अल्पसंख्यक संस्थान में प्रशासन के अधिकार में कुप्रशासन का अधिकार शामिल नहीं- दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

5 Oct 2019 4:06 AM GMT

  • अल्पसंख्यक संस्थान में प्रशासन के अधिकार में कुप्रशासन का अधिकार शामिल नहीं- दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान के प्रशासन के अधिकार में कुप्रशासन का अधिकार शामिल नहीं है। अगर ऐसे संस्थानों के संचालन के लिए निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया जाता है तो विनियामक प्राधिकरण ऐसे संस्थानों द्वारा लिए गए निर्णयों में हस्तक्षेप कर सकता है।

    वर्तमान मामले में, याचिकाकर्ता ने एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में शिक्षक के स्थायी पद के लिए विधिवत चुने जाने के बावजूद ,उसकी सेवा समाप्त करने के मामले को चुनौती दी थी। उसने अपने वेतन के भुगतान की भी मांग की थी, जिसकी गणना उसने अपनी नियुक्ति की तारीख से करने की बात कही थी।

    दिल्ली सरकार द्वारा दिए गए आदेश के बाद याचिकाकर्ता को उसकी नियुक्ति के लगभग सात महीने बाद हटा दिया गया था। सरकार ने नियुक्ति प्रक्रिया में अनियमितताओं का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता को उसकी सेवाओं से मुक्त करने का एक कारण बताया था।

    याचिकाकर्ता का तर्क

    ए.पी.एस अहलूवालिया ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश होकर कहा कि अदालत के सामने प्राथमिक सवाल यह है कि क्या याचिकाकर्ता को किसी भी अनियमितता के लिए पीड़ित होने दिया जा सकता है, जबकि नियुक्ति की प्रक्रिया में विसंगति को इंगित करने में सरकार के साथ-साथ स्कूल भी सात महीने से अधिक समय तक चुप रहा।

    अहलूवालिया ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली स्कूल शिक्षा नियम, 1973 के नियम 98 (2), जो शिक्षा निदेशालय से अनुमोदन या अनुमति लेने की आवश्यकता को बताता है, वर्तमान मामले पर लागू नहीं होता है, क्योंकि संबंधित संस्थान एक सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूल है। इसके अलावा, अगर ऐसी मंजूरी की आवश्यकता होती है तो भी नियुक्ति के बारे में सूचित किए जाने के 15 दिनों के भीतर अनुमति प्रदान की जानी चाहिए। जैसा कि अंकुर बनाम शिक्षा निदेशकः 260 (2019) डीएलटी 1985 मामले में इंगित किया गया है।

    दिल्ली सरकार के तर्क

    दूसरी ओर, दिल्ली सरकार के वकील ने तर्क दिया कि अतिरिक्त योग्यता(अतिरिक्त अंक देकर) के लिए दिए गए लाभ के आधार पर याचिकाकर्ता की नियुक्ति कानून की नजर में उचित नहीं थी, क्योंकि यह भर्ती नियम और अन्य सामान्य मानदंडों का उल्लंघन था , जबकि उन नियमों में नियुक्ति के लिए योग्यता, अनुभव, आयु और अन्य सभी मानदंड निर्धारित किए हैं।

    प्रतिवादियों द्वारा यह भी तर्क दिया गया था कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक स्कूलों के प्रबंधन को नियुक्ति के लिए भर्ती नियमों और अन्य सामान्य मानदंडों का पालन करना होता है।

    याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासन के अधिकार में कुप्रशासन का अधिकार शामिल नहीं होगा। यह माना गया है, कि संस्थान को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में अपने चरित्र को बनाए रखने की अनुमति देते हुए, अनुदान और मान्यता प्राप्त करने के लिए उस पर नियमों को कानूनन लागू किया जा सकता है।

    अधिकारियों के लिए नियमों को निर्धारित करने की अनुमति है, जिसका अनुपालन होना चाहिए, इससे पहले कि अल्पसंख्यक संस्थान संबद्धता और मान्यता प्राप्त कर सके या बनाए रख सके। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने यह भी कहा कि प्रतिवादी स्कूल ने नियुक्ति के लिए बने उन भर्ती नियमों और अन्य सामान्य मानदंडों का उल्लंघन किया है, जिनका पालन करना आवश्यक था, इसलिए, सहायता में अनुदान याचिकाकर्ता को नहीं दिया जा सकता है।

    यह प्रतिवादी स्कूल की जिम्मेदारी है कि वह याचिकाकर्ता को उस अवधि के लिए वेतन का भुगतान करे, जिसमें याचिकाकर्ता से काम लिया गया था। चूंकि उसका चयन कानून की नजर में सही नहीं था, इसलिए प्रतिवादी स्कूल द्वारा याचिकाकर्ता की अवैध नियुक्ति के लिए सहायता में अनुदान का दायित्व सरकार की तरफ नहीं बनता।

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