NGO फंड को लेकर गुजरात सरकार और तीस्ता सीतलवाड़ दोनों पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, दोनों को नोटिस
Live Law Hindi
12 March 2019 3:19 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 1.40 करोड़ रुपये के दुरुपयोग के संबंध में दाखिल याचिकाओं पर गुजरात सरकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता-तीस्ता सीतलवाड़ और उनके पति
जावेद आनंद को नोटिस जारी किए हैं। ये नोटिस राज्य सरकार और दंपत्ति द्वारा गुजरात हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोनों पक्षों द्वारा दाखिल याचिका को लेकर जारी किए गए हैं।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्रॉस अपील पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस मामले को एक साथ सुना जाएगा लेकिन अगली सुनवाई के लिए कोई तारीख तय नहीं की जा रही है।
इससे पहले गुजरात सरकार ने 8 फरवरी, 2019 को तीस्ता और उनके पति को सबरंग ट्रस्ट में रुपयों के गबन के मामले में हाईकोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत देने के फैसले को चुनौती दी है जबकि दंपत्ति ने इस फैसले में हाईकोर्ट द्वारा की गई कुछ प्रतिकूल टिप्पणियों को हटाने के लिए उच्चतम न्यायालय में अर्जी दाखिल की है।
गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने किया जबकि वरिष्ठ वकील सीयू सिंह और वकील रमेश
पुखरंभ कुमार दंपत्ति के ओर से अदालत में पेश हुए।
दंपति को अग्रिम जमानत देते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें अहमदाबाद पुलिस के साथ सहयोग करने के लिए कहा था। पुलिस ने फंड के कथित गबन को लेकर पिछले साल उनके खिलाफ धोखाधड़ी, विश्वास के उल्लंघन और विभिन्न आरोपों के तहत मामला दर्ज किया था।
गुजरात सरकार के अनुसार वर्ष 2010 में भारत सरकार ने प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के लिए कार्यक्रम के तौर पर स्कूल शिक्षा विभाग और सर्वशिक्षा विभाग के तहत शिक्षा के लिए एचआरडी मंत्रालय के माध्यम से एक योजना शुरु की थी। तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद के सबरंग ट्रस्ट ने मानव संसाधन विकास अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध रूप से मंत्रालय से 40 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त की।
दंपत्ति द्वारा चलाए जाने वाले एक और ट्रस्ट CJP (सिटीजन जस्टिस फॉर पीस ) में फील्ड समन्वयक के रूप में कार्यरत रईशन अजीज़खान पठान द्वारा शिकायत दर्ज की गई कि उन्होंने प्राप्त निधि का उपयोग अपने निजी खर्चों के लिए किया। इस पर गुजरात पुलिस ने तीस्ता और जावेद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किया।
पिछले साल मार्च में निचली अदालत ने दंपत्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी लेकिन इस साल 8 फरवरी को गुजरात उच्च न्यायालय ने जांचकर्ताओं को सहयोग करने के निर्देश के साथ उन्हें अग्रिम जमानत दे दी।
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए गुजरात सरकार ने कहा है कि सत्र न्यायालय ने अग्रिम जमानत की याचिका को ये कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस मामले की जांच एक महत्वपूर्ण चरण पर है और आरोपी व्यक्तियों को किसी भी तरह की राहत जांच क्षेत्र में घुसपैठ के समान होगी। हालांकि इसके बावजूद उच्च न्यायालय ने दोनों को जमानत दे दी थी।
राज्य ने शिकायत की है कि उच्च न्यायालय ने उन्हें इसके बावजूद जमानत दे दी कि आरोपियों ने जांच में सहयोग नहीं किया और पुलिस द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए उन्होंने अनिच्छा प्रदर्शित की है।