मुस्लिम लीग ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए कुछ जिलों में रहने वाले अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति देने वाली केंद्र की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी

LiveLaw News Network

1 Jun 2021 8:20 AM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) ने केंद्र की उस अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए कुछ जिलों में रहने वाले अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए आमंत्रित किया गया है।

    इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने याचिका में नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को चुनौती देते हुए कहा कि केंद्र ने पहले कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि नागरिकता संशोधन अधिनियम के नियम नहीं बनाए गए हैं।

    इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने एडवोकेट हारिस बीरन और एडवोकेट पल्लवी प्रताप के माध्यम से याचिका दायर की है।

    याचिका में कहा गया है कि,

    "प्रतिवादी केंद्र सरकार ने इस न्यायालय को दिए गए आश्वासन को दरकिनार करते हुए हाल ही में जारी आदेश दिनांक 28.5.2021 के माध्यम से नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत परिकल्पित अपने दुर्भावनापूर्ण योजना को लागू करने का प्रय़ास किया है।"

    याचिका में कहा गया है कि आईयूएमएल सीएए के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाला पहला पक्षकार था, लेकिन इससे पहले ही अधिनियम को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी।

    आईयूएमएल ने विदेशी आदेश, 1948 के आदेश 3A और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950 के नियम 4(ha) को भी लोगों के बीच की आस्था और धर्म के आधार पर भेदभाव करने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15,21 का उल्लंघन और संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करने के आधार पर चुनौती दी है।

    याचिका में कहा गया है कि याचिका के लंबित रहने के दौरान भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने आगे बढ़कर 28.5.2021 को आदेश जारी किया है जो स्पष्ट रूप से गैर-कानूनी है और अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है।

    निम्नलिखित आधारों पर इस अधिसूचना को संविधान का उल्लंघन कहा गया है;

    1. नागरिकता संशोधन अधिनियम की धारा 5 (1) (ए) (जी) व्यक्तियों को पंजीकरण के माध्याम से नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमित देती है और अधिनियम की धारा 6 किसी भी व्यक्ति (अवैध प्रवासी नहीं) को देशीयकरण के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति देती है।

    याचिका में कहा गया है कि इसलिए एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से दो प्रावधानों की प्रयोज्यता को कम करने में प्रतिवादी संघ द्वारा किया जा रहा प्रयास गैर-कानूनी है।

    2. दोनों प्रावधान एक साथ पढ़ने पर धर्म के आधार पर आवेदकों के वर्गीकरण की अनुमति नहीं देते हैं और इसलिए यह आदेश स्वयं प्रावधानों के विपरत है।

    3. यह आदेश अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह व्यक्तियों को उनके धर्म के आधार पर असमान रूप से विभाजित करके एक विशेष वर्ग के लोगों को पंजीकरण और नागरिकता के लिए आवेदन करने का अधिकार प्रदान कर रहा है।

    याचिका में अंत में कहा गया है कि यदि आदेश को लागू किया जाता है और व्यक्तियों को उनके धर्म के आधार पर नागरिकता दी जाती है और उसके बाद यदि न्यायालय संशोधन अधिनियम और नियमों को गैर-कानूनी ठहराती है तो वर्तमान आदेश पर लोगों को दी गई नागरिकता वापस लेना एक कठिन कार्य होगा और इसे लागू करना लगभग असंभव होगा।

    केंद्र सरकार के 28 मई,2021 के आदेश के तहत (i) गुजरात राज्य में मोरबी, राजकोट, पाटन और वडोदरा (ii) छत्तीसगढ़ राज्य में दुर्ग और बलौदाबाजार (iii) राजस्थान राज्य में जालोर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर और सिरोही (iv) हरियाणा राज्य में फरीदाबाद और (v) पंजाब राज्य में जालंधर जिला के कलेक्टर को (धारा 5 के तहत भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण के लिए या धारा 6 के तहत देशीयकरण प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए) के तहत केंद्र सरकार की शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है।

    केस का शीर्षक: इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य

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