कॉलेजियम की सिफारिशों का और प्रकाशन नहीं ? जजों की नियुक्ति में फिर से गोपनीयता बरकरार रखी गई

LiveLaw News Network

18 Oct 2019 5:21 AM GMT

  • कॉलेजियम की सिफारिशों का और प्रकाशन नहीं ? जजों की नियुक्ति में फिर से गोपनीयता बरकरार रखी गई

    जब सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2017 में कॉलेजियम के प्रस्तावों को प्रकाशित करने की प्रथा शुरू की तो इसे एक प्रशंसनीय कदम के रूप में माना गया जो न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगा।

    लेकिन अब एक इशारे में बहुत कुछ कहा गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट में अपलोड किए गए प्रस्तावों में फैसलों के पीछे के विस्तृत कारणों को नहीं बताया गया है। ज्यादातर मामलों में सिफारिशों में केवल यह कहा गया कि उक्त व्यक्ति को न्यायाधीश के लिए उपयुक्त पाया गया है।

    कॉलेजियम के कामकाज में कुछ रहस्यमयी प्रणाली

    फिर भी इन प्रस्तावों के प्रकाशन ने कॉलेजियम के कामकाज में कुछ रहस्यमयी प्रणाली के कामकाज में झलकियां पेश की हैं जिसे कभी सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रूमा पाल ने "देश का सबसे अच्छा रखा हुआ रहस्य" करार दिया था।

    सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पांच हाईकोर्ट के लिए मुख्य न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश की

    हालांकि अब ऐसा लगता है कि उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने प्रस्तावों के प्रकाशन के साथ कुछ काम किया है। 17 अक्टूबर को 'कॉलेजियम की सिफारिशों' के तहत सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट में अपलोड किए गए 7 दस्तावेजों को 'स्टेटमेंट' कहा गया है। वो न्यायाधीशों की नियुक्तियों और स्थानांतरण पर हाल ही में कॉलेजियम के विभिन्न फैसलों पर बयान हैं। ये " बयान" कोई कारण नहीं बताते हैं और ना ही उन न्यायाधीशों का नाम बताते हैं जिनकी सिफारिश की गई।

    एक स्टिंग ऑपरेशन से हंगामा

    उदाहरण के लिए, बयान के विवरणों में से एक जस्टिस राकेश कुमार को पटना उच्च न्यायालय से आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की सिफारिश से संबंधित है। जस्टिस कुमार हाल ही में विवाद का केंद्र बन गए थे जब उन्होंने पटना सिविल कोर्ट में किए गए एक स्टिंग ऑपरेशन में रिश्वत के आरोपों की सीबीआई जांच के आदेश देते हुए न्यायपालिका में भ्रष्टाचार और निष्पक्षता के बारे में तीखी टिप्पणी की थी। जस्टिस कुमार ने इस प्रकार पटना उच्च न्यायालय में हंगामा खड़ा कर दिया था।

    इस पृष्ठभूमि में जस्टिस कुमार को स्थानांतरित करने के निर्णय पर भौहें तनती हैं लेकिन "स्टेटमेंट" किसी भी कारण को निर्दिष्ट नहीं करता है। यहां तक ​​कि न्यायाधीशों के स्थानांतरण की सिफारिश करने के लिए "न्याय के बेहतर प्रशासन" के अक्सर उद्धृत कारण भी नहीं बताए जा रहे हैं।

    गुरुवार को घोषित एक और उल्लेखनीय निर्णय कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पी कृष्ण भट की पदोन्नति का प्रस्ताव है। यह प्रस्ताव पिछले तीन वर्षों से अटका हुआ था और तत्कालीन कॉलेजियम और केंद्र के बीच झड़पें हुई थीं। यह विवाद पूर्व न्यायाधीश जस्टिस जे चेलामेश्वर द्वारा केंद्र के खिलाफ आपत्ति जताने के बाद उठा जिसमें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की पीठ के पीछे कर्नाटक हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से कृष्णा भट पर समानांतर जांच की मांग की गई थी।

    जस्टिस ए के मित्तल के बारे में प्रस्ताव को संशोधित करने का कॉलेजियम का निर्णय भी उत्सुकता पैदा करने वाला है। पहले के प्रस्ताव से भिन्न कॉलेजियम ने मद्रास हाईकोर्ट के बजाय उन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिफारिश करने के अपने निर्णय की घोषणा की है।

    प्रकाशन नियुक्ति प्रक्रिया को समझने में मददगार

    ऐसा नहीं है कि कॉलेजियम के प्रस्तावों के प्रकाशन ने व्यवस्था को पूरी तरह से पारदर्शी बना दिया है। ये अभ्यास सिर्फ पारदर्शिता के लिए दिखावा मात्र बनकर रह गया है क्योंकि इन प्रस्तावों में मानक शब्दावली इसके पीछे के वास्तविक कारणों को छिपाती है। लेकिन कम से कम कुछ मामलों में ये प्रकाशन नियुक्ति प्रक्रिया को समझने में मददगार साबित हुआ है।

    उदाहरण के लिए हाल ही में प्रकाशित एक सिफारिश ने खुलासा किया कि केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक उच्च न्यायालय के लिए कुछ सिफारिशों पर की गई आपत्तियों को खत्म करने के लिए कॉलेजियम ने आईबी की रिपोर्ट पर भरोसा किया था।

    अब ऐसा लगता है कि इस प्रथा को भी, जिसमें कुछ औपचारिक पारदर्शिता दी गई थी, जजों की नियुक्ति को एक पूर्ण रहस्य बनाने की प्रक्रिया के चलते बंद कर दिया गया है।

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