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जब मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त का इकबालिया बयान ऑडियो-विडियो माध्यमों से रिकॉर्ड नहीं किया जाता हो तो अधिवक्ता की उपस्थिति अनिवार्य नहीं - सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network
8 Nov 2019 5:37 AM GMT
जब मजिस्ट्रेट के सामने अभियुक्त का इकबालिया बयान ऑडियो-विडियो माध्यमों से रिकॉर्ड नहीं किया जाता हो तो अधिवक्ता की उपस्थिति अनिवार्य नहीं - सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह अनिवार्य नहीं है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के तहत एक कबूलनामा या इकबालिया बयान या स्वीकारोक्ति अधिवक्ता की उपस्थिति में ही आवश्यक रूप से करवाई जानी चाहिए। बशर्ते इसके कि जब इस तरह का इकबालिया बयान ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज किया जा रहा हो।

पीठ वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा की दलीलों का जवाब दे रही थी। वरिष्ठ अधिवक्ता लूथरा समीक्षा याचिकाकर्ता मनोहरन की तरफ से पेश हुए थे, जिसे मौत की सजा दी गई है। उन्होंने दलील दी थी कि धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही के दौरान एक वकील की अनुपस्थिति ने अभियुक्त के प्रति पूर्वाग्रह पैदा कर दिया है।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पीठ के लिए बोलते हुए कहा कि-क्या अनिवार्य है, पहले जैसा उल्लेख किया जा चुका है, कि मजिस्ट्रेट को खुद बयान की स्वैच्छिकता से संतुष्ट होना चाहिए। वहीं सभी वैधानिक सुरक्षा उपायों- जिनमें अभियुक्त के इकबालिया बयान की स्वैच्छिकता और उसके नजीतों से उसे अवगत कराना या उसकी जानकारी में लाना शामिल है। इनका सावधानीपूर्वक अनुपालन किया जाना चाहिए।

सीआरपीसी की धारा 164 (1) का उल्लेख करते हुए,जो 31 दिसम्बर 2009 से प्रभावी हुई है, कोर्ट ने कहा कि-

''संहिता की धारा 164 इस बात पर विचार नहीं करती है कि अधिवक्ता की उपस्थिति में ही एक स्वीकारोक्ति या बयान जरूरी होना चाहिए, सिवाय, जब इस तरह के इकबालिया बयान को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक साधनों के साथ दर्ज किया जाता हो।''

अभियुक्त द्वारा देरी से इंकार करना स्वीकारोक्ति में स्वैच्छिकता की धारणा को मजबूत करेगा

पीठ ने यह भी कहा कि अभियुक्त द्वारा जल्द से जल्द मुकर जाना चाहिए अन्यथा स्वीकारोक्ति में स्वैच्छिकता का एक मजबूत अनुमान या धारणा बन जाएगी।

वर्तमान मामले में स्वीकारोक्ति को आरोप-प्रत्यारोप या चार्जफ्रेम के चरण या स्टेज के दौरान या फिर अभियोजन पक्ष द्वारा करवाई गई 47 गवाहों की के परीक्षण के दौरान चुनौती नहीं दी गई थी। इन सबके बजाय याचिकाकर्ता के कोड की धारा 313 के तहत परीक्षण या गवाही के दौरान गुप्त रूप से लिखे गए पत्र के माध्यम से केवल आंशिक रूप इकबालिया बयान पर आपत्ति की गई।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मुकदमे के फाग-अंत या परीक्षण के अंत में इस तरह की आपत्ति या इंकार करना स्वाभाविक नहीं था, बल्कि उसे सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था, जो शायद रक्षा रणनीति का एक भाग था।

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