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भीमा कोरेगांव मामले में आनंद तेलतुबमडे की जमानत के खिलाफ एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया; मामला 25 नवंबर के लिए लिस्ट

प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े
राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने भीमा कोरेगांव मामले (Bhima Koregaon Case) में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े को जमानत देने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाया है।
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को तत्काल लिस्टिंग के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के समक्ष मामले का उल्लेख किया।
हाईकोर्ट ने 18 नवंबर को जमानत देते हुए आदेश पर एक सप्ताह के लिए रोक लगा दी थी।
शुक्रवार को मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताते हुए सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल से याचिका की प्रति एडवोकेट अपर्णा भट को देने के लिए कहा, जो कैविएट पर तेलतुंबडे के लिए पेश हो रही हैं।
भीमा कोरेगांव मामले में कथित माओवादी कनेक्शन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद एजेंसी के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद 73 वर्षीय को एनआईए ने 14 अप्रैल, 2020 को गिरफ्तार किया था।
हाईकोर्ट के जस्टिस एएस गडकरी और जस्टिस मिलिंद जाधव की खंडपीठ ने तेलतुंबडे को जमानत देते हुए प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि तेलतुंबडे के खिलाफ आतंकवादी गतिविधि के अपराध का कोई सबूत नहीं है।
अदालत ने कहा कि तेलतुंबडे ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, एमआईटी, मिशिगन यूनिवर्सिटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में व्याख्यान देने के लिए दौरा किया था और केवल इसलिए कि उनका भाई भाकपा (माओवादी) का वांटेड आरोपी है, उन्हें उनके कथित प्रतिबंधित संगठन से संबंधों में नहीं फंसाता है।
कोर्ट ने कहा,
"यह देखा गया है कि अपीलकर्ता दलित विचारधारा/आंदोलन के क्षेत्र में बौद्धिक प्रमुखता का व्यक्ति है और केवल इसलिए कि वह वांटेड आरोपी मिलिंद तेलतुंबडे का बड़ा भाई है, जो 30 साल पहले सीपीआई (एम) के कारण की वकालत करने के लिए अंडरग्राउंड हो गया था। इससे जोड़ कर अपीलकर्ता को नहीं फंसाया जा सकता है।"