सुप्रीम कोर्ट ने AGR बकाया से PSU को बाहर करने पर विचार करने को कहा, अपने फैसले का दुरुपयोग बताया
LiveLaw News Network
11 Jun 2020 3:42 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दूरसंचार विभाग को निर्देश दिया कि वह टेलीकॉम कंपनियों से AGR बकाया से संबंधित मामले में अक्टूबर 2019 के फैसले के आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से किए गए बकाया के दावों पर पुनर्विचार करे।
पीठ ने देखा,
"हमारा फैसला PSU से बकाया मांगने का आधार नहीं हो सकता है।"
पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को शपथ पत्र दाखिल करने का भी निर्देश दिया, जिसमें AGR फैसले के आधार पर बकाया राशि को चुकाने के लिए आवश्यक समय बताया गया हो। इस मामले पर अगली सुनवाई 18 जून को होगी।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को 20 साल की लंबी समय सीमा में 1.43 लाख करोड़ रुपये का बकाया भुगतान करने की अनुमति देने के लिए DoT द्वारा दायर एक आवेदन पर विचार करते हुए यह आदेश पारित किया।
DoT की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बकाए का एक बार में भुगतान दूरसंचार क्षेत्र के लिए हानिकारक हो सकता है, जो पहले से ही आर्थिक दबाव में है।
एसजी ने प्रस्तुत किया,
" दूरसंचार सेवा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और उपभोक्ताओं को नुकसान होगा। सेवाएं महंगी हो सकती हैं और यह उपभोक्ता के लिए हानिकारक हो सकता है।"
पीठ ने 20 साल की समय अवधि मांगने के पीछे तर्क के बारे में पूछा। पीठ ने यह भी पूछा कि इस बात की क्या गारंटी है कि टेलीकॉम कंपनियां समय सीमा के भीतर बकाया राशि को चुका देंगी।
पीठ ने यह भी देखा कि AGR के फैसले के आधार पर सार्वजनिक उपक्रमों से भी बकाया का दावा किया गया था। पीठ ने कहा कि टेलीकॉम और PSU के लाइसेंस अलग-अलग प्रकृति के हैं क्योंकि PSU का व्यावसायिक शोषण करने का इरादा नहीं है।
जस्टिस मिश्रा ने PSU की मांगों पर गौर किया, "यह हमारे फैसले का दुरुपयोग है। आप 4 लाख करोड़ से अधिक की मांग कर रहे हैं! यह पूरी तरह से और पूरी तरह से अक्षम्य है।"
उन्होंने कहा, "वे व्यावसायिक शोषण के लिए अन्य टेलीकॉम जैसी सेवाएं प्रदान नहीं करते हैं। सार्वजनिक उपक्रमों पर AGR बकाया राशि सार्वजनिक हित में नहीं हो सकता है।"
जस्टिस मिश्रा ने कहा, "हम आपसे ( PSU से मांग) को वापस लेने का अनुरोध करेंगे अन्यथा हम उनके ( DoTअधिकारियों) के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।"
उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि वे इस बारे में एक हलफनामा दाखिल करें कि यह उनके द्वारा कैसे किया जा सकता है? [DoT अधिकारी]! हम उन्हें दंडित करेंगे! हम उन्हें दंडित करेंगे!"
इस बिंदु पर, सॉलिसिटर जनरल ने अदालत से यह स्पष्ट करने का अनुरोध किया कि क्या दूरसंचार निर्णय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर लागू नहीं होता है।
जस्टिस मिश्रा ने इस अनुरोध को ठुकराते हुए कहा "हमें क्यों स्पष्ट करना चाहिए?"
मार्च में, चल रहे कोरोनावायरस के कारण लॉकडाउन के शुरू होने से पहले, दूरसंचार विभाग (DoT) ने अपने AGR बकाया का भुगतान करने के लिए दूरसंचार कंपनियों के लिए 20 साल से अधिक समय देने के प्रस्ताव पर उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
दूरसंचार विभाग ( DoT) ने 24 अक्टूबर, 2019 के आदेश को संशोधित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जो टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं से पिछले बकाया की वसूली के लिए एक फार्मूले पर पहुंचा है।
अपील में, केंद्र ने कहा था कि भले ही अदालत ने समायोजित सकल राजस्व (AGR) की परिभाषा को बड़ा कर दिया हो, जिससे तीन टेलीकॉम यानी वोड़ाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज को सामूहिक रूप से 1.02 लाख करोड़ से अधिक बकाया का
सामना करना पड़ रहा है जिसमें अतिरिक्त लाइसेंस शुल्क, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (एसयूसी), दंड और ब्याज भी शामिल है। यह जरूरी है कि वसूली के लिए प्रस्ताव को मंज़ूरी दी जाए।
हालांकि, 18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा तय किए गए समायोजित सकल राजस्व (AGR) के स्व-मूल्यांकन या पुनर्मूल्यांकन करने के लिए केंद्र और दूरसंचार कंपनियों को फटकार लगाई।
शीर्ष अदालत, जिसे AGR मुद्दे पर अक्सर प्रकाशित अखबारों के लेखों से भी दुख हुआ, ने कहा कि दूरसंचार कंपनियों के सभी प्रबंध निदेशक व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होंगे और भविष्य में किसी भी समाचार पत्र के लेख के लिए अदालत की अवमानना लागू किया जाएगा।
पीठ ने दूरसंचार कंपनियों को 20 साल में AGR बकाया का भुगतान करने की अनुमति देने के लिए केंद्र की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया, कहा कि आवेदन पर सुनवाई दो सप्ताह बाद की जाएगी।
संघ ने अपना दलीलों में यह भी कहा था कि यह संशोधन अत्यंत महत्वपूर्ण है और इस प्रकार, राष्ट्र में बड़े आर्थिक परिणामों को ध्यान में रखते हुए, प्रशासनिक पदानुक्रम में सरकार द्वारा परिकल्पित वसूली के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है।
अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट ने वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा टेलीसर्विसेज द्वारा 24 अक्टूबर के फैसले पर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें समायोजित सकल राजस्व ( AGR) की परिभाषा को विस्तारित किया गया था।