फोर्टिफाइड चावल की बोरियों पर अनिवार्य रूप से लेबल लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

Brij Nandan

21 Jan 2023 10:29 AM IST

  • Supreme Court

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    खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2018 के खंड 7(4) के अनुपालन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका दायर की गई है, ताकि फोर्टिफाइड चावल की बोरियों पर अनिवार्य लेबलिंग की जा सके।

    जब मामले की सुनवाई हुई तो शुक्रवार को जस्टिस एस.के. कौल और जस्टिस ए.एस. ओका ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने प्रासंगिक नियमों का पालन नहीं किए जाने के मुद्दे को लेकर संबंधित अधिकारियों से संपर्क किया था।

    याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सकारात्मक जवाब दिया। उन्होंने प्रस्तुत किया कि नवंबर, 2020 के बाद के अभ्यावेदन किए गए हैं।

    खंडपीठ ने भूषण से कहा कि वे अभ्यावेदन को रिकॉर्ड पर रखें।

    पीठ ने कहा,

    “अभिवेदन को रिकॉर्ड पर रखा जाए। मामले को अगले सोमवार के लिए लिस्ट किया जाता है।"

    जस्टिस कौल ने संकेत दिया कि इस मुद्दे पर पहुंचने का सही तरीका यह होगा कि अदालत अधिकारियों को याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विचार करने और जवाब देने का निर्देश दे। उन्होंने माना कि इस तथ्य को देखते हुए कि याचिका में उठाया गया मुद्दा विशेष ज्ञान की मांग करता है, संबंधित प्राधिकरण द्वारा प्रतिनिधित्व के निर्धारण से बेंच को लाभ होगा और जब वह याचिका पर विचार करेगी।

    फूड फोर्टिफिकेशन का मतलब कटाई के बाद के चरण में प्रसंस्करण के दौरान रासायनिक या सिंथेटिक विटामिन और खनिजों को मिलाना है।

    याचिका में कहा गया है कि यह प्रदर्शित करने के लिए वैज्ञानिक सबूत हैं कि कुछ चिकित्सीय स्थितियों से पीड़ित लोगों के लिए आयरन-फोर्टिफाइड चावल विपरीत-संकेत है। खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य पदार्थों का फोर्टिफिकेशन) विनियम, 2018 के तहत, संबंधित अधिकारियों को विपरीत संकेतों के लिए सही लेबलिंग प्रदान करने के लिए नियुक्त किया गया है।

    याचिका में तर्क दिया गया है कि चावल-फोर्टिफिकेशन कार्यक्रमों को सूचित सहमति के अधिकार के सिद्धांत का पालन करना चाहिए, जो कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में परिकल्पित निजता के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस तरह के किलेबंदी के बारे में लोगों को सूचित करने के लिए अधिकारियों के कर्तव्य पर जोर देता है।

    याचिका आगे प्रस्तुत करती है कि किसी व्यक्ति की स्पष्ट सूचित सहमति के बिना किसी व्यक्ति की शारीरिक अखंडता पर अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।

    ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ संगठनों द्वारा किए गए तथ्यान्वेषी दौरों के अनुसार खाद्य सुरक्षा और मानक विनियमों के तहत लेबलिंग आवश्यकताओं और चावल के फोर्टिफिकेशन और सार्वजनिक वितरण के तहत इसके वितरण की पायलट योजना के परिचालन दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा था।

    याचिका में उठाई गई एक और चिंता यह है कि पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली), आईसीडीएस (एकीकृत बाल विकास सेवाएं) और एमडीएम (मिड डे मील) के सार्वजनिक वितरण कार्यक्रमों में फोर्टिफाइड-चावल का कोई विकल्प नहीं है। यह प्रस्तुत करता है कि अगर लाभार्थियों को फोर्टीफाइड चावल का उपभोग करने में सक्षम नहीं होने के कारण इन कार्यक्रमों से बाहर निकलने के लिए बाध्य किया जाता है तो उनके वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

    [केस टाइटल: वंदना प्रसाद और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य WP(C) सं. 24/2023]


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