सिर्फ इस वजह से नियमित अपील दाखिल करने के अधिकार पर पाबंदी नहीं लग सकती क्योंकि एकतरफा आदेश को निरस्त करने की अर्जी खारिज कर दी गई है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

29 Nov 2019 4:15 AM GMT

  • सिर्फ इस वजह से नियमित अपील दाखिल करने के अधिकार पर पाबंदी नहीं लग सकती क्योंकि एकतरफा आदेश को निरस्त करने की अर्जी खारिज कर दी गई है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रतिवादी को सीपीसी की धारा 96(2) के तहत उसके अपील के वैधानिक अधिकार से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे पहले सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत उसकी एक अपील ठुकराई जा चुकी है।

    न्यायमूर्ति आर.बनुमति, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि आदेश IX नियम 13 सीपीसी के तहत आवेदन धारा 96 (2) सीपीसी के तहत अपील खारिज करने के बाद दायर नहीं किया जा सकता है।

    एन मोहन बनाम आर मधु के मामले में खंडपीठ इस विवाद पर विचार कर रही थी कि इस तथ्य के बावजूद कि आदेश IX नियम 13 सीपीसी के तहत एक आवेदन खारिज कर दिया गया था, धारा 96 (2) सीपीसी के तहत पहली अपील एक वैधानिक अधिकार के रूप में उपलब्ध है।

    अदालत ने कहा,

    " इस प्रश्न पर गौर किया जाना है कि दोनों ही विकल्प को एक ही साथ लागू किया जा सकता है या एक के बाद एक। अनैतिक मुकदमादार पहले सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत आवेदन दायर करेगा और मामले को शीर्ष स्तर तक ले जाएगा। इसके बाद वह सीपीसी की धारा 96(2) के तहत अपील दायर कर सकता है और इस तरह एकतरफा आदेश को चुनौती दे सकता है। उस स्थिति में वादी का काफी समय जाया हो जाएगा।


    जिस प्रश्न पर गौर किया जाना है वह यह है कि एक के बाद एक के बदले इसके प्रतिकारस्वरूप क्या एक ही साथ आवेदन दिया जा सकता है या नहीं। इस मामले में दूसरा मुद्दा है कि एकतरफा कार्रवाई को निरस्त करने के लिए कार्यवाही पर जो समय खर्च हुआ क्या उसको परिसीमन अधिनियम 1908 की धारा 5 के तहत 'पर्याप्त कारण' माना जा सकता है कि नहीं।"

    पीठ ने कहा कि यह प्रश्न कि प्रतिवादी ने समय व्यर्थ गंवाने का रास्ता अपनाया है या फिर संहिता की धारा 962 के तहत इस मामले को नहीं सुना जा सकता है, इन बातों पर हर मामले के तथ्यों की परिस्थितियों के अनुरूप गौर किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    " अगर अदालत इस बात से संतुष्ट है कि प्रतिवादी ने समय गंवाने की रणनीति अपनाई है या जहां इसके कानूनी रूप से उपयुक्त नहीं होने की बात है, तो अदालत सीपीसी की धारा 96(2) के अधीन अपील दायर करने में हुई देरी को माफ़ करने से मना कर सकता है, लेकिन जहां प्रतिवादी सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत मामले को आगे बढ़ा रहा है तो उस स्थिति में ऐसा करना उसे अपील करने के अधिकार से वंचित करना होगा।


    अदालत ने आगे कहा कि जब प्रतिवादी ने किसी एकतरफा आदेश के खिलाफ सीपीसी की धारा 96(2) के अधीन अपील दायर की और अगर वह अपील ख़ारिज कर दी गई तो उसके बाद प्रतिवादी सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत अपील दायर नहीं कर सकता।"

    अदालत ने कहा ,


    " ऐसा इसलिए क्योंकि सीपीसी की धारा 96(2) के अधीन दायर अपील के खारिज होने के बाद मामले में दिया गया मूल आदेश अपीली अदालत के आदेश के साथ जुड़ जाता है, इसलिए सीपीसी की धारा 96(2) के अधीन अपील के खारिज हो जाने के बाद अपीलकर्ता सीपीसी के आदेश IX नियम 13 के तहत राहत की मांग नहीं कर सकता।"

    अदालत ने इस बारे में भानु कुमार जैन बनाम अर्चना कुमार (2005) 1SCC 787 और नीरजा रीयाल्टर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम जंगलु (मृत) मामले में आये फैसले का भी हवाला दिया।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक



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