30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने के यूजीसी के दिशा निर्देशों के खिलाफ छात्रों की याचिका पर जस्टिस अशोक भूषण की एससी बेंच अगले दो दिनों में सुनवाई करेगी

LiveLaw News Network

23 July 2020 2:34 PM IST

  • 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने के यूजीसी के दिशा निर्देशों के खिलाफ छात्रों की याचिका पर जस्टिस अशोक भूषण की एससी बेंच अगले दो दिनों में सुनवाई करेगी

    Pleas Challenging UGC Directive To Wrap Final Year Exams By September 30 To Be Taken Up In Two Days By Bench Headed By Justice Ashok Bhushan

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि यूजीसी के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका (ओं) पर जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच अगले दो दिनों में सुनवाई करेगी। इन याचिकाओं में 6 जुलाई को जारी किए गए यूजीसी दिशानिर्देशों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से निर्देश जारी करने की मांग की गई है। 6 जुलाई को यूजीसी के दिशानिर्देशों में, सभी विश्वविद्यालयों / कॉलेजों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश दिया गया था।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस प्रस्तुति पर ध्यान दिया कि जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने 18 जुलाई को युवा सेना द्वारा दायर एक ऐसी ही याचिका को खारिज कर दिया था।

    अधिवक्ता ध्रुव मेहता ने अंतिम वर्ष के कानून छात्र यश दुबे की याचिका का भी उल्लेख किया जिसमें पीठ के समक्ष यूजीसी के अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द करने की मांग की गई है।

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विश्वविद्यालयों और संस्थानों द्वारा 6 जुलाई, 2020 की अधिसूचना जारी करते हुए परीक्षा आयोजित करने की अनुमति दी थी और विश्वविद्यालयों को यूजीसी के दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा आयोजित करने का आदेश दिया

    वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता ने एक ऐसी ही याचिका का उल्लेख किया, जो एक समान प्रार्थना के लिए दायर की गई है।

    याचिकाकर्ताओं, जिनमें एक COVID पॉजिटिव छात्र भी शामिल है, उसने कहा है कि ऐसे कई अंतिम वर्ष के छात्र हैं, जो या तो खुद या उनके परिवार के सदस्य COVID पॉजिटिव हैं।

    "ऐसे छात्रों को 30 सितंबर, 2020 तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना, अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।"

    गृह मंत्रालय की अधिसूचना के बाद, यूजीसी ने अंतिम सेमेस्टर के छात्रों की परीक्षा के लिए संशोधित दिशानिर्देश जारी किए, जिसमें विश्वविद्यालयों को ऑफलाइन (पेन और पेपर) / ऑनलाइन / मिश्रित (ऑफलाइन + ऑनलाइन) मोड में परीक्षा आयोजित करने का निर्देश दिया गया है।

    एडवाकेट अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से दायर, याचिका में दावा किया गया है कि आमतौर पर 31 जुलाई तक छात्रों को मार्कशीट/ डिग्री प्रदान की जाती है, हालांकि वर्तमान मामले में, परीक्षाएं 30 सितंबर तक समाप्त होंगी।

    याचिका में कहा गया है,

    "मार्कशीट/ डिग्री के विलंब अवार्ड होने के कारण, याचिकाकर्ता और कई अन्य अंतिम वर्ष के छात्र उच्च पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने और / या नौकरी पाने के बहुमूल्य अवसरों से वंचित हों जाएंगे, जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।"

    याचिका में दलील दी गई है कि अंतिम वर्ष के छात्रों को भी CBSE, ICSE, ISC, NIOS आदि के छात्रों के बराबर रखा जाना चाहिए, जिन्होंने COVID-19 के कारण अपने 10 वीं / 12 वीं बोर्ड परीक्षाओं को रद्द कर दिया और छात्रों के "पिछले प्रदर्शन/ आंतरिक मूल्यांकन" के आधार पर परिणाम घोषित किया।

    याचिका में उन्होंने यूजीसी को आंतरिक मूल्यांकन पूरा कराने का निर्देश देने की मांग की है और 31 जुलाई, 2020 को या उससे पहले अंतिम वर्ष के सफल छात्रों को रिजल्ट/ डिग्री अवार्ड करने का निर्देश देने को कहा है।

    याचिका में निम्न शिकायतों को शामिल किया गया है- -

    उत्तरदाताओं द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित कराने का लिया गया निर्णय, पूरी तरह मनमाना और सनक भरा है। अन्य हितधारकों, जैसे डॉक्टरों, शिक्षकों, छात्रों, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों आदि से परामर्श भी नहीं किया गया है। इस प्रकार के निर्णय की पूरी उत्पत्ति त्रुट‌िपूर्ण और गलत है।

    -उत्तरदाताओं ने बिहार, असम और उत्तर पूर्वी राज्यों के लाखों छात्रों की दुर्दशा को नजरअंदाज कर दिया है, जो वर्तमान में लगातार बाढ़ का सामना कर रहे हैं।

    -रेलवे की आवाजाही नहीं हो रही है और मात्र कुछ चुनिंदा ट्रेनें ही चल रही हैं। ऐसी स्थिति में, एक छात्र, जिसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट के माध्यम से परीक्षा केंद्र पर जाना है, उसे भारी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा।

    -COVID-19 के प्रकोप के कारण, पूरे भारत में किराए पर/ पीजी आवास प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि मकान मालिक आवास देने के लिए तैयार नहीं हैं। -COVID-19 संकट के कारण वित्तीय अवसरों में कमी आई है और प्रभावित छात्रों के माता-पिता अत्यधिक वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं।

    ऐसी स्थिति में, उन पर, परीक्षा में उप‌स्थित होने के लिए, संतानों के परिवहन, आवास और चिकित्सा उपचार का बोझ डालना पूरी तरह से अन्यायपूर्ण, अनुचित और अनपेक्षित है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में COVID-19 के कारण अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द कराने के लिए कानून के छात्र की ओर से दायर जनहित याचिका पर महाराष्ट्र सरकार, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को नोटिस जारी किया था।

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