पराली जलाने पर प्रतिबंध सुनि़श्चित करने के लिए SC में याचिका, किसानों को पराली हटाने वाली मशीनों पर किए खर्च को वापस करने की मांग
LiveLaw News Network
28 Sept 2020 5:42 PM IST
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों पर उनके संबंधित राज्यों में पराली जलाने पर पूर्ण प्रतिबंध सुनिश्चित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है।
जैसा कि पराली जलाने का सीज़न (सितंबर से जनवरी तक) आ चुका है, याचिकाकर्ता- 3 तीसरे साल के लॉ स्टूडेंट, अमन बांका और बारहवीं कक्षा के छात्र, आदित्य दुबे ने वकील निखिल जैन के माध्यम से, इस बात पर प्रकाश डाला कि पराली जलाने का दिल्ली में वायु प्रदूषण में लगभग 40-45% तक योगदान होता है।
इसलिए वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स का स्तर इस साल के दौरान विशेष रूप से COVID - 19 महामारी के मद्देनज़र पराली जलाने के सीज़न के दौरान खतरनाक स्तर पर ना पहुंचे।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में "स्वच्छ जीवन के अधिकार" में स्वच्छ वायु का अधिकार भी मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग है और हर साल सितंबर से जनवरी की अवधि के दौरान दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के स्तर को खतरनाक स्तर से नीचे रखने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की विफलता से उक्त मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है, "उन्होंने प्रस्तुत किया।
उन्होंने आगे कहा,
"वर्ष 2019 में, पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा अगली बुवाई के मौसम के लिए अपने खेतों को साफ़ करने के लिए हज़ारों की संख्या में पराली को जलाया गया, जिसने दिल्ली-एनसीआर में हवा को सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर से भर दिया और परिणामस्वरूप दिल्ली में AQI का स्तर 1000 पार कर गया। दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों के बीच श्वसन, नेत्र और त्वचा संबंधी गंभीर बीमारियां हुईं और यहां तक कि कई नागरिकों की मौत हो गई। यह दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन था। "
अन्य बातों के साथ, उन्होंने संबंधित राज्यों के छोटे और सीमांत किसानों को पराली हटाने वाली मशीनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए राज्यों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की है।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि पंजाब और हरियाणा में पराली की आग "वित्तीय अक्षमता के कारण छोटे और सीमांत किसानों को पराली हटाने की मशीनों को खरीदने या किराए पर लेने में असमर्थता" का एक सीधा परिणाम है, जो उन्हें उनके खेतों में खेती के अवशेषों को जलाने के लिए छोड़ देता है।
स्थिति को सुधारने के लिए, याचिकाकर्ताओं ने निम्नलिखित राहतें मांगी हैं:
• राज्यों को सितंबर, 2020 से जनवरी, 2021 के बीच की अवधि के दौरान पराली हटाने वाली मशीनों के किराये पर एक सीमा तय करने का निर्देश दें;
• राज्यों को सभी छोटे और सीमांत किसानों को पराली हटाने वाली मशीनों को किराए पर लेने के लिए उनके द्वारा खर्च की गई राशि का भुगतान करने का निर्देश देना;
• राज्यों को छोटे और सीमांत किसानों के निजी खेतों से पराली हटाने के काम को मनरेगा के तहत अनुमत कार्य की सूची में शामिल करने का निर्देश देना ताकि मनरेगा श्रमिकों का उपयोग पराली हटाने को सुनिश्चित करने के लिए किया जा सके यदि कहीं पराली हटाने की मशीन उपलब्ध नहीं है;
• राज्य प्रत्यक्ष रूप से उन किसानों पर भारी जुर्माना/सज़ा का प्रावधान करें जो अपने खेतों में पराली को जलाते हैं जबकि राज्यों द्वारा उन्हें पराली को हटाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं
पराली जलाने पर नियमन के अलावा, याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली सरकार को निम्नलिखित निर्देश देने को कहा है :
• निर्देशित करें कि सितंबर, 2020 से जनवरी, 2021 के बीच दिल्ली-एनसीआर में सभी प्रदूषणकारी उद्योगों और निर्माण गतिविधियों को केवल उन दिनों में परिचालन में रहने दिया जा सकता है जब AQI स्तर 150 से कम हो और इस AQI स्तर से ऊपर की वृद्धि के दौरान औद्योगिक और निर्माण गतिविधियों पर एक स्वचालित प्रतिबंध चालू हो सकता है, जो तब तक जारी रह सकता है जब तक AQI स्तर 150 से नीचे नहीं आता;
• निर्देशित करें कि यदि AQI का स्तर लगभग 200 बढ़ जाता है, तो वाहन यातायात के संबंध में दिल्ली सरकार की ऑड-ईवन नीति स्वतः ही चालू हो सकती है, और तब तक जारी रह सकती है जब तक AQI स्तर 150 से नीचे नहीं लौट जाता;
• केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों को नियंत्रित और निगरानी करने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, अधिमानतः न्यायमूर्ति मदन लोकुर की अध्यक्षता वाले एक- सदस्यीय आयोग को नामित करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दिल्ली में AQI स्तर इस साल खतरनाक स्तर तक नहीं बढ़े।
दरअसल वायु प्रदूषण को गंभीरता से लेते हुए, जिसने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र को घेर लिया है, सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में निर्देशों को जारी किया था।
राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया था कि आगे कोई पराली को जलाया ना जाए। इसके अलावा, इसने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में निर्माण और ढहाने की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
न्यायालय ने आगे प्रकाश डाला था कि किसानों को पराली जलाने के लिए दंडित करना अंतिम समाधान नहीं है, बल्कि उन्हें मूलभूत सुविधाओं को प्रदान किया जाना चाहिए।
इस साल जनवरी में, अदालत ने कई दिशा-निर्देश पारित किए जिसमें पराली जलाने से लेकर दिल्ली में वाहनों के उत्सर्जन और निर्माण की धूल से होने वाली समस्या से निपटना शामिल था।
केंद्र सरकार और पंजाब, हरियाणा और यूपी की राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया कि वे पराली जलाने से रोकने के लिए एक व्यापक योजना तैयार करें। उन्हें विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों को पराली हटाने की मशीनों के साथ- साथ कम्बाइन हार्वेस्टर्स, हैप्पी सीडर्स, हाइड्रॉलिकली रिवर्सिबल एमबी प्लॉ जैसी सुविधाएं नि: शुल्क या मामूली किराये के आधार पर उपलब्ध कराने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए कहा गया था।