(निश्चित अदायगी) वादी को यह साबित करना होगा कि उसके पास बकाया भुगतान के लिए संसाधन उपलब्ध है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Feb 2020 4:45 AM GMT

  • (निश्चित अदायगी) वादी को यह साबित करना होगा कि उसके पास बकाया भुगतान के लिए संसाधन उपलब्ध है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की निश्चित अदायगी से संबंधित मुकदमे में वादी को यह साबित करना अनिवार्य है कि उसके पास बकाये भुगतान के लिए संसाधन उपलब्ध है।

    न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ निश्चित अदायगी संबंधी मुकदमे से उत्पन्न एक अपील पर विचार कर रही थी।

    ट्रायल कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि वादी यह साबित करने में असफल रहा था कि वह करार पर अमल करने को तैयार है और इच्छुक भी। उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील स्वीकार कर ली थी, जिसके बाद बचाव पक्ष ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    सुप्रीम कोर्ट को इस बात का निर्धारण करना था कि क्या वादी करार से संबंधित शर्तों को पूरा करने को तैयार था और इच्छुक भी।

    बेंच ने 'तैयारी और इच्छा' की अवधारणा एक बार फिर इस प्रकार की :

    "शब्द 'रेडी' (तैयार) और 'विलिंग' (इच्छुक) का तात्पर्य यह है कि वादी अनुबंध के उन हिस्सों को उनके तार्किक अंत तक ले जाने के लिए तैयार था, क्योंकि यह उसकी अदायगी पर निर्भर करता है। भुगतान से राहत के लिए वादी को लगातार यह साबित करना होगा कि वह समझौते के अनुपालन के लिए तैयार है और इच्छुक भी।

    यदि वादी इसे साबित करने में असफल रहता है तो उसे यह मौका नहीं दिया जा सकता। इस बात के निर्धारण के लिए कि वादी समझौते पर अमल के लिए तैयार है और इच्छुक भी, कोर्ट को सबसे पहले वादी के व्यवहार पर विचार करना चाहिए और अन्य तथ्यों के साथ याचिका दायर करने की परिस्थितियों पर भी। इतना ही नहीं बचाव पक्ष के जिस राशि का भुगतान वादी को करना है उसके लिए भी यह साबित करना होगा कि वादी के पास यह राशि उपलब्ध है।

    समझौते करने के दिन से लेकर हुक्मनामे की तारीख तक उसे साबित करना चाहिए कि वह समझौते का पालन करने के लिए तैयार है और इच्छुक भी। कोर्ट तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर इस बात का निर्धारण कर सकता है कि वादी समझौते के तहत बकाया भुगतान के लिए तैयार था और हमेशा तैयार था।"

    रिकॉर्ड में लिए गए साक्ष्यों पर ध्यान देते हुए बेंच ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि फिर से किये गये समझौते की स्थिति में बकाये के भुगतान के लिए वादी के पास संसाधन मौजूद है। ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए बेंच ने कहा

    अपनी याचिका के समर्थन में सबूत उपलब्ध कराए बिना वादी का केवल यह दलील देना कि वह भुगतान को तैयार हैं, मंजूर नहीं किया जा सकता। यह जरूरी नहीं कि वादी अपने पास उपलब्ध राशि पेश करे, बल्कि जरूरी यह है कि वह साबित करे कि उसके पास भुगतान के लिए संसाधन उपलब्ध है।

    मुकदमे का ब्योरा :-

    केस का नाम : सी एस वेंकटेश बनाम ए एस सी मुर्ति (मृत)

    केस नंबर : सिविल अपील संख्या 8425 /2009

    कोरम : न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता

    वकील: एस एन भट (अपीलककर्ता के लिए) और सान्या कुमार (प्रतिवादी के लिए)


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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