RTI के तहत विलफुल डिफॉल्टरों का खुलासा करे RBI : सुप्रीम कोर्ट ने RBI को दिया आखिरी मौका [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

26 April 2019 3:47 PM GMT

  • RTI के तहत विलफुल डिफॉल्टरों का खुलासा करे RBI : सुप्रीम कोर्ट ने RBI को दिया आखिरी मौका [निर्णय पढ़े]

    एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को यह आदेश दिया है कि वो सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत विलफुल डिफॉल्टर और बैंकों की निरीक्षण रिपोर्ट की जानकारी सार्वजनिक करे।

    आरबीआई की पॉलिसी, SC के आदेश का करती है उल्लंघन

    न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने शुक्रवार को दिए फैसले में कहा कि RBI की वर्ष 2016 की "डिस्क्लोजर पॉलिसी" सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2015 के भारतीय रिज़र्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री के फैसले का उल्लंघन करती है और इसे हटाया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने RBI को आखिरी मौका देते हुए यह चेतावनी दी कि अगर उसके आदेशों का पालन नहीं हुआ तो यह गंभीर अवमानना का मामला होगा।

    इससे पहले 25 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत सूचना प्रदान ना करने पर दाखिल 2 अवमानना ​​याचिकाओं पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को नोटिस जारी किया था। आरटीआई कार्यकर्ताओं सुभाष चंद्र अग्रवाल और गिरीश मित्तल की याचिका पर ये नोटिस जारी किया गया।

    "RBI सूचना अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने के लिए है बाध्य"
    याचिका पर दोनों की ओर से वकील प्रशांत भूषण और प्रणव सचदेवा अदालत में पेश हुए। दोनों याचिकाएं 16 दिसंबर, 2015 को भारतीय रिज़र्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री के फैसले के आधार पर दाखिल की गईं थी, जिसमें आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना देने से इनकार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने RBI को कड़ी फटकार लगाई थी। इसके बाद उसने फैसला सुनाया था कि RBI सूचना अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और उसमें जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है।
    याचिका के आधार
    अग्रवाल की याचिका में RBI द्वारा "डिस्क्लोजर पॉलिसी" जारी करने को चुनौती दी गई थी और इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया गया था। याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि RBI ने सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) को कुछ प्रकार की जानकारी का खुलासा नहीं करने का निर्देश दिया है। यह साफ करता है कि ये पॉलिसी आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त आवेदनों से संबंधित जानकारी का खुलासा करने पर रोक लगाता है इसलिए ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है।

    याचिका में इस तथ्य पर भी आपत्ति जताई गई कि ये नीति आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत सूचना की छूट को सूचीबद्ध करती है। ये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि RBI देश के आर्थिक हित के आधार पर और किसी बैंक से विवादास्पद संबंध के चलते जानकारी से इंकार नहीं कर सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य रूप से यह माना था कि RBI निजी बैंकों के साथ संबंध में नहीं था क्योंकि उसने इन बैंकों के साथ "विश्वास" में ऐसी जानकारी नहीं रखी थी। इसलिए इस तरह की जानकारी का खुलासा न करना राष्ट्र के आर्थिक हित के लिए हानिकारक होगा।

    अदालत की मामले पर टिप्पणी
    "RBI को जनहित को बढ़ावा देना चाहिए न कि किसी बैंक के हित को। RBI स्पष्ट रूप से किसी भी बैंक के साथ किसी भी प्रकार के संबंध में नहीं है। किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या निजी क्षेत्र के बैंक के लाभ को बढ़ाने के लिए RBI का कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है और इस प्रकार उनके बीच 'विश्वास' का कोई संबंध नहीं है। RBI पर बड़े पैमाने पर जमाकर्ताओं, देश की अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र में जनता के हितों को बनाए रखने के लिए एक सांविधिक कर्तव्य है। इस प्रकार, RBI को पारदर्शिता के साथ कार्य करना चाहिए और ऐसी जानकारी को नहीं छिपाना चाहिए जो व्यक्तिगत बैंकों को शर्मिंदा कर सकती है। यह आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और उत्तरदाताओं द्वारा मांगी गई जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है," अदालत ने तब फैसला सुनाया था।

    हालांकि याचिका में यह कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थिति स्पष्ट करने के बावजूद इस नीति के उद्देश्य बताए गए हैं कि सूची को "आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, वित्तीय स्थिरता और राज्य आर्थिक हितों को खतरे में डाले बिना" बनाया गया है। यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की स्पष्ट अवमानना ​​है।

    मित्तल की याचिका एवं उसमे आरोप
    वहीं मित्तल की याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि निर्णय के बावजूद उन्हें जानकारी देने से यह कहकर इनकार किया गया कि यह खुलासा "राज्य के आर्थिक हित में नहीं है और ये तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।"

    18 दिसंबर, 2015 को उन्होंने अपने आवेदन में 1 अप्रैल, 2011 से आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के निरीक्षण रिपोर्ट की प्रतियां मांगी थीं। उन्होंने इन बैंकों को जारी किए गए किसी भी कारण बताओ नोटिस और उनकी प्रतिक्रिया की प्रतियां भी मांगी थीं। सहारा समूह और पूर्ववर्ती बैंक ऑफ राजस्थान द्वारा अनियमितताओं के बारे में उनकी पूछताछ के संबंध में, उन्हें बताया गया कि ये आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ई) के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 NB के तहत छूट की श्रेणी में आती हैं।


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