अदालत में सीमित कार्य होने की वजह से वकीलों को क़ानूनी पेशे से बाहर ढूंढना पड़ रहा है काम

LiveLaw News Network

23 July 2020 4:45 AM GMT

  • अदालत में सीमित कार्य होने की वजह से वकीलों को क़ानूनी पेशे से बाहर ढूंढना पड़ रहा है काम

    COVID-19 महामारी का असर अन्य व्यवसायों पर पड़ा है और क़ानूनी पेशा भी उससे अछूता नहीं है और इस पेशे से जुड़े लोग बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं ।

    महामारी के कारण अदालत की कार्यवाही ऑनलाइन हो रही है और सिर्फ उन्हीं मामलों की सुनवाई हो रही है जो बहुत ही ज़रूरी हैं। अदालत में सीमित सुनवाई की वजह से वहां कामकाज सामान्य से काफ़ी कम हो गया है, जिससे भारी संख्या में वकीलों को कोई काम नहीं मिल रहा है।

    देश भर में महामारी के कारण घोषित लॉकडाउन के बाद क़ानूनी पेशे से जुड़े लोगों को लग रहा था कि धीरे-धीरे प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी और फिर एक दिन अदालत में कामकाज सामान्य रूप से बहाल हो जाएगा। लॉकडाउन में ढील (अनलॉक 1.0) तो दी गई पर अदालतों में कामकाज सामन्य होने से कोसों दूर है।

    वकीलों के संगठनों ने अदालतों में कामकाज सामान्य रूप से बहाल करने की मांग की है, लेकिन अदालतों ने अभी तक उनकी इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया है। और अब हालत यह है कि कोर्ट में कामकाज सामान्य होने की कोई सूरत फ़िलहाल नज़र नहीं आती।

    इस समय जो स्थिति है उसको देखते हुए कई वकील क़ानूनी पेशे के बाहर अन्य तरह का काम करने को मजबूर हो रहे हैं ताकि कठिन वित्तीय स्थिति से वे उबर सकें। ऐसे कई वक़ील जो अपना घर छोड़कर अन्य शहरों में प्रैक्टिस करने चले गए थे, वे सब अब वित्तीय मुश्किलों की वजह से अपने घर वापस आने के लिए मजबूर हुए हैं।

    इनमें से कई वकीलों को पार्ट टाइम काम करना पड़ रहा है, जबकि कुछ वकीलों ने न केवल उस शहर को छोड़ दिया है जहां वे प्रैक्टिस कर रहे थे, बल्कि उन्होंने पूरी तरह क़ानूनी पेशे को ही अलविदा कह दिया है। युवा वकीलों में यह धारणा ज़्यादा देखी गई है जो स्वतंत्र रूप से 2-3 साल से प्रैक्टिस कर रहे थे।

    कुछ दिन पहले यह खबर आयी थी कि तमिलनाडु का एक वक़ील अब पेट भरने के लिए टोकरी बनाने का काम करने लगा है। इस खबर से दुखी छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश पीआर रामचंद्र मेनन ने उसे एक चिट्ठी लिखा जिसमें उन्होंने कुछ प्रेरक बातें की थीं और इसके साथ ही उसे ₹10,000 उपहार भी भेजा।

    "हर रात के बाद सुबह होती है" : लॉकडाउन में टोकरी बनाने को मजबूर वकील को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीआर रामचंद्र मेनन ने दिए 10 हज़ार रुपए

    न्यायमूर्ति मेनन ने लिखा,

    "यह रहम खाकर दिया जा रहा कोई दान नहीं है बल्कि श्रम की गरिमा की परिकल्पना/प्रतिबद्धता के प्रति आपके सकारात्मक नज़रिए के लिए है।"

    उड़ीसा में भी एक वक़ील ने विरोधस्वरूप हाईकोर्ट के ठीक सामने सब्ज़ी बेचना शुरू कर दिया और उसमें इस बात को लेकर नाराज़गी थी कि बार काउंसिल ने वादे के अनुरूप वित्तीय मदद नहीं दी है।

    कर्नाटक हाईकोर्ट के एक वक़ील के बारे में भी खबर है कि उसने अपने गांव में गलियों में खाने-पीने का सामान बेचना शुरू कर दिया है ताकि वह अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके।

    हालांकि, हालात के मारे कई वकीलों के साथ बातचीत करने के बाद लाइव लॉ ने पाया कि यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं है। वित्तीय मुश्किलों की वजह से कई वक़ील अपने घर लौटने के लिए मजबूर हुए हैं, ताकि उन्हें किराया नहीं देना पड़े और दूसरे शहरों में रहने पर होने वाले खर्च से भी वे बच सकें। हक़ीक़त यह है कि कई वकीलों ने अपने पुश्तैनी काम-धंधों को करना शुरू कर दिया है या फिर वे ऐसे काम कर रहे हैं ताकि उन्हें कुछ पैसे की आमदनी हो सके।

