए।"

आरोपी की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन

अपीलकर्ता की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का आकलन करते हुए न्यायाधीश ने कहा कि अपीलकर्ता गरीबी रेखा से नीचे की श्रेणी का था। यह भी एक मुख्य कारक है। वहीं बहुमत के दृष्टिकोण से हटकर जस्टिस रेड्डी ने कहा कि वर्ष 2019 में किए गए POCSO संशोधन पर, मौजूदा मामले के संबंध में ध्यान नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये अपराध बहुत पहले हुआ था। धारा 302 आईपीसी के तहत अपराध के लिए मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया गया।

"मेरे मन में यह स्पष्ट है कि इस मामले में, अपीलकर्ता की विषम परिस्थितियों पर, अपीलीय परिस्थितियों में, मौत की सजा को आजीवन कारावास के रूप में संशोधित किया जाना चाहिए। यहां तक ​​कि अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, अपीलकर्ता अपराध करने के समय शराब के प्रभाव के अधीन था और अभियोजन पक्ष की ओर से यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है कि अपीलकर्ता के सुधार और पुनर्वास की कोई संभावना नहीं है। इसके अलावा अपीलकर्ता की उम्र 25 वर्ष थी। प्रासंगिक समय और सजा पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। इस तरह के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, अपीलकर्ता पर लगाए गए मृत्युदंड को आजीवन कारावास के रूप में संशोधित किया जा रहा है।" असहमति के फैसले में उनके द्वारा निष्कर्ष निकाला गया।


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