"रेप एंड मर्डर" भारत के उन मामलों की सूची, जिनमें मौत की सजा दी गई : प्रोजेक्ट 39 (एनएलयू-डी) रिपोर्ट
LiveLaw News Network
19 Jan 2020 12:30 PM IST
''यौन अपराधों से संबंधित हत्याओं (हत्या,जिनमें यौन अपराध शामिल था) के मामलों में सत्र न्यायालय द्वारा सबसे ज्यादा मौत की सजा दी गई हैं और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में दी गई मौत की सजा की पुष्टि की है। सत्र अदालतों द्वारा यौन अपराधों के मामलों में दी जाने वाली मौत की सजा का अनुपात वर्ष 2016 से लगातार बढ़ रहा है।''
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली, के प्रोजेक्ट 39ए द्वारा प्रकाशित 'डेथ पेनल्टी रिपोर्ट इन इंडिया : एनुअल स्टैटिस्टिक्स' के अनुसार भारत में मृत्युदंड के मामले में 2019 एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा।
पिछले वर्ष के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2001 के बाद से मुख्य रूप से पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के कार्यकाल के दौरान अधिकतम मौत की सजा के मामलों (27) को सूचीबद्ध किया और उन पर सुनवाई की। यह संभवतः न्यायमूर्ति गोगोई द्वारा मौत की सजा के मामलों की सुनवाई को दी गई प्राथमिकता के कारण था।
इनमें से अधिकांश मामलों में सजा में बदलाव कर दिया गया था और छह मामले ऐसे थे जिनमें सजा की पुष्टि की गई थी। 2019 में मौत की सजा में बदलाव करते समय आमतौर पर आह्वान किया गया कारक परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से उत्पन्न 'अवशिष्ट संदेह' था, जो सजा का आधार बना था।
इन मामलों में तर्क की लाइन यह थी कि हालांकि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराए जाने के लिए पर्याप्त समर्थन था, लेकिन मौत की सजा देना उचित नहीं था।
इस प्रकार बेहतर सबूत के लिए सजा के मामले में अपेक्षाकृत एक उदार दृष्टिकोण लिया गया। इस तर्क का उपयोग 3 मामलों में 3 व्यक्तियों की मौत की सजा को बदलने में किया गया था।
यह चार साल (65.38 प्रतिशत या 26 में से 17) में उच्च न्यायालयों द्वारा सबसे अधिक संख्या में पुष्टि यानि मौत की सजा की पुष्टि का वर्ष था। इसके विपरीत, इस साल ट्रायल अदालतों द्वारा मौत की सजा दिए जाने की संख्या पिछले चार साल में सबसे कम थी।
31 दिसंबर तक 378 कैदी डेथ रो यानि मौत की सजा पाए हुए थे। सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश (54) से हैं, इसके बाद महाराष्ट्र (45) और मध्य प्रदेश (34) से हैं। विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, गोवा, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम राज्यों में पिछले चार वर्षों में मौत की सजा नहीं दी गई है।
यह ध्यान रखना उचित है कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा का मुद्दा अब भारत में मृत्युदंड पर बहस का केंद्र बना हुआ है। हालांकि कम मामलों में मौत की सजा दी गई है, परंतु 2016 के बाद से यौन अपराधों से जुड़ी हत्या (हत्या,जिनमें यौन अपराध शामिल था) के मामलों में दी गई मौत की सजा का अनुपात सबसे अधिक है।
न्यायालयों ने 2016 में यौन अपराधों से जुड़ी हत्या के 18 प्रतिशत (150 में से 27) मामलों में मौत की सजा दी। 2019 में, यह बढ़कर 52.94 प्रतिशत (102 में से 54 मामलों में) हो गया था, जो चार वर्षों में सबसे अधिक था।
इसके अलावा, सत्र अदालतों द्वारा दी गई मौत की सजा की कुल संख्या में गिरावट के बावजूद, इन मामलों में यौन अपराधों का अनुपात 2018 में 41.35 प्रतिशत (162 में से 67) से बढ़कर 2019 में 52.94 प्रतिशत (102 सजाओं में से 54) हो गया।
वर्ष 2019, पॉक्सो अधिनियम में संशोधन के माध्यम से कड़े अनिवार्य न्यूनतम दंडों और बच्चों पर भेदक यौन या पेनिट्रेटिव सैक्सुअल हमले के लिए मौत की सजा का प्रावधान करने के कारण महत्वपूर्ण था।
हालांकि यह संशोधन पूर्वप्रभावी रूप से लागू नहीं है, सुप्रीम कोर्ट ने दो मामलों में मौत की सजा की पुष्टि करने के लिए इस विधायी के माध्यम से परिलक्षित सार्वजनिक नीति पर भरोसा किया, जो इसके दायरे में नहीं आते थे।
भारत ने ''फांसी की सजा, यातना या अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या सजा''के लिए उपयोग किए जाने वाले सामानों के आयात, निर्यात और हस्तांतरण के लिए सामान्य अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा पेश किए गए प्रस्ताव पर वोट करने से भी परहेज किया था।
इस संबंध में, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव पॉलोमी त्रिपाठी ने कहा कि यातना के साथ मौत की सजा देना अस्वीकार्य है, साथ ही कहा कि भारत में मृत्युदंड कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद दिया जाता है।
रिपोर्ट लिखने वाले : गेल एंड्रयू और प्रीति प्रतिश्रुति दास
डेटा और अनुसंधान रणनीति : वर्षा शर्मा और प्रीतम रमन गरिया
अनुसंधान सहायक : हार्दिक बैद सुप्रिया शेखर