दुर्घटना के लिए ज़िम्मेदार अधिकारी नहीं कर सकता उस मामले की जांच -बॉम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
1 Nov 2019 5:45 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) के एक 69 वर्षीय पूर्व कर्मचारी को राहत दे दी है, जिसे 17 साल पहले हुई एक दुर्घटना के मामले में आंतरिक जांच के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप 33 लोगों की मौत हो गई थी।
न्यायमूर्ति आर.वी घुगे एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जो रत्नाकर सुराले द्वारा दायर की गई थी, जिसमें श्रम न्यायालय के एक फैसले को चुनौती दी गई थी। श्रम न्यायालय ने अपने फैसले में निष्कर्ष निकाला था कि सुराले के खिलाफ जांच निष्पक्ष और उचित थी। सुराले की याचिका में औद्योगिक न्यायालय के फैसले को भी जिक्र किया गया, जिसने उसके द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
सुराले ने वर्ष 1978 में एमएसआरटीसी में नौकरी शुरू की थी और वह 1993 से गंगापुर डिपो में हेड मैकेनिक के रूप में काम कर रहा था। 2 मई, 2002 को एक दुर्घटना के बाद राज्य परिवहन की एक बस में आग लग गई और परिणामस्वरूप 33 यात्री जिंदा जल गए। एक विशेष जांच समिति गठित की गई और याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, क्योंकि वह कार्यशाला का प्रमुख मैकेनिक था, इसलिए उसे इस लापरवाही के लिए दोषी ठहराया गया।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उसके वरिष्ठ, मैकेनिकल इंजीनियर औरंगाबाद को इस मामले में जिम्मेदार ठहराया गया था और उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जाना चाहिए था, परंतु हैरानी की बात यह है कि उस वरिष्ठ, मैकेनिकल इंजीनियर को याचिकाकर्ता के खिलाफ आठ जून 2002 को जारी आरोप पत्र की जांच के लिए जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त कर दिया गया।
याचिकाकर्ता के वकील यू.वी खोंडे ने कहा कि एक व्यक्ति, जिसे बस के रखरखाव के संबंध में दोषी ठहराया गया था, उसी को याचिकाकर्ता की लापरवाही के कारण कथित रूप से हुई दुर्घटना के बारे में पूछताछ करने के लिए जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया।
जबकि, प्रतिवादी एमएसआरटीसी और मैकेनिकल इंजीनियर, जो कि जांच अधिकारी थे, उनकी ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ता बीएस देशमुख ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का पिछला रिकॉर्ड बेहद दोषपूर्ण है और वह घोर लापरवाही का दोषी था।
यह घटना इसलिए हुई थी, क्योंकि प्रोपेलर शाफ्ट खराब थी जिसके कारण बस में आग लग गई। यद्यपि मैकेनिकल इंजीनियर को मैकेनिकल पार्ट की उचित मरम्मत नहीं करने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, क्योंकि वह उक्त विभाग के प्रमुख थे। परंतु न तो उनके खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और न ही निगम ने उन्हें किसी भी तरह से दोषी ठहराया है।
कोर्ट का फैसला
फैसले की शुरुआत में जस्टिस घुगे ने कहा कि-
''मेरे विचार में, इस जांच को रद्द किया जा सकता है, अगर यह पाया जाता है कि जांच अधिकारी किसी भी तरह से घटना और उन आरोपों से जुड़ा था, जो आरोप इस कर्मचारी पर लगाए गए थे। ऐसे कारकों का परीक्षण पूर्वाग्रह के टचस्टोन पर होना चाहिए क्योंकि पूछताछ अधिकारी, किसी तरह से खुद भी उसी घटना में शामिल था। ऐसे में उसके निष्कर्षों से आरोपी कर्मचारी के साथ पक्षपात होगा।''
न्यायालय ने उक्त दुर्घटना में औरंगाबाद क्षेत्र के उप महाप्रबंधक चंद्रकांत चव्हाण द्वारा तैयार की गई व्यापक रिपोर्ट का उल्लेख किया। इस रिपोर्ट में यह विशेष रूप से कहा गया था कि उक्त बस में एक मैकेनिकल या यांत्रिक दोष था और इसे विभागीय कार्यशाला अधिकारियों और उक्त विभाग में उक्त पार्ट की मरम्मत से संबंधित कर्मचारियों के पास पूरी तरह से जांच करवाने के लिए भेजा जाना चाहिए था।
मैकेनिकल इंजीनियर उक्त विभाग के प्रभारी थे और यह विश्वास नहीं किया जा सकता था कि उन्हें एक ही पार्ट के बार-बार खराब होने की जानकारी नहीं थी। उनसे उम्मीद की जाती है कि वह इसका अच्छे से परीक्षण या जांच करते। इतना ही नहीं उन्होंने इस पार्ट या भाग को किसी विशेष जांच के लिए भी संदर्भित या रेफर नहीं किया। यह उनकी ओर से लापरवाही और कठोर रवैये को इंगित करता है।
इस प्रकार, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मैकेनिकल इंजीनियर या पूछताछ अधिकारी खुद संदेह के घेरे में था -
''जांच आयोग द्वारा स्पष्ट रूप से निष्कर्ष निकाला गया था कि वह लापरवाही कर रहा था और निश्चित तरीके से जिम्मेदार था। इसी मैकेनिकल इंजीनियर ने आरोपित कर्मचारियों के खिलाफ चार्जशीट तैयार की, पूछताछ की और आरोपित कर्मचारियों को दोषी ठहराया। याचिकाकर्ता इन्हीं में से एक कर्मचारी है। सारा दोष चार्टशीट या आरोपित कर्मचारी पर डाल दिया गया है। यह स्पष्ट है कि उक्त पूछताछ अधिकारी ने श्रमिकों पर सारा दोष आसानी से डाल दिया था ताकि उक्त घटना को स्पष्ट किया जा सके और वह स्वंय को बचा सके।''
अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता को सेवा में एक असाधारण निरंतरता देने से इनकार कर दिया। अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दोनों निर्णयों को रद्द कर दिया है। अदालत ने एमएसआरटीसी को निर्देश दिया है कि वह जांच के मूल रिकॉर्ड लेबर कोर्ट के समक्ष पेश करें। वहीं लेबर कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह शिकायत पर निर्णय लेने के लिए मामले को नए सिरे से सुने और मामले को अगस्त 2020 से पहले निपटा दे।