RTI के तहत खुलासा नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने RBI को अवमानना नोटिस जारी किया

Rashid MA

25 Jan 2019 2:47 PM GMT

  • RTI के तहत खुलासा नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने RBI को अवमानना नोटिस जारी किया

    सुप्रीम कोर्ट ने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत सूचना प्रदान ना करने पर दाखिल दो अवमानना ​​याचिकाओं पर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को नोटिस जारी किया है।

    न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा आरटीआई कार्यकर्ताओं, सुभाष चंद्र अग्रवाल और गिरीश मित्तल की याचिका पर ये नोटिस जारी किया गया।

    याचिका पर दोनों की ओर से वकील प्रशांत भूषण और प्रणव सचदेवा अदालत में पेश हुए। पीठ ने RBI को 4 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है और ये मामला मार्च के लिए सूचीबद्ध किया।

    दोनों याचिकाएं, 16 दिसंबर, 2015 को भारतीय रिज़र्व बैंक बनाम जयंतीलाल एन. मिस्त्री के फैसले के आधार पर दाखिल की गई हैं।

    इस मामले में आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना देने से इनकार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने RBI को कड़ी फटकार लगाई थी। इसके बाद उसने फैसला सुनाया कि RBI, सूचना अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और उसमें जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है।

    अग्रवाल की याचिका में अब RBI द्वारा "डिस्क्लोजर पॉलिसी" जारी करने को चुनौती दी गई है और इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन बताया गया है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि RBI ने सार्वजनिक सूचना अधिकारियों (पीआईओ) को कुछ प्रकार की जानकारी का खुलासा नहीं करने का निर्देश दिया है। यह साफ करता है कि ये पॉलिसी आरटीआई अधिनियम के तहत प्राप्त आवेदनों से संबंधित जानकारी का खुलासा करने पर रोक लगाता है। इसलिए, याचिका के अनुसार, ये निर्देश सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करता है।

    याचिका में इस तथ्य पर भी आपत्ति जताई गई है कि ये नीति, आरटीआई अधिनियम की धारा 8 के तहत सूचना की छूट को सूचीबद्ध करती है। ये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लंघन है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उक्त मामले में यह फैसला दिया था कि RBI देश के आर्थिक हित के आधार पर और किसी बैंक से विवादास्पद संबंध के चलते जानकारी से इंकार नहीं कर सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य रूप से माना था कि RBI, निजी बैंकों के साथ संबंध में नहीं था क्योंकि उसने इन बैंकों के साथ "विश्वास" में ऐसी जानकारी नहीं रखी थी। इसलिए इस तरह की जानकारी का खुलासा न करना राष्ट्र के आर्थिक हित के लिए हानिकारक होगा।

    "RBI को जनहित को बढ़ावा देना चाहिए न कि किसी बैंक के हित को। RBI स्पष्ट रूप से किसी भी बैंक के साथ किसी भी संबंध में नहीं है। किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र या निजी क्षेत्र के बैंक के लाभ को बढ़ाने के लिए RBI का कोई कानूनी कर्तव्य नहीं है और इस प्रकार उनके बीच 'विश्वास' का कोई संबंध नहीं है। RBI पर बड़े पैमाने पर जमाकर्ताओं, देश की अर्थव्यवस्था और बैंकिंग क्षेत्र में जनता के हितों को बनाए रखने के लिए एक सांविधिक कर्तव्य है।

    इस प्रकार, RBI को पारदर्शिता के साथ कार्य करना चाहिए और ऐसी जानकारी को नहीं छिपाना चाहिए जो व्यक्तिगत बैंकों को शर्मिंदा कर सकती है। यह आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का पालन करने और उत्तरदाताओं द्वारा मांगी गई जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है," अदालत ने उक्त मामले में यह टिप्पणी की थी।

    हालांकि मौजूदा याचिका कहती है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थिति स्पष्ट करने के बावजूद इस नीति के उद्देश्य बताए गए हैं कि सूची को "आरटीआई अधिनियम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, वित्तीय स्थिरता और राज्य आर्थिक हितों को खतरे में डाले बिना" बनाया गया है। यह सुप्रीम कोर्ट के फैसले की स्पष्ट अवमानना ​​है।

    "यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस नीति को RBI मुख्यालय द्वारा तैयार किया गया है जो कि अपने पीआईओ के लिए एक निर्देश की तरह है जो लगभग सभी प्रकार की जानकारी प्रस्तुत नहीं करती। आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत, यह पीआईओ ही हैं जिन्हें आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों (जैसी न्यायालयों द्वारा व्याख्या की गई है) का पालन करने के लिए वैधानिक कर्तव्य सौंपा गया है और अनुपालन ना करने की स्थिति में, सजा का सामना करने वाले भी पीआईओ ही हैं।

    पीआईओ के प्रति उत्तरदाता द्वारा जारी की गई नीति न केवल इस अदालत के निर्णय का उल्लंघन है, बल्कि यह आरटीआई अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन है। पीआईओ को आरटीआई कानून के प्रावधानों द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए, न कि विभाग के आकाओं द्वारा, जहां वे काम करते हैं।

    वहीं मित्तल की याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय के बावजूद उन्हें जानकारी देने से ये कहकर इनकार किया गया कि यह खुलासा "राज्य के आर्थिक हित में नहीं है और ये तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धी स्थिति को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।"

    18 दिसंबर, 2015 को उन्होंने आवेदन में 1अप्रैल, 2011 से आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक, एचडीएफसी बैंक और भारतीय स्टेट बैंक के निरीक्षण रिपोर्ट की प्रतियां मांगी थीं। उन्होंने इन बैंकों को जारी किए गए किसी भी कारण बताओ नोटिस और उनकी प्रतिक्रिया की प्रतियां भी मांगी थीं।

    सहारा समूह और पूर्ववर्ती बैंक ऑफ राजस्थान द्वारा अनियमितताओं के बारे में उनकी पूछताछ के संबंध में, उन्हें बताया गया कि ये आरटीआई अधिनियम की धारा 8 (1) (ई) के तहत भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 NB के तहत छूट की श्रेणी में आती हैं।

    इन प्रतिक्रियाओं पर भरोसा करते हुए, याचिका में कहा गया है, "उपरोक्त प्रतिक्रियाएं इस माननीय न्यायालय के 16.12.2015 के फैसले के पूर्ण उल्लंघन में हैं। इसलिए तत्काल अवमानना ​​याचिका को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।" इस तरह की सामग्री के साथ याचिकाओं में RBI के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने की मांग की गई है।

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