" पीड़ा है कि आपने इसमें धर्म को शामिल किया " : वक़्फ कानून के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा

LiveLaw News Network

19 Sep 2022 2:40 PM GMT

  •  पीड़ा है कि आपने इसमें धर्म को शामिल किया  : वक़्फ कानून के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा

    वक़्फ वक्फ कानून के खिलाफ याचिकाकर्ता की दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मौखिक रूप से आपत्ति जताई।

    जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की पीठ भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर उसमें याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें वक़्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को दिल्ली हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।

    जस्टिस जोसेफ ने सुनवाई शुरू होने पर कहा कि वह कुछ "अकादमिक प्रश्न" उठाना चाहते हैं और याचिकाकर्ता के वकील सीनियर एडवोकेट रंजीत कुमार का ध्यान हिंदू बंदोबस्ती से संबंधित विभिन्न राज्य कानूनों के प्रावधानों की ओर आकर्षित किया, जो बोर्ड के सदस्यों को अनिवार्य बनाते हैं कि वो हिंदू धर्म को मानते हों।

    जस्टिस जोसेफ ने कहा,

    " मीडिया के कुछ वर्गों में कुछ गलतफहमियों, पूर्ण गलतफहमी के आधार पर बातचीत चल रही है। हमने हिंदू बंदोबस्ती पर राज्य कानूनों की एक सूची तैयार की है। उड़ीसा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, केरल- उन सभी अधिनियमों में, एक है प्रावधान है कि बोर्ड के सदस्य को हिंदू धर्म का पालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, उड़ीसा अधिनियम की धारा 8 देखें। "

    याचिकाकर्ता ने वक़्फ अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है कि वक्फ बोर्ड का सदस्य मुस्लिम का अनुयायी होना चाहिए।

    जस्टिस जोसेफ ने याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज करते हुए कहा,

    "मैं अपने लिए बोल रहा हूं, मुझे अपनी पूरी पीड़ा व्यक्त करनी चाहिए कि यदि आप कहते हैं कि हमारे पास एक ट्रिब्यूनल है और यदि कोई न्यायिक सदस्य नियुक्त किया जाता है, तो वह व्यक्ति धर्म के आधार पर फैसला करेगा? मिस्टर रंजीत कुमार, क्या आप सच में ऐसा कह रहे हैं? क्या हम धर्म के हिसाब से चलेंगे?"

    जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वक़्फ अधिनियम एक नियामक कानून है जो वक़्फ भूमि की रक्षा करना चाहता है और यदि कानून को रद्द कर दिया जाता है, तो इससे केवल अतिक्रमणकारियों को ही लाभ होगा।

    उन्होंने कहा,

    "मुझे दुख होता है कि आपने इसे धर्म पर रखा है, हमें निश्चित रूप से इससे आगे जाना चाहिए। हमें इन मामलों में धर्म के बारे में बात नहीं करनी चाहिए क्योंकि पूरी बात यह है कि यह वक्फ को विनियमित करने वाला है।"

    सुप्रीम कोर्ट के जज ने आगे कहा,

    "वक़्फ बोर्ड एक वैधानिक बोर्ड है और संपत्ति बोर्ड में निहित नहीं है, वे मालिक नहीं हैं। इसके पीछे संभवतः कौन हो सकता है? जो लोग अतिक्रमण करते हैं-चाहे अतिक्रमण करने वाला मुस्लिम या हिंदू या कोई भी व्यक्ति हो"

    "यदि आप इन कानूनों को समाप्त करने की अनुमति देते हैं, तो जो लोग वक्फ चला रहे हैं, वे मुक्त हो जाएंगे । लोग वक़्फ भूमि पर अतिक्रमण कर रहे होंगे। आप इसे हटा नहीं पाएंगे। उस व्यक्ति के धर्म को भूल जाइए जो ट्रिब्यूनल का सदस्य बनने जा रहा है। हमारे पास पर्याप्त प्रशिक्षण है ... यदि कोई अर्ध-न्यायिक सीट पर बैठा है, तो हम उस व्यक्ति के धर्म को नहीं देखते हैं।"

    कुमार ने कहा कि उनका तर्क वक़्फ की किसी भी जमीन को छीनने और उसके दायरे में लाने की शक्ति तक सीमित है।

    जस्टिस जोसेफ ने कहा कि वक़्फ अधिनियम विनियम लाता है, "जब वक़्फ अधिनियम आता है, तो यह वक़्फ को विनियमित करने के लिए होता है। वे संपत्ति के साथ जो कुछ भी चाहते हैं वह नहीं कर सकते ….. आप यहां भेदभाव कैसे लाते हैं? आप धर्म कैसे लाते हैं?",

    जस्टिस जोसेफ ने कहा,

    "आप भेदभाव का आरोप कैसे लगाते हैं? अगर आपका तर्क स्वीकार कर लिया जाता है, तो जो आखिरी बार हंसेगा वह अतिक्रमण करने वाला होगा।" न्यायाधीश ने यह भी बताया कि कुछ वर्गों द्वारा हिंदू बंदोबस्ती पर कानूनों को निरस्त करने की मांग की जा रही है।"

    जस्टिस जोसेफ ने स्थानांतरण की याचिका के संबंध में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित अन्य मामला महाराष्ट्र राज्य वक़्फ बोर्ड की अधिसूचना से संबंधित है और अधिनियम की संवैधानिकता पर सवाल नहीं है। इसलिए, उस संबंध में एकमात्र याचिका दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष है।

    रंजीत कुमार ने तब कहा कि वह पीठ द्वारा उठाए गए सवालों पर विचार करेंगे और वापस लौटेंगे, जिसके कारण पीठ ने मामले को 10 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

    याचिका में कहा गया है कि अधिनियम वक़्फ संपत्तियों के प्रबंधन की आड़ में बनाया गया है, लेकिन हिंदू, बौद्ध या अन्य धर्मों के अनुयायियों के लिए समान कानून नहीं हैं।

    "इसलिए, यह राष्ट्र की धर्मनिरपेक्षता, एकता और अखंडता के खिलाफ है। संविधान में कहीं भी वक़्फ का उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि, यदि अधिनियम को अनुच्छेद 25-26 के तहत गारंटीकृत धर्मनिरपेक्ष मौलिक अधिकारों के लिए अधिनियमित किया गया है, तो यह अनुच्छेद 14-15 के साथ अनुरूप होना चाहिए।"

    यह भी कहा गया कि वक़्फ बोर्डों को अतिक्रमण हटाने के संबंध में धारा 54 और 55 के तहत विशेष अधिकार दिए गए हैं। हालांकि, ट्रस्टी, प्रबंधक, महंत और ट्रस्ट का प्रबंधन करने वाले अन्य व्यक्ति ऐसी शक्तियों का आनंद नहीं लेते हैं। वक़्फ बोर्डों को दिया गया यह विशेष दर्जा स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 14 और 15(1) का उल्लंघन है।

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