2008 मालेगांव धमाके : NIA की इन-कैमरा ट्रायल की अर्जी के खिलाफ पत्रकार भी पहुंचे विशेष अदालत

LiveLaw News Network

7 Aug 2019 8:45 AM GMT

  • 2008 मालेगांव धमाके : NIA की इन-कैमरा ट्रायल की अर्जी के खिलाफ पत्रकार भी पहुंचे विशेष अदालत

    वर्ष 2008 के मालेगांव धमाके मामले में इन-कैमरा ट्रायल करने की NIA की अर्जी के साथ अब विभिन्न मीडिया संस्थानों के पत्रकारों के एक समूह ने विशेष अदालत के समक्ष हस्तक्षेप आवेदन दायर किया है और यह अनुरोध किया है कि उन्हें भी उत्तरदाताओं के रूप में जोड़ा जाना चाहिए।

    विशेष न्यायाधीश वी. एस. पडलकर बुधवार को NIA अधिनियम की धारा 17 (1) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 44 (1) के तहत दायर NIA के आवेदन के साथ पत्रकारों द्वारा दायर आवेदन पर भी सुनवाई करेंगे।

    NIA ने इन-कैमरा ट्रायल की मांग की

    NIA ने आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित द्वारा वर्ष 2016 में इन-कैमरा कार्यवाही करने के लिए दायर अर्जी की अनुमति देने के ट्रायल कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया है जिसमें ट्रायल कोर्ट ने आंशिक रूप से इस प्रार्थना को अनुमति देते हुए उनके खिलाफ आरोप तय करने की कार्यवाही को इन-कैमरा करने को कहा था।

    रिजवान मर्चेंट और गायत्री गोखले कर रहे पत्रकारों का प्रतिनिधित्व

    हस्तक्षेप करने के इच्छुक पत्रकारों के समूह ने तर्क दिया है कि NIA सीमित अवधि के लिए और विशिष्ट परिस्थितियों में पारित आदेश पर भरोसा नहीं कर सकता है। वकील रिजवान मर्चेंट और गायत्री गोखले पत्रकारों के समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

    इससे पहले एक विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने मीडिया को तुलसीराम प्रजापति और सोहराबुद्दीन शेख के कथित फर्जी मुठभेड़ के ट्रायल की रिपोर्टिंग करने से रोक दिया था। पत्रकारों के समूह द्वारा चुनौती देने पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 फरवरी, 2018 को उक्त मीडिया गैग आदेश को रद्द कर दिया था। "प्रेस एक लोकतंत्र में सार्वजनिक हित का सबसे शक्तिशाली प्रहरी है, " जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने कहा था।

    राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम की धारा 17 'गवाहों के संरक्षण' और उप-धारा (2) कहती है-

    "इस तरह के गवाह के संबंध में या सार्वजनिक अभियोजन पक्ष की ओर से किसी भी कार्यवाही में किसी गवाह द्वारा किए गए आवेदन पर या उसके स्वयं के प्रस्ताव पर, यदि विशेष अदालत इस बात को लेकर संतुष्ट है कि इस तरह के गवाह का जीवन खतरे में है तो यह कारणों को लिखित रूप में दर्ज कर ऐसे उपाय करे जो यह इस तरह के गवाह की पहचान और पते को गुप्त रखने के लिए उपयुक्त है।"

    "NIA ने नहीं दिया है विशिष्ट परिस्थिति का हवाला"

    उक्त हस्तक्षेप आवेदन में कहा गया है कि NIA ने किसी भी विशिष्ट परिस्थिति का हवाला नहीं दिया जहां गवाह के जीवन के लिए खतरा बताया गया हो। इसके अलावा, आवेदन में यह तर्क दिया गया है कि यहां तक ​​कि अगर किसी भी गवाह के लिए कोई खतरा या धमकी की आशंका है तो गवाह संरक्षण कार्यक्रम के तहत उनकी सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है। इसलिए मीडिया पर प्रतिबंध लगाना किसी भी परिस्थिति में आवश्यक नहीं है।

    गौरतलब है कि पिछले हफ्ते बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस ए. एम. बदर की पीठ ने प्रसाद पुरोहित की याचिका पर सुनवाई करते हुए NIA को विशेष अदालत के समक्ष आवेदन दाखिल करने के लिए स्वतंत्रता प्रदान की थी जिसमें इस मामले के 38 गवाहों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने की मांग की गई थी। अभियोजन पक्ष ने अब तक 124 गवाहों की जांच की है।

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