2009 के संशोधन से पहले आईटी एक्ट सेक्शन 79 के तहत मध्यस्थ को आपराधिक मानहानि से कोई सुरक्षा नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने गूगल से कहा, मुकदमे का सामना करो

LiveLaw News Network

10 Dec 2019 5:17 PM GMT

  • 2009 के संशोधन से पहले आईटी एक्ट सेक्शन 79 के तहत मध्यस्थ को आपराधिक मानहानि से कोई सुरक्षा नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने गूगल से कहा, मुकदमे का सामना करो

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गूगल को एक आपराधिक मानहानि मामले में मुकदमे का सामना करने को कहा और उसकी यह याचिका खारिज कर दी जिसमें उसने कहा था कि इंटरनेट मध्यस्थ होने के कारण उसे दायित्वों से मुक्त किया जाए।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि 2009 में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 में किए गए संशोधन से पहले, एक नेटवर्क सेवा प्रदाता केवल आईटी अधिनियम के तहत दायित्व से मुक्त था। 2009 के संशोधन से पहले संरक्षण अन्य अधिनियमों के तहत उत्पन्न होने वाले दायित्वों तक नहीं था।

    इस तर्क पर यह कहा गया कि Google इंडिया भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के तहत आपराधिक मानहानि के लिए दायित्व से बचने का दावा नहीं कर सकता है, क्योंकि शिकायत में 2009 के संशोधन से पहले हुई थी।

    अदालत ने कहा कि हम अधिनियम की धारा 79 को उसके प्रतिस्थापन से पहले मानते हैं। आईपीसी की धारा 499/500 के तहत अपराध के संबंध में एक मध्यस्थ आपराधिक मानहानि से बच नहीं सकता।

    गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम विशाखा इंडस्ट्रीज़ मामले में जस्टिस अशोक भूषण और के एम जोसेफ की एक पीठ ने फैसला सुनाया।

    एस्बेस्टस शीट बनाने वाली कंपनी विशाखा इंडस्ट्रीज ने 2009 में एक ग्रुप "बैन एस्बेस्टोस" में इसके खिलाफ लेख प्रकाशित करने के लिए एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज की थी। इन लेखों को Google द्वारा प्रदान की गई Google समूह सेवाओं में होस्ट किया गया था। Google इंडिया को इस आधार पर मानहानि की शिकायत में एक पक्ष बनाया गया था कि उसने लेख होस्ट किए थे।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि Google इंडिया ने दिए गए नोटिसों पर कोई कार्रवाई नहीं की। इन नोटिसों में उक्त लेखों को हटाने के लिए कहा गया था। आरोप में कहा गया था कि Google लेख के लेखक के साथ कंपनी के खिलाफ साजिश रच रहा है।

    Google ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और शिकायत को यह कहते हुए रद्द करने की मांग की कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 के तहत मध्यस्थ पर लेखों के प्रकाशन का कोई दायित्व नहीं है। Google ने कहा कि वह न तो लेखों का लेखक था और न ही ब्लॉग का प्रकाशक।

    लेकिन हाईकोर्ट ने कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने देखा कि अगर कोई मध्यस्थ किसी व्यक्ति द्वारा आपत्तिजनक पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहा है तो उसे पीड़ित व्यक्ति द्वारा अधिसूचित किए जाने के बावजूद, वह आईटी अधिनियम के तहत उत्तरदायी होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि Google ने शिकायतकर्ता के नोटिस के बावजूद "अपनी छोटी उंगली तक नहीं हिलाई"। इसलिए, वह आईटी अधिनियम की धारा 79 के अंतर्गत हाईकोर्ट से किसी तरह की रियायत का दावा नहीं कर सकता।

    हाईकोर्ट के निष्कर्षों के खिलाफ Google ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और कहा कि मामले को धारा 79 के आधार पर तय किया जाना चाहिए क्योंकि यह मामला 2009 की संशोधन से पहले खड़ा हुआ था। संशोधन की तारीख से पहले शिकायत दर्ज की गई थी।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि 2009 के संशोधन के बाद, धारा 79 ने मध्यस्थों के संरक्षण का विस्तार किया। संशोधित खंड ने मध्यस्थों को 'किसी भी कानून में निहित कुछ भी होने के बावजूद' दायित्व से छूट प्रदान की। इसका मतलब यह था कि आईटी अधिनियम के अलावा अन्य कानूनों के तहत उत्पन्न होने वाले दायित्वों के लिए भी सुरक्षा उपलब्ध थी।

    इस सुरक्षा के लिए अपवादों में से एक यह था कि धारा 79 (3) (बी) के अनुसार यदि मध्यस्थ को आपत्तिजनक सामग्री का "वास्तविक ज्ञान" था तो 2015 के श्रेया सिंघल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी रूप में 'वास्तविक ज्ञान' का मतलब अदालत या एक सक्षम प्राधिकारी का आदेश माना था ।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 79 (3) (बी) और प्रावधान के लिए श्रेया सिंघल के फैसले में दी गई व्याख्या लागू नहीं हुई थी, क्योंकि 2009 में संशोधन से पहले शिकायत सामने आई थी।

    न्यायमूर्ति जोसेफ द्वारा लिखित निर्णय का अवलोकन किया,

    "यह देखा गया है कि मजिस्ट्रेट ने अपीलकर्ता P5 को को 09.09.2009 को अदालत में पेश होने के लिए समन जारी किया। यदि ऐसा है तो न केवल उस समय शिकायत दर्ज की गई थी जब धारा 79 थी बल्कि यह वर्तमान प्रावधान लागू होने से पहले की गई। यदि ऐसा है, तो दायित्व से छूट का प्रश्न अधिनियम की धारा 79 के तहत तय किया जा सकता है।"

    Google इंडिया ने एक और मुद्दा उठाया था कि वह मध्यस्थ नहीं था क्योंकि यह केवल Google LLC की सहायक कंपनी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस पहलू पर फैसला नहीं सुनाया और कहा कि यह सुनवाई का विषय है।

    शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के उन निष्कर्षों को अस्वीकार किया कि Google इंडिया नोटिस प्राप्त करने के बावजूद कार्रवाई करने में विफल रहा।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने से लिए यहांं क्लिक करेंं



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