नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू करने और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

24 Dec 2019 1:10 PM GMT

  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम को लागू करने और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

    सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) को लागू करने और जान-माल को नुकसान पहुंचाने वालों और जिन पार्टियों ने कथित रूप से इन्हें उकसाया है, उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है। सीएए के खिलाफ चल रहे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर यह याचिका दायर की गई है।

    याचिकाकर्ता ने देश के एक जागरूक के रूप में खुद को पेश करते हुए देश भर में हो रह जानमाल के नुकसान पर चिंता जताते हुए, शीर्ष अदालत से सीएए को संवैधानिक घोषित करने का आग्रह किया है और इसे सभी राज्यों में ''आक्रामकता से'' लागू करने के निर्देश देने की मांग की है।

    वकील विनीत ढांडा के माध्यम से दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि विरोध प्रदर्शन, जो पूरे देश में हुए हैं, ये उन राजनीतिक दलों से प्रेरित हैं जो सत्ता से बाहर हैं और केंद्र सरकार के खिलाफ उनके प्रतिशोध के परिणामस्वरूप हो रहे हैं।

    यह भी आरोप लगाया गया है कि ऐसे राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा गलत जानकारी फैलाई गई है, जिससे मुस्लिम समुदाय के मन में डर और चिंता की भावना पैदा हुई हैं।

    याचिकाकर्ता ने ''राजनीतिक व्यक्तियों''पर सरकार के खिलाफ साजिश करने और अपने स्वयं के राजनीतिक एजेंडे के चलते भय और हिंसा का माहौल बनाने का आरोप लगाया है, जिससे लगभग 50 लोगों की जान चली गई है और सैकड़ों करोड़ रुपए की सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ है।

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि इन घटनाओं के परिणामस्वरूप देेश की बदनामी हुई है और यह संविधान के ''अनुच्छेद 111 का घोर उल्लंघन'' है।

    ''पूरे भारत के विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंधित राजनीतिक व्यक्तियों ने गलत अफवाहें फैलाना और गुमराह करना शुरू कर दिया और जिससे देश भर के मुस्लिम लोगों के मन में डर और चिंता की भावना पैदा हुई। विभिन्न राजनीतिक दलों से संबंधित राजनीतिक व्यक्ति जो सत्ता से बाहर हैं, ने मिलकर सरकार के खिलाफ साजिश रची है।''

    ''सरकार और उसके प्रगतिशील दृष्टिकोण के खिलाफ प्रतिशोध के साथ राजनीतिक व्यक्तियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपने निहित राजनीतिक हित के लिए घृणा, भय, हिंसा का माहौल बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न हिस्सों में लगभग 50 बहुमूल्य जीवन चले गए हैं और देश में करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हो गई है।

    भय और हिंसा के नकारात्मक वातावरण के कारण न केवल बहुमूल्य जीवन की हानि हुई है, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान हुआ है, बल्कि पूरे देश में भारी आर्थिक नुकसान हुआ है और हमारे देश का नाम भी खराब हुआ है।''

    याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि ''झूठी अफवाहें और डर'' शुरू में एक विधायक के माध्यम से दिल्ली से फैले थे। जिसके बाद यह भी आरोप लगाया कि अन्य राजनीतिक दलों ने ''जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्रों को दिल्ली शहर में अशांति पैदा करने के लिए उकसाया।''

    आगे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का नाम लेते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा है कि अब छात्रों के लिए भारत विरोधी रुख अपनाना फैशनेबल हो गया है, जिसे राजनीतिक दलों और ''शहरी नक्सलियों'' द्वारा देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पंजीकृत किया जाता है।

    ''जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा चाहे बात,याकूब मेमन की फांसी या अफजल गुरु को फांसी देने के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अपमानित करने की हो या नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद पुलिस के साथ लड़ाई करने की,एंटीइंडिया स्टैंड इन संस्थानों से संबंधित कई छात्रों का फैशन बन गया है, जो अन्यथा अपने दिग्गज छात्रों की उपलब्धि के लिए प्रसिद्ध हैं।

    इन संस्थानों से संबंधित छात्रों को विभिन्न राजनीतिक दलों और शहरी नक्सलियों द्वारा हिंसा और भारत विरोधी गतिविधियों के लिए उकसाया जाता है, जो हमारे देश के विकास के खिलाफ हैं।

    विभिन्न संगठनों के कई लेखों का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा कि उसने असम, हरियाणा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में हिंसा के मद्देनजर प्रभावी उपाय के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है।''

    हिंसा के संबंध में अपनी चिंता के अलावा, याचिकाकर्ता ने सीएए को संवैधानिक घोषित करने के लिए आधार भी तैयार किया और देश भर में इसे लागू करने की मांग की।

    यह प्रस्तुत किया गया है कि अधिनियम तीन देशों में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का उद्देश्य रखता है, जहां ऐसे अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यक द्वारा क्रूरता की जाती है, और इसलिए यह हमारे देश का कर्तव्य है, उन्हें बचाएं। संशोधन के इरादे को देखते हुए, याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि यह भारत में मुस्लिम समुदाय को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करेगा।

    ''यह हमारे देश का प्रमुख कर्तव्य है कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश के इन अल्पसंख्यक समुदायों को इन देशों के बहुसंख्यक समुदाय द्वारा क्रूरतापूर्ण तरीके से मारने, धर्म परिवर्तित करवाने, बलात्कार करने से बचाया जाए। उपरोक्त निर्दोष अल्पसंख्यकों को बचाने के उद्देश्य से, नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित कर दिया गया है।''

    अपनी प्रार्थना में याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा है कि वह केंद्र सरकार को सीएए के बारे में व्यापक रूप से जानकारी देने का निर्देश दे ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि यह संविधान की भावना या किसी भी नागरिक के खिलाफ नहीं है। इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने मांग की है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया जाए कि झूठी सूचना फैलाने वाले मीडिया घरानों के खिलाफ कार्रवाई करे और साथ ही चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह अफवाह फैलाने वाले राजनीतिक दलों को ट्रैक करे और उनके खिलाफ कार्रवाई करें।

    चूंकि सुप्रीम कोर्ट सर्दियों की छुट्टियों के कारण वर्तमान में बंद है, इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि सीएए के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के चलते तत्काल सुनवाई की मांग की जाएगी।

    याचिका की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें





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