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सिर्फ इसलिए कि पत्नी वकील है और कमाने में सक्षम है, भरण पोषण की राशि से इनकार नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network
14 Dec 2019 9:57 AM GMT
सिर्फ इसलिए कि पत्नी वकील है और कमाने में सक्षम है, भरण पोषण की राशि से इनकार नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट
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'कमाई करने में सक्षम' और 'वास्तविक कमाई' के बीच के अंतर को दोहराते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत एक महिला को अंतरिम भरण पोषण देने का आदेश दिया। महिला एक वकील है और बार काउंसिल ऑफ दिल्ली में नामांकित है।

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी ने एक पुनरीक्षण याचिका में पारित किया, जिसमें पारिवारिक न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने पत्नी को 33,005 रुपए के मासिक भरण पोषण का आदेश दिया था।।

यह था मामला

याचिकाकर्ता-पति, अरुण वत्स ने अपील में कहा कि उनकी पत्नी भरण पोषण की हकदार नहीं थी क्योंकि वह पेशेवर रूप से योग्य थी और अच्छी कमाई कर रही थी। उसने एलएलबी डिग्री ली थी और वर्ष 2000 में एक वकील के रूप में काम शुरू किया था।

प्रतिवादी-पत्नी ने कहा कि उसने अपनी शादी से पहले बहुत कम प्रैक्टिस की और वह अपने बच्चे की कम उम्र के कारण अपने पेशे को आगे बढ़ाने में असमर्थ रही। महिला ने आय का कोई स्रोत नहीं जमा किया और अपने पति के घर से बाहर निकाले जाने के बाद वह अपनी मां के साथ अपने नाबालिग बच्चे के साथ रह रही है।

फैसला

अदालत ने कहा कि भले ही अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसकी पत्नी पर्याप्त कमा पा रही है, लेकिन इसके के समर्थन में वह कोई भी दस्तावेज पेश नहीं कर सका। ऐसी परिस्थितियों में, अदालत ने परिवार अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

अदालत ने यह कहा,

"याचिकाकर्ता का उपरोक्त विवाद, किसी भी सहायक दस्तावेज की अनुपस्थिति में, एक विवादित प्रश्न बना हुआ है और ट्रायल में इसकी जांच करने की आवश्यकता है। परिवार न्यायालय ने अधिरोपित आदेश में दर्ज किया है कि उत्तरदाता / पत्नी और उसके नाबालिग बच्चे के पक्ष में भरण पोषण के रूप में भुगतान की गई कोई भी राशि विचाराधीन अवधि के लिए बच्चे को समायोजित करने के लिए उत्तरदायी होगी।

उपरोक्त बातों के मद्देनजर, मुझे पारिवारिक न्यायालय द्वारा पारित किए गए आदेशों में कोई अवैधता या विकृतता नहीं मिली। "

शलिजा एवं अन्य बनाम खोबाना, (2018) 12 SCC 199, के फैसले पर भरोस जताया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि 'कमाई करने में सक्षम' और 'वास्तविक कमाई' दो अलग-अलग आवश्यकताएं हैं। इस फैसले ने स्पष्ट किया कि केवल इसलिए कि पत्नी कमाने में सक्षम है, परिवार न्यायालय द्वारा प्रदान किए गए भरण पोषण को कम करने के लिए यह पर्याप्त कारण नहीं हो सकता।


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