अपने ही आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा राजस्थान हाईकोर्ट, SC ने एक पीठ के लॉकडाउन के दौरान जमानत मामले सूचीबद्ध ना करने के फैसले पर रोक लगाई 

LiveLaw News Network

4 April 2020 5:03 AM GMT

  • अपने ही आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा राजस्थान हाईकोर्ट, SC ने एक पीठ के लॉकडाउन के दौरान जमानत मामले सूचीबद्ध ना करने के फैसले पर रोक लगाई 

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा पारित उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें हाईकोर्ट रजिस्ट्री को निर्देश दिया था कि वह लॉकडाउन की अवधि के दौरान जरूरी मामलों के रूप में जमानत और सजा निलंबन की अर्जियों को सूचीबद्ध ना करे।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा दायर अपील में इस आदेश पर रोक लगा दी।

    दरअसल न्यायमूर्ति पंकज भंडारी ने कहा था कि इस तरह के मामलों को अत्यधिक जरूरी नहीं माना जा सकता है।

    आदेश में उल्लिखित कारणों में से एक यह था कि जमानत देने, सजा का निलंबन आदि,के संबंध में मामले में आवश्यक रूप से सार्वजनिक अधिकारियों और वकीलों पर आगे के काम का बोझ होगा जैसे कि संबंधित जेल के समक्ष आदेश प्रस्तुत करना, जमानत बांड का निष्पादन, जमानत की श्योरटी की व्यवस्था आदि।

    जस्टिस भंडारी ने कहा,

    "यदि अदालत की ओर से निर्देश का पालन किया जाना है तो या मामले को अनुमति दी जानी है या मामले को स्थगित किया जाना है। यदि एसटी / एसटी के तहत जमानत अर्जी / अपील की अनुमति है, तो आदेश नीचे की अदालत में भेजा जाना है, ज़मानत वहां पेश करनी होगी। नीचे की अदालत में जमानत बॉन्ड के लिए वकील की उपस्थिति सुनिश्चित करनाआवश्यक है। रिहाई के आदेश को अदालत के कर्मचारियों के साथ जेल भेजना होगा।

    यदि सजा के निलंबन के लिए आवेदन की अनुमति दी जाती है तो आदेश का ट्रायल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए जिसमें सजा पारित की है। वर्तमान में प्रत्येक जिले में सीमित समय के लिए सीमित संख्या में असाधारण अत्यावश्यक मामलों से निपटने के लिए कर्मचारी कार्यशील हैं, उस स्थिति में संबंधित ट्रायल कोर्ट के जमानतदार कर्मचारियों को उपस्थित होकर फाइल को ट्रेस करने और संबंधित अदालत की फाइल में निश्चित बांड को सत्यापित करना आवश्यक होगा।"

    इसलिए, हाईकोर्ट ने कहा था कि "एक आरोपी या दोषी की रिहाई कई लोगों के जीवन को खतरे में डाल देगी और राज्य द्वारा पूर्ण लॉकडाउन के लिए किए गए उपायों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी।"

    न्यायालय ने ये भी कहा,

    "एससी / एसटी अधिनियम के तहत आपराधिक अपील में आरोपी के पक्ष में कोई भी आदेश पारित करने से पहले शिकायतकर्ता को प्रभावी सेवा देनी होगी, जो एससी / एसटी अधिनियम का जनादेश है।

    वर्तमान लॉकडाउन की स्थिति में भी पुलिस कर्मियों के माध्यम से नोटिस भेजने से COVID ​​-19 फैलने का खतरा हो सकता है क्योंकि यहां तक ​​कि पुलिस कर्मियों को भी क्वारंटीन किया गया है।

    इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है, इसलिए पुलिस कर्मियों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे शिकायतकर्ता को नोटिस आदि सर्विस करने के लिए "अधिनियम" के तहत दिए गए जरूरी कार्य को छोड़ देंगे और अपने निजी वाहनों में सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करेंगे जिससे केस डायरी को प्रस्तुत किया सके, जिससे उसको और समुदाय को COVID -19 का खतरा पैदा हो। "

    ये आदेश एक दोषी द्वारा दायर किए गए दूसरे जमानत आवेदन पर पारित किया गया था।

    न्यायमूर्ति भंडारी ने यह भी कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय में होली, दशहरा, दीवाली और शीतकालीन अवकाश कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह तक के होते हैं, जिस अवधि में जमानत के आवेदन और सजा के निलंबन के लिए आवेदन न्यायालय द्वारा नहीं लिए जाते हैं।

    कोर्ट ने DG जेल की रिपोर्ट पर भी विचार किया कि राज्य की जेलों में भीड़भाड़ नहीं है। न्यायमूर्ति भंडारी ने कहा कि लॉकडाउन के उल्लंघन करने करने की कीमत और कई लोगों की जान जोखिम में डालकर किसी आरोपी या दोषी की रिहाई को "अतिआवश्यक मामले" की श्रेणी में नहीं माना जा सकता है।



    Next Story