दूसरे पद पर भेजे बगैर उच्चतर वेतनमान वाले आयवर्ग में रखा जाना भी पदोन्नति का हिस्सा हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

8 Aug 2020 5:30 AM GMT

  • दूसरे पद पर भेजे बगैर उच्चतर वेतनमान वाले आयवर्ग में रखा जाना भी पदोन्नति का हिस्सा हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि बिना किसी अन्य पद पर भेजे बगैर भी उच्चतर वेतनमान वाले वर्ग में शामिल करना पदोन्नति का हिस्सा हो सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली अग्निशमन सेवा (डीएफएस) के उन टेलीफोन ऑपरेटरों द्वारा दायर अपील ठुकरा दी, जिन्हें बाद में रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में तैनात किया गया था।

    इस मामले में विवाद एश्योर्ड कैरियर प्रोगेसन (एसीपी) योजना शुरू करने से संबंधित 'ऑफिस मेमोरेंडम' (कार्यालयीन ज्ञापन) की व्याख्या को लेकर है, जिसके तहत नियमित सेवा में क्रमश: 12 और 24 साल पूरे करने के बाद दो वित्तीय उन्नयन (अपग्रेडेशन) दिये जाने का फैसला किया गया था। इस मामले के अपीलकर्ताओं ने नौ अगस्त 1999 को दिल्ली अग्निशमन में टेलीफोन ऑपरेटर्स / रेडियो टेलीफोन ऑपरेटर्स (आरटीओ) के रूप में 12 साल नौकरी पूरी करने के बाद पहला वित्तीय अपग्रेडेशन का दावा किया था, लेकिन ऐसा करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया गया था कि उन्हें उपरोक्त पद पर भेजा जाना पदोन्नति का ही हिस्सा था।

    कोर्ट के समक्ष विचारार्थ यह मुद्दा था कि क्या आरटीओ के तौर पर उनकी प्रतिनियुक्ति पदोन्नति मानी जाएगी या क्या यह महज पदों का हेरफेर थी, क्या अपीलकर्ता एसीपी योजना की दृष्टि से एसीपी हासिल करने के हकदार हैं?

    अपीलकर्ताओं एवं सरकार दोनों ने ही 'भारत संचार निगम लिमिटेड बनाम आर. शांताकुमारी वेलुसामी' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था कि अपग्रेडेशन और प्रोमोशन के बीच अंतर है। अपीलकर्ता की दलील थी कि यह 'पदोन्नति' नहीं है, जबकि सरकार की दलील थी कि इस मामले के मौजूद तीन पहलू (i) न्यूनतम पांच साल की सेवा की पूर्व योग्यता, (ii) उच्चतर वित्तीय परिलब्धियां और (iii) किसी खास प्रशिक्षण का कठोर होना, यह स्पष्ट करता है कि इन्हें एसीपी योजना के उद्देश्य से पदोन्नति के तौर पर विचार किया जाना चाहिए।

    न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा :

    " इस निष्कर्ष पर पहुंचने का आधार बीएसएनएल मामले में तय किये गये सिद्धांत हैं। निस्संदेह, ऐसे मामलों में बेहतर विभेद पैदा होता है, लेकिन प्रत्येक मामले के तथ्यात्मक बिंदुओं पर विचार करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना जरूरी है। कैडर के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप न केवल पद का पुन: निरूपण हुआ, बल्कि चयन प्रक्रिया के एक तत्व के आधार पर अपीलकर्ताओं को बहुत उच्च वेतनमान दिया गया। हम ऐसा इसलिए कहते हैं कि शुरुआत में ही पांच साल की नौकरी की आवश्यकता होती है।

    इस प्रकार सभी टेलीफोन ऑपरेटर नये पद के लिए खुद ही पात्र नहीं हो जायेंगे। निस्संदेह उपरोक्त वर्णित वित्तीय परिलब्धियां काफी अधिक हैं। तीसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अपीलकर्ताओं को एक विशेष प्रशिक्षण के माध्यम से गुजरना पड़ा था। इन सारी कवायदों को केवल कैडर का पुन: निरूपण और पुनर्गठन नहीं कहा जा सकता।"

    बीएसएनएल मामले के फैसले में पैरा-29 के सब-पैरा के अनुसार, किसी अन्य पद पर भेजे बगैर अपेक्षाकृत उच्च वेतनमान वाले वर्ग में भेजना पदोन्नति का हिस्सा होता है। मौजूदा मामले में पद को उच्चतर वेतनमान और विशेष प्रशिक्षण के आधार पर पुन: निरुपित किया गया है। अपीलकर्ताओं के वकील की दलीलों से इतर यह मामला सब-पैरा तीन के तहत नहीं आता है, जहां उन सभी के लिए उच्च वेतनमान उपलब्ध है, जो किसी चयन प्रक्रिया में शामिल हुए बिना ही पात्रता की शर्तों को पूरा करते हैं। इसमें चयन प्रक्रिया का एक तत्व प्रशिक्षण और पांच साल की नौकरी का मानदंड मौजूद है। इसी तरह, ऐसा नहीं है कि आवश्यकता केवल न्यूनतम पांच साल सेवा की है, ताकि यह सब-पैरा चार के तहत कवर हो।

    केस का ब्योरा

    केस नं. : सिविल अपील नं. 5829-5830/2012

    केस का नाम : रमानंद बनाम मुख्य सचिव, दिल्ली सरकार एवं अन्य

    कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस

    वकील : एडवोकेट बलबीर सिंह गुप्ता और एएसजी माधवी दीवान

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