राम लला विराजमान के वकील ने कहा, संपूर्ण संपत्ति ही देवता है, कोई अन्य पक्ष प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता

LiveLaw News Network

22 Aug 2019 5:37 AM GMT

  • राम लला विराजमान के वकील ने कहा, संपूर्ण संपत्ति ही देवता है, कोई अन्य पक्ष प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता

    अयोध्या मामले में सुनवाई के नौवें दिन राम लला विराजमान के लिए पेश वरिष्ठ वकील सी. एस. वैद्यनाथन ने अपनी दलीलें फिर से शुरू कीं और कानूनी उदाहरणों का हवाला दिया कि हिंदू वर्षों से परम विश्वास और आस्था के साथ भगवान राम के जन्म स्थान की पूजा कर रहे हैं और ये धार्मिक पूजा मानी जाती है।

    "सम्पूर्ण संपत्ति ही देवता है"

    उन्होंने संविधान पीठ के समक्ष यह प्रस्तुत किया कि चूंकि यह एक जन्मस्थान है जिसकी पूजा की जाती है, न कि किसी विशिष्ट मंदिर की, इसलिए संपूर्ण संपत्ति ही देवता है। यदि पूरी संपत्ति एक देवता है तो कोई अन्य पक्ष प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता।

    उन्होंने यह कहा कि बाबरी मस्जिद के प्रतिकूल कब्जे के विवाद को नकार दिया गया क्योंकि हिंदुओं ने हमेशा पूरे स्थान की पूजा करने की इच्छा व्यक्त की है। इस सवाल पर कि क्या देवता संपत्ति से अलग-थलग हैं, पर चर्चा की गई, जबकि वरिष्ठ वकील ने यह कहा कि संपत्ति ही इस मामले में देवता है और देवता नाबालिग है।

    "इलाहाबाद HC द्वारा अखाड़ा को संपत्ति का एक हिस्सा दिए जाने का फैसला त्रुटिपूर्ण"

    वैद्यनाथन द्वारा आगे यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अयोध्या के देवता को सदा के लिए कैसे माना जाए और संपत्ति को विभाजित करने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्मोही अखाड़ा को संपत्ति का एक हिस्सा दिया था, जो गलत फैसला था।

    "मैं यह प्रस्तुत करता हूं कि निर्मोही अखाड़ा और वक्फ बोर्ड अपना मुक़दमा स्थापित करने में विफल रहे हैं और बावजूद इसके कि लिमिटेशन के कारण उनके मुकदमे को खारिज किया गया है, मेरा तर्क है कि वे उन्हें दी गई राहत के हकदार नहीं हैं," वैद्यनाथन ने कहा और यह भरोसा दिलाया कि भूमि को विभाजित करने के लिए साक्ष्य अधिनियम की धारा 110 पर उच्च न्यायालय द्वारा किया गया फैसला, कानून में अच्छा नहीं था।

    शंकराचार्य सरूपानंद जी महाराज की द्वारिका पीठ की तरफ से शुरू हुई बहस

    दोपहर के भोजन के बाद सी. एस. वैद्यनाथन ने अपनी दलीलें समाप्त कीं और वरिष्ठ वकील पी. एन. मिश्रा ने जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के शंकराचार्य स्वरूपानंद जी महाराज की द्वारिका पीठ के लिए बहस शुरू की। इलाहाबाद HC के वर्ष 2010 के फैसले से आहत, मिश्रा ने यह तर्क देना शुरू कर दिया कि हिंदू धर्मग्रंथों, सिद्धांतों और विश्वास ने अयोध्या के अस्तित्व को एक मंदिर के रूप में दिखाया है। वकील ने अर्थव वेद के हवाले से अपनी दलीलें शुरू कीं और रामायण, नरसिंह पुराण और स्कंद पुराण का हवाला दिया।

    अदालत ने मापदंडों के माध्यम से सबूत दिखाए जाने की मांग की

    विभिन्न अवसरों पर, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एस. ए. बोबडे ने उनसे कहा कि अयोध्या के जन्मस्थान होने के बारे में कोई विवाद नहीं है लेकिन उन्हें मापदंडों के माध्यम से सबूत की आवश्यकता है कि विवादित स्थल का सही स्थान जन्मस्थान कहां है।

    मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा, "हम वस्तुनिष्ठ प्रमाण चाहते हैं। सटीक स्थान स्थापित करने के लिए हमें नक्शे या वस्तुनिष्ठ पैरामीटर दिखाएं। शास्त्र ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि विश्वास प्रश्न में नहीं है, विवाद में यह स्थान है।" मिश्रा द्वारा कुछ ख़ास खातों के कुछ पन्नों को पढ़ने के बाद पीठ ने उनसे कहा कि वे संदर्भों के साथ तैयार रहें और शुक्रवार को इस मामले पर बहस करें।

    इसके बाद हिंदू महासभा के लिए वी. एन. सिन्हा को बहस करने का मौका मिला लेकिन जल्द ही उन्होंने पीठ को सूचित किया कि उन्होंने यह नहीं सोचा था कि बहस करने की उनकी बारी इतनी जल्दी आएगी। तब गोपाल सिंह विशारद के लिए वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने अपनी दलीलें शुरू कीं लेकिन तभी पीठ ने दिन की सुनवाई खत्म कर दी।

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