    COVID-19 से बचने के लिए ज़रूरी सामानों के साथ साथ कई वकीलों ने पारिवारिक व्यवसाय जैसे प्रॉपर्टी की दलाली जैसे काम कर रहे हैं और इसने इन वकीलों को उनके पेशे से काफ़ी दूर कर दिया गया है। कई मामलों में अपने पेशे से इनकी यह दूरी अल्पकालिक नहीं बल्कि हमेशा के लिए है ताकि वे ज़िंदा बचे रह सकें।

    सुबोध मोहंती फ़ैमिली लॉ और वैवाहिक विवादों को सुलझाने के विषय पर प्रैक्टिस करते थे, लेकिन मार्च में लॉकडाउन की घोषणा के बाद उन्हें जून के शुरू में अपने गांव वापस जाने को बाध्य होना पड़ा, क्योंकि उनके पास आमदनी का कोई ज़रिया नहीं बचा था।

    उन्होंने कहा,

    "हां, मेरे पास कुछ मामले हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है क्योंकि शायद ये मामले इतने आवश्यक नहीं हैं। मैं यह समझता हूं, लेकिन मेरे मुवक्किलों ने मुझे पहले ही पैसे दे रखे हैं और अब वे मुझे बराबर पूछते रहते हैं कि उनके मामले का क्या हुआ। उनको इतना ही समझाया जा सकता है।

    फिर, ताज़ा मामले आ नहीं रहे हैं। मेरी आय ख़त्म हो चुकी है और दिल्ली में रहना कम खर्चीला नहीं है। यही कारण है कि मैंने अपने घर बात की और फिर भुवनेश्वर वापस आ गया।"

    मोहंती ने मछली पालन से संबंधित व्यवसाय करने की कोशिश की है। हालांकि, वह इस बारे में निश्चित नहीं हैं कि यह व्यवसाय कितना दिन तक चल पाएगा।

    मोहंती ने कहा,

    "मैं पिताजी को पिछले एक-दो साल से यह व्यवसाय शुरू करने को कह रहा था। उनके पास ज़मीन थी जो काफ़ी समय से किसी प्रयोग में नहीं थी। इसमें एक प्राकृतिक तालाब है। सो हम लोगों ने नर्सरी से मछली के बीज ख़रीदकर अब इसमें मछली पालन कर रहे हैं। परिवार मत्स्यपालन में दिलचस्पी लेता रहा है और अब जबकि मेरे पास समय तो है लेकिन पैसे नहीं, मैंने इसके साथ ही सब्ज़ी का फसल लगाने की सोची है और अब देखना है कि यह कैसे हो पाता है।"

    एक अन्य वक़ील हैं, सुधीर जैन जो पिछले चार वर्षों से निचली अदालत में आपराधिक क़ानून की प्रैक्टिस कर रहे थे, अब मध्य प्रदेश में अपने गांव लौट चुके हैं। यहां वह अपने पारिवारिक व्यवसाय रियल इस्टेट में ख़रीद-फ़रोख़्त में हाथ बंटा रहे हैं।

    उन्होंने कहा,

    "ऐसा नहीं है कि यह काम इस समय काफ़ी चल रहा है पर हक़ीक़त यह है कि मैं दिल्ली में आगे और नहीं रह सकता था। मैंने अपने क्लर्क से भी अपने गांव लौट जाने को कहा, क्योंकि मैं अप्रैल के बाद उसे वेतन दे पाने की स्थिति में नहीं था। कोई मदद नहीं मिल रही थी और अदालत के खुलने की कोई संभावना नहीं देखते हुए यहां काफ़ी ज़्यादा अनिश्चितता थी।"

    यह पूछे जाने पर कि घर पर वह क्या काम कर रहे हैं, जैन ने हंसते हुए कहा, "मैने लोगों को कुछ मकान दिखाए हैं। जैसा कि स्वाभाविक है, लॉकडाउन के बाद से शायद ही किसी ने मकान के ख़रीद-फ़रोख़्त में कोई दिलचस्पी दिखाई है, लेकिन चूंकि अब कुछ पेशेवर अपने शहर वापस लौट रहे हैं, मेरे पिताजी को लगता है कि हो सकता है आने वाले दिन बेहतर हों। कुछ तो किया यहां, दिल्ली में तो उतना भी नहीं मिला इन महीनों में।"

    वक़ील तविश सिंह भी आपराधिक क़ानून की प्रैक्टिस करते हैं और जब क़ानूनी पेशे की हवा निकल गई तो उन्होंने कुछ अतिरिक्त आय करने की सोची और उन्होंने COVID-19 से जुड़े आवश्यक वस्तुओं जैसे पीपीई किट्स, मास्क आदि की बिक्री शुरू कर दी।

