पहलू खान हत्याकांड : राजस्थान सरकार ने आरोपियों के बरी करने के निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी
LiveLaw News Network
18 Oct 2019 11:53 AM IST
आखिरकार 2017 के पहलू खान हत्याकांड को लेकर राजस्थान सरकार ने निचली अदालत द्वारा 6 आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ राजस्थान उच्च न्यायालय में अपील दायर कर दी है।
उच्च न्यायालय में ये अपील राजस्थान सरकार द्वारा उस रिपोर्ट के बाद की गई है जिसमें मामले की फिर से जांच के लिए गठित एसआईटी ने पुलिस टीम की गंभीर खामियों का जिक्र किया है। जांच टीम ने सितंबर के पहले सप्ताह में राजस्थान पुलिस के मुखिया को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
पुलिस जांच में हर स्तर पर खामियां
जानकारी के मुताबिक एसआईटी ने 80 पन्नों की अपनी रिपोर्ट में पुलिस जांच में हर स्तर पर खामियां पाई हैं। एसआईटी ने पाया है कि एक महत्वपूर्ण चूक ये रही कि मोबाइल फोन को पुलिस ने जब्त किया लेकिन अदालत में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं किया गया।
गौरतलब है कि अप्रैल 2017 में दिल्ली और जयपुर के बीच मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहलू खान को पीटा गया था। मौके पर 200 लोग मौजूद थे। उससे मारपीट का बकायदा मोबाइल फोन से वीडियो भी बनाया गया। 9 लोगों ( तीन नाबालिग) को आरोपी बनाया गया। तमाम गवाह, वीडियो और बाकी सबूत अदालत में पेश किए गए। लेकिन अगस्त में अदालत ने 6 आरोपियों को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया था।
पुलिस ने की मामले में कमज़ोर जांच
अलवर जिले की अपर सेशन न्यायाधीश डॉ. सरिता स्वामी ने 92 पेज के अपने फैसले में पुलिस की घटिया जांच को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। अदालत ने फैसले में लिखा कि आरोपियों का नाम प्रारंभिक प्राथमिकी में या पहलू खान के मरने से पहले दिए बयान में नहीं था। इन नामों को दो साल बाद जोड़ा गया था जिससे संदेह बढ़ जाता है। अदालत ने कहा कि पुलिस और अभियोजन के लिए अभियुक्तों की गवाहों द्वारा पहचान कराना अनिवार्य था। ऐसी परिस्थितियों में जब आरोपी जेल में थे तो शिनाख्त परेड के रूप में ये पहचान नहीं कराई गई और ना ही अदालत में ये किया गया।
घटना का वीडियो नहींं किया पेश
घटना का एक बड़ा साक्ष्य घटना का वीडियो था। यहां अदालत ने पुलिस को गंभीर खामियों के साथ जांच के लिए फटकार लगाई। जिस फोन पर यह वीडियो शूट किया गया था, जिसमें पहलू को घसीटे जाने और पीटते हुए दिखाया गया था, उसे पुलिस द्वारा कभी जब्त नहीं किया गया था और इसे कभी अदालत में पेश नहीं किया गया। जिस गवाह रवींद्र सिंह ने वीडियो पुलिस को दिया था, उसके बयान अभियोजन पक्ष से मेल नहीं खाते थे ( वो मुकर गया था।)
जांच में खामियों पर अदालत नाराज़
अदालत ने पुलिस द्वारा मरने से पहले पहलू खान के बयान दर्ज करने पर भी सवाल उठाया गया है। अदालत ने कहा कि बयान दर्ज करने से पहले पुलिस ने डॉक्टरों से ये प्रमाण पत्र नहीं लिया कि वो अपने बयान दर्ज करने के लिए एक उपयुक्त स्थिति में था। मामले में इलाज करने वाले डॉक्टरों का बयान और पोस्टमार्टम भी विरोधाभासी हैं। इलाज करने वाले डॉक्टरों ने कहा कि पहलू की दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गई जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि मौत का कारण गंभीर आंतरिक चोट और मारपीट है।
मामले की जांच में गंभीर खामियों पर नाराजगी जताते हुए अदालत ने कहा कि इससे संदेह पैदा होता है और इसका लाभ आरोपी को दिया जाता है। अदालत ने कहा , " किसी घटना के पहले संस्करण में सच्चाई की गुठली होती है .... अगर मामले की तथ्यात्मक बुनियाद में बदलाव होता है तो अदालत को सतर्क होना चाहिए और सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए। "
दरअसल इस मामले की जाँच 2017 में वसुंधरा राजे सरकार द्वारा CB- CID को दी गई थी जिसने मरने से पहले पहलू खान द्वारा बताए गए छह लोगों को छोड़ दिया था। पुलिस का कहना था कि ये लोग अपराध के समय उपस्थित नहीं थे और उनकी मोबाइल लोकेशन तीन किलोमीटर दूर एक गौशाला में पहलू से जब्त की गई गायों के साथ मौजूद होना दिखा रही थी।