जब कानून में कोई अवधि निर्दिष्ट न हो तो भी उचित अवधि के भीतर कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
25 Aug 2022 11:57 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब कानून में किसी कार्यवाही के लिए कोई अवधि का जिक्र नहीं होता है, तो अधिकारियों को उचित अवधि के भीतर कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता होती है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने वर्ष 1992-1993 के कुछ लेनदेन की व्याख्या करने के लिए कुछ बैंकों के खिलाफ वर्ष 2002 में जारी 'कारण बताओ नोटिस' रद्द कर दिया।
इस मामले में सिटी बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के खिलाफ फेरा के तहत कार्रवाई शुरू की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए उस कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जिसके खिलाफ भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हालांकि पीठ ने अपीलकर्ता और प्रतिवादियों द्वारा दी गयी दलीलों को रिकॉर्ड पर लिया, लेकिन पहली बार संज्ञान लिया कि इस मामले में 'कारण बताओ नोटिस' वर्ष 2002 में जारी किये गये थे, यानी 1992-1993 के कथित लेनदेन की तारीख से लगभग एक दशक की अवधि के बाद।
इस संबंध में पीठ ने कहा,
"यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि जब कार्यवाही को एक विशेष अवधि के भीतर शुरू करने का कानूनी प्रावधान होता है तो उसे उक्त अवधि के भीतर शुरू करने की आवश्यकता होती है। हालांकि, जहां क़ानून में ऐसी कोई अवधि प्रदान नहीं की गई है, तब भी अधिकारियों को उचित अवधि के भीतर उक्त कार्यवाही शुरू करना जरूरी होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 'उचित अवधि क्या होगी', इसका निर्धारण प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।…
..जाहिर है, वर्तमान मामलों में, कथित लेनदेन वित्तीय वर्ष 1992 और 1993 के दौरान हुए थे। उक्त लेनदेन के लिए 'कारण बताओ नोटिस' वर्ष 2002 में जारी किए गए थे और वह भी फेरा की समाप्ति अवधि समाप्त होने यानी एक जून 2002 से ठीक पहले। इसलिए हमारा सुविचारित विचार है कि 'कारण बताओ नोटिस' और उसके तहत जारी कार्यवाही इस संक्षिप्त आधार पर निरस्त किए जाने के लिए उत्तरदायी हैं।"
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि बैंकिंग कंपनी (रिकॉर्ड के संरक्षण की अवधि) नियम, 1985 के तहत बैंक को क्रमशः पांच साल और आठ साल के लिए रिकॉर्ड को संरक्षित करने की आवश्यकता होती है। पीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि इस आधार पर भी, 'कारण बताओ नोटिस' जारी रखने की अनुमति देना और आठ साल से भी अधिक समय से पहले हुए लेनदेन के तहत कार्यवाही जारी रखना अनुचित और अतार्किक होगा।
मामले का विवरण
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम सिटी बैंक एनए| 2022 लाइव लॉ (एससी) 704 | सीए 9337/2010 | 24 अगस्त 2022 | जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा
वकील: अपीलकर्ता के लिए एएसजी ऐश्वर्या भट्टी – (भारत सरकार), प्रतिवादी के लिए- सीनियर एडवोकेट राजीव के. विरमानी, सीनियर एडवोकेट ए.एम. सिंघवी, वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर, अधिवक्ता संजय गुप्ता
हेडनोट्स
लिमिटेशन - जब क़ानून के तहत प्रदान की गई किसी विशेष अवधि के भीतर कार्यवाही शुरू करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उक्त अवधि के भीतर शुरू करना जरूरी होता है। हालांकि, जहां क़ानून में ऐसी कोई अवधि प्रदान नहीं की गई है, तब भी अधिकारियों को उचित अवधि के भीतर उक्त कार्यवाही शुरू करना जरूरी होता है। इसमें कोई शक नहीं कि 'उचित अवधि क्या होगी', यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। (पैरा 19)
विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 - बैंकिंग कंपनी (अभिलेखों के संरक्षण की अवधि) नियमावली, 1985 - बैंकों के खिलाफ शुरू की गई फेरा कार्यवाही - वर्ष 2002 में जारी किए गए कारण बताओ नोटिस, यानी 1992-93 के कथित लेने-देन की तारीख से लगभग एक दशक की अवधि के बाद, कानून में मान्य नहीं थे - बैंकों को क्रमशः पांच साल और आठ साल के लिए रिकॉर्ड को संरक्षित करने की आवश्यकता होती है - कारण बताओ नोटिस की अनुमति देना और आठ साल से भी अधिक समय से पहले हुए लेनदेन के तहत कार्यवाही जारी रखना अनुचित और अतार्किक होगा।
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