    उन्होंने कहा,

    "उस समय यह उचित लगा क्योंकि यह मामला नया था और हर दूसरा आदमी यह काम कर रहा था। इसलिए मैंने भी कुछ सौदा करना चाहा, पर उन दिनों मेरे पास संसाधन नहीं थे। लेकिन इस बात को अब दो महीने हो गए और आज मैं मेडिकल सप्लाई के व्यवसाय से जुड़े एक व्यक्ति की मदद कर रहा हूं, जो मेरे परिचित हैं। ये सारी वस्तुएं सर्टिफ़ाइड हैं, इसलिए कोई दिक्कत नहीं है।"

    यह पूछने पर कि वह दुकान में क्या करते हैं, उन्होंने कहा, "मैं उनका सेल्स का काम देखता हूं और इसके लिए मुझे कई बार फॉर्मेसी और केमिस्ट से सीधे संपर्क करना पड़ता है।"

    इसके अलावा देश भर में वकीलों के क़ानूनी पेशे से अलग काम करने की बातें सामने आ रही हैं।

    दिल्ली की एक संस्था विधि सेंटर फ़ॉर लीगल पॉलिसी ने हाल ही में अपने एक सर्वे में कहा है कि दिल्ली हाईकोर्ट के जिन वकीलों का सर्वे किया गया उनमें से 80% ने कहा कि अपने क़ानूनी प्रैक्टिस के प्रथम वर्ष में वक़ीलों की आमदनी प्रतिमाह ₹5000 से ₹ 20,000 के बीच होती है।

    सर्वे में शामिल इलाहाबाद, बॉम्बे, केरल, मद्रास और पटना के वकीलों में से 40% की राय यह थी कि अपने प्रैक्टिस के प्रथम दो वर्षों के दौरान युवा वकीलों की आमदनी ₹2000 से ₹5000 के बीच होती थी।

    बार काउंसिल और ग़ैर-क़ानूनी कार्य करने पर प्रतिबंध

    बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के नियम 47 से 52 वकीलों पर कोई अन्य रोज़गार अपनाने पर प्रतिबंध लगाता है। एडवोकेट अधिनियम, 1961 की धारा 35 भी यह कहता है कि अगर कोई वक़ील क़ानूनी पेशे से अलग कोई पेशा अपनाता है तो उसे क़ानूनी प्रैक्टिस के लिए लाइसेन्स नहीं दिया जा सकता।

    नियम 52 वकीलों को पार्ट-टाइम रोज़गार करने की अनुमति देता है, लेकिन इसके लिए उसे अपने राज्य के बार काउंसिल से इसकी अनुमति लेनी होगी। फिर भी वह ऐसा काम नहीं कर सकता जो उसके पेशेवर काम से मेल नहीं खाता हो और यह क़ानूनी पेशे की प्रतिष्ठा को कम करनेवाला नहीं होना चाहिए।

    वकीलों को पेश आ रही मुश्किलों को देखते हुए कई राज्य बार काउंसिलों ने आगे आकर इन वकीलों की मदद की है।

    जुलाई 10 को दिल्ली बार काउंसिल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर भारत के आकस्मिक कोश और पीएम केयर फंड से ₹500 करोड़ देने का आग्रह किया ताकि मुश्किल में पड़े वकीलों की मदद की जा सके। बीसीडी अध्यक्ष केसी मित्तल ने यह दावा भी किया कि अपने पेशे में मुश्किलों का सामना कर रहे दिल्ली के 1600 वकीलों की मदद की है। इसी तरह असम, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु और पुदुचेरी के बार काउंसिलों ने भी वकीलों की मदद के लिए फंड बनाया है।

    न केवल वित्तीय मदद, बल्कि कुछ बार काउंसिलों ने वकीलों को क़ानूनी पेशे से अलग काम करने की छूट भी दे दी है। गुजरात बार काउंसिल ने वकीलों की मुश्किलों को देखते हुए अपने यहां पंजीकृत वकीलों को 31 दिसंबर 2020 तक कोई और काम करने की छूट दे दी है। बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने अभी तक इस प्रस्ताव पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

    महाराष्ट्र और गोवा के बार काउंसिल ने उन वकीलों से किसी भी तरह की फ़ीस (₹25,000) नहीं लेने की बात कही है जो कोई और काम करना चाहते हैं और बाद में समय ठीक होने पर दुबारा प्रैक्टिस शुरू करना चाहते हैं।

    सूत्रों से पता चला है कि कई राज्यों के बार काउंसिल सुप्रीम कोर्ट से बात कर केंद्रीय आकस्मिक कोश से फंड प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच, संघर्ष कर रहे और अप्रसन्न वकीलों को अपनी आजीविका के लिए ऐसे अन्य तरीक़ों से धन कमाना पड़ेगा जिसकी अनुमति है।

    (निजता का ख़याल करते हुए लोगों के नाम बदल दिए गए हैं)

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