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शिशु की बलि देने वाले तांत्रिक दम्पती का मृत्युदंड सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार, पढ़िए फैसला

LiveLaw News Network
4 Oct 2019 4:25 AM GMT
शिशु की बलि देने वाले तांत्रिक दम्पती का मृत्युदंड सुप्रीम कोर्ट ने रखा बरकरार, पढ़िए फैसला
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सुप्रीम कोर्ट ने मानव बलि के नाम पर एक शिशु की हत्या करने के दोषी तांत्रिक दम्पती का मृत्युदंड बरकरार रखा है। किरण बाई और उसके पति ईश्वरी लाल यादव के खिलाफ आरोप इस प्रकार थे :-

दोनों तंत्रविद्या में विश्वास करते थे। किरण बाई सिद्धि पाना चाहती थी। वह गुरुमाता के नाम से भी जानी जाती थी। भगवान को प्रसन्न करने के लिए उसने अपने पति और सहअभियुक्त अनुयायियों को मानव बलि के लिए एक बच्चा लाने को कहा था। भगवान को बलि देने के लिए पड़ोस के दो साल के बच्चे 'चिराग' को अगवा कर लिया गया और अभियुक्त दम्पती के घर के अंदर ही उसकी बर्बर हत्या कर दी गयी। उसके बाद उसे घर के अहाते में ही दफना दिया गया।

न्यायमूर्ति रोहिंगटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने रिकॉर्ड में लाये गये साक्ष्यों की समीक्षा के बाद सर्वसम्मति से फैसला दिया कि यह 'विरलों में विरलतम' (रेयरेस्ट ऑफ द रेयर) मामला है, जिसके लिए मौत की सजा दी जा सकती है।

पीठ ने मानव बलि के उद्देश्य से छह साल की लड़की की हत्या के एक अन्य अपराध के लिए इन्हें हाईकोर्ट की ओर से दी गयी बगैर किसी क्षमा या परोल के आजीवन कारावास की सजा भी बरकरार रखी।

पीठ के लिए न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी ने फैसला पढ़ा। चिराग की हत्या के लिए मृत्युदंड बरकरार/ रखते हुए पीठ ने कहा :-

"इस मामले में साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि मुख्य अभियुक्त ईश्वरी लाल यादव और किरण बाई ने भगवान को बलि के नाम पर दो साल के बच्चे चिराग की हत्या की है। इस बात को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उस वक्त उनके खुद तीन नाबालिग बच्चे थे। इसके बावजूद उन्होंने दो साल के बच्चे की निर्मम हत्या की। उस असहाय बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया गया था, उसकी जिह्वा और उसके गाल भी काटे गये थे। बच्चे की उम्र का ध्यान करके भी इनके अंदर इंसानियत नहीं जगी, इनके अंदर आत्मा या मनोभाव नाम की कोई चीज नहीं है, जिसमें सुधार की कोई गुंजाइश हो। दोनों अपीलकर्ताओं ने सुनियोजित तरीके से हत्या को अंजाम दिया था।

ईश्वरी लाल यादव और किरण बाई पूर्व में भी छह साल की बच्ची की इसी तरह की हत्या के लिए दुर्ग के सत्र न्यायाधीश की ओर से मुकदमा संख्या 98/2011 के अंतर्गत भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 और धारा 201 के तहत दोषी ठहराये जा चुके हैं, जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनायी गयी थी, लेकिन छत्तीसगढ की बिलासपुर पीठ ने क्रिमिनल अपील संख्या 1068/2014 पर विचार करते हुए इसमें संशोधन किया था और दोनों को बगैर किसी माफी और परोल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।

एक ही तरह के अपराध की पुनरावृत्ति के लिए दोषी ठहराये जाने को निकृष्ट कारक के रूप में देखा जा सकता है। सुशील मुर्मू के मामले में दिये गये दिशानिर्देशों पर विचार करते हुए हमारा मत है कि यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर मामला है और निचली अदालत द्वारा निर्धारित मौत की सजा को हाईकोर्ट ने बरकरार रखकर सही निर्णय दिया है।"

एक अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2:1 के बहुमत के फैसले के आधार पर दो साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने और बाद में उसकी हत्या करने के लिए एक अभियुक्त को दोषी ठहराते हुए उसकी मौत की सजा बहाल रखी। न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी ने इस मामले को मृत्युदंड के लिए उचित मामला न बताते हुए दोनों न्यायाधीशों के फैसले से असहमति जतायी।



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