"राइट टू प्रोटेस्ट कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता"; सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग जजमेंट के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज की

LiveLaw News Network

13 Feb 2021 5:30 AM GMT

  • राइट टू प्रोटेस्ट कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता; सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग जजमेंट के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज की

    सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग जजमेंट के खिलाफ दायर की गई उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें कहा गया है कि असंतोष व्यक्त करने वाले प्रदर्शन निर्धारित स्थानों पर होना चाहिए।

    पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार, कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "हमने पहले के न्यायिक घोषणाओं पर विचार किया है और अपनी राय दर्ज की है कि संवैधानिक योजना, विरोध प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार के साथ आती है लेकिन कुछ कर्तव्यों के लिए बाध्यता के साथ। विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता है। कुछ सहज विरोध हो सकता है। लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है।"

    शाहीन बाग की महिला प्रदर्शनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। शाहीन बाग के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका की संयुक्त सुनवाई की मांग की, जो कि हाल ही के घटनाक्रमों और कृषि कानूनों के दौरान किए गए विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर की गई टिप्पणियों को देखते हुए टिप्पणियां की गईं।

    याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा कि निर्णय की समीक्षा में, अनिवार्य रूप से सरकार की नीतियों का विरोध नागरिकों के अधिकार के संबंध में है।

    उक्त मुद्दे से संबंधित निर्णय की समीक्षा करते हुए, इस न्यायालय ने कतिपय अवलोकनों का निर्णय लिया है और विरोध के अधिकार के संबंध में कुछ निष्कर्ष दिए हैं। इसके साथ ही वर्तमान याचिकाकर्ता / आवेदक के अनुसार विरोध और असंतोष की अवधारणा हमारा मौलिक अधिकार है, जो उन नींवों में से एक है जिन पर हमारा लोकतंत्र खड़ा है।"

    अमित सहानी मामले के फैसले में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने देखा कि,

    "इस प्रकार यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि सार्वजनिक तौर पर इस तरह के कब्जे, चाहे वह स्थल पर हो या कहीं और विरोध प्रदर्शन के लिए स्वीकार्य नहीं है और प्रशासन को अतिक्रमणों या अवरोधों से मुक्त रखने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है।"

    याचिकाकर्ता के अनुसार, 17.12.2020 को सीजेआई के नेतृत्व वाली बेंच के विड्रा ऑर्डर के तहत किए गए अवलोकन के अनुपालन में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार की वैधता और सीमा पर विपरीत विचार है।

    उक्त आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि,

    "हम इस स्तर पर विचार कर रहे हैं कि किसानों के द्वारा किए जा रहे शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन को बिना बाधा के पुलिस द्वारा जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए।"

    समीक्षा याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि सभी नागरिकों के लाभ के लिए उपलब्ध मौलिक अधिकारों की संवैधानिक गारंटी समान है और इसे अलग नहीं किया जा सकता है।

    इसलिए, यह याचिकाकर्ता की प्रार्थना है कि वह कृषि कानूनों की याचिकाओं के साथ उपरोक्त समीक्षा याचिका को क्लब करे ताकि याचिकाकर्ताओं को प्रस्तुतियां करने के लिए मौखिक सुनवाई का मौका मिल सके।

    प्रार्थना में कहा गया कि,

    "2020 की समीक्षा याचिका (C) डायरी नंबर 24552 के साथ अन्य आवेदन के साथ 2020 की डब्ल्यू.पी. (सी) नंबर 1118 (राकेश वैष्णव और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य) और अन्य जुड़ी हुई याचिकाओं को एक साथ क्लब किया जाए।"

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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