आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में आईपीसी की धारा 306 के तहत सिर्फ इस वजह से स्वतः सजा नहीं क्योंकि आरोपी को आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी पाया गया

LiveLaw News Network

28 Nov 2019 9:11 AM GMT

  • आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में आईपीसी की धारा 306 के तहत सिर्फ इस वजह से स्वतः सजा नहीं क्योंकि आरोपी को आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी पाया गया

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इस वजह से कि आरोपी को आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी पाया गया है और शादी के सात साल के बाद ही पत्नी की मौत हो गई, आरोपी को स्वतः ही आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी नहीं माना जा सकता।

    न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति बीआर गवई की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 306 के तहत सजा दिलाने के लिए अभियोजन को यह सिद्ध करना होगा कि आरोपी के किसी कदम या किसी गैरकानूनी गतिविधि के कारण मृतक ने आत्महत्या की है।

    गुरजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य के इस मामले में पीठ के समक्ष मामला यह था कि जब अभियोजन ने आईपीसी की धारा 498A के तहत क्रूरता का मामला निर्धारित किया और यह भी निर्धारित किया कि मृतक ने शादी के सात साल के अन्दर आत्महत्या कर ली, तो क्या इस स्थिति में आरोपी को अपराध 10 के लिए आईपीसी की धारा 306 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113A के तहत दोषी माना जा सकता है कि नहीं?

    रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ मामले में भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत धारा 113A को लागू करने की कुछ परिस्थितियाँ हैं जिनके बारे में सुनिश्चित होना जरूरी है :

    (i) महिला ने आत्महत्या कर ली है, (ii) आत्महत्या शादी के सात साल के भीतर हुई है, (iii) पति या रिश्तेदार जिन पर आरोप लगे हैं उन लोगों ने उसके साथ क्रूरता बरती है. इस फैसले में अदालत ने इस बात पर गौर किया था कि सिर्फ इस वजह से कि आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी और सजा के योग्य माना गया है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसी साक्ष्य के आधार पर उसे महिला की आत्महत्या के लिए उकसाने का भी दोषी माना जाए।

    पीठ ने कहा,


    "जब कोई मामला दूसरे या तीसरे क्लाज़ में नहीं आता तो इसके बारे में निर्णय पहले क्लाज़ के तहत करना होगा यानी कि क्या आरोपी ने जानबूझकर आत्महत्या के लिए उकसाया है या नहीं और फैसले के लिए इस बात पर बहुत ही नियमित रूप से अमल होता रहा है।"


    इसलिए हमारी राय में सिर्फ इस वजह से कि आरोपी को आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी पाया गया है और उसकी शादी के सात साल के अन्दर उसकी पत्नी ने आत्महत्या कर ली, आरोपी को स्वतः ही आईपीसी की धारा 306 के तहत दोषी नहीं माना जा सकता. जब तक अभियोजन यह सिद्ध न कर दे कि आरोपी के किसी कदम या किसी गैरकानूनी गतिविधि के कारण मृतक उसकी पत्नी ने आत्महत्या की है नहीं तो धारा 306 के तहत उसको दण्डित नहीं किया जा सकता है।"

    अदालत ने इस मामले में पेश सबूतों के बारे में कहा कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा है कि मृतक के खिलाफ इस स्तर की क्रूरता बरती गई कि उसके पास आत्महत्या करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा। अभियोजन किसी सन्देश से परे इस बात को साबित नहीं कर पाया है कि आरोपी की किसी कदम की वजह से वह आत्महत्या करने को बाध्य हुई। अभियोजन इस बारे में ऐसा साक्ष्य अदालत के समक्ष नहीं पेश कर पाया है जो बिना किसी संदेह उसके दोषी होने की बात साबित हो सके. इस बात के साक्ष्य नहीं हैं कि आत्महत्या से ठीक पहले मृतक के साथ क्रूरता हुई।

    फिर, उपलब्ध सबूत के अनुसार गैरकानूनी मांग की जहां तक बात है, मृतक के अंतिम बार अपने माँ-बाप के घर जाने और उसकी आत्महत्या के बीच दो माह का फैसला है। फिर इस बात का कोई सबूत नहीं है उसकी आत्महत्या और अपीलकर्ता की गैरकानूनी मांग के बीच कोई संबंध है।


    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं।



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