Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को गवाहों के बयानों की ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग की योजना को लागू करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network
3 Dec 2019 12:05 PM GMT
मद्रास हाईकोर्ट ने राज्य को गवाहों के बयानों की ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग की योजना को लागू करने का निर्देश दिया
x

मद्रास हाईकोर्ट ने जांच अधिकारियों के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किये जो जघन्य मामलों में गवाहों के बयानों के ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग के बारे में है. ये महिलाओं और बच्चों खिलाफ होने वाले ऐसे अपराध हैं जिनमें 10 साल या इससे अधिक की सजा हो सकती है।

हालांकि, ये दिशानिर्देश बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन न्यायमूर्ति एस वैद्यनाथन और न्यायमूर्ति एन आनंद वेंकटेश ने अभियोजन से कहा कि वह योजना को लागू करने की कार्य योजना के बारे में तीन महीने के भीतर स्थिति रिपोर्ट दायर करे।

पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 161(3) के तहत गवाहों के बयान की ऑडियो रिकॉर्डिंग का अधिकार है।

यह निर्देश गवाहों के मुकर जाने की बढ़ती घटना की वजह से जारी किया गया और इस समस्या से आपराधिक न्याय व्यवस्था काफी समय से जूझ रहा है और "आरोपी इसकी वजह से हत्याओं के कई मामलों में बरी हो जाते हैं।"

अदालत ने कहा कि सभी अपराधों, विशेषकर आईपीसी के अध्याय XVI के तहत मानव शरीर को प्रभावित करने वाले सभी अपराध, जिसमें सजा 10 साल के कारावास या इससे अधिक है, उसमें जांच के दौरान प्रत्यक्षदर्शियों, घायल गवाहों और शिकायतकर्ताओं के बयान सीआरपीसी की धारा 164 के अधीन ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रोनिक माध्यम से रिकॉर्ड की जानी चाहिए जहां भी इस तरह के संसाधन उपलब्ध हैं।

महिलाओं और बच्चों के खिलाफ सभी अपराधों में यही प्रक्रिया अपनायी जाएगी।

अदालत ने कहा की राज्य सरकार इसके लिए पूरे तमिलनाडु के सभी मजिस्ट्रेट कोर्ट, महलिर कोर्ट और सत्र अदालतों में आवश्यक सुविधा इस आदेश के प्राप्त होने की तिथि के तीन माह के भीतर उपलब्ध कराएगी. इसके अलावा इन इलेक्ट्रॉनिक डाटा को सुरक्षित रखने की व्यवस्था भी उन अदालतों में करेगी।

डूंगर सिंह एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल के सिलसिले में यह आदेश पास किया गया। अदालत ने कहा की सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अमल के तहत अब अभियोजन के लिए आवश्यक है कि वह प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ जितनी जल्दी हो करे और उनके बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत ही रिकॉर्ड की जानी चाहिए और इसकी ऑडियो-विजुअल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अब देश का क़ानून बन गया है और इसको पूरी तरह लागू किया जाना चाहिए।

जांच प्रक्रिया में ऑडियो-विजुअल जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के प्रयोग के बारे में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष शफही मोहम्मद बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य का मामला भी लंबित है जिस पर इस बारे में व्यापक दिशानिर्देश की उम्मीद की जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट अपने इस आदेश पर अमल के लिए बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता पर नजर रखे हुए है जिसमें साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-B(4) के तहत प्रमाण नहीं होने की स्थिति में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों की अदालत में स्वीकार्यता, फंडिंग और प्रशिक्षण का अभाव जैसे मुद्दे शामिल हैं। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट दिशानिर्देश जारी कर चुका है और इसलिए हाईकोर्ट ने इसमें दखल नहीं दिया।

इस तरह के निर्देशों को लागू करने में पेश आने वाली मुश्किलों की ओर ध्यान दिलाये जाने के अभियोजन के प्रयास को अदालत ने खारिज कर दिया। अभियोजन ने ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग से छेडछाड होने की आशंका जताई क्योंकि इसकी सुरक्षा के लिए अभी कोई केंद्रीकृत व्यवस्था नहीं है. उसने इस तरह के साक्ष्यों के सोशल मीडिया को लीक कर दिए जाने और इस वजह से गवाहों के लिए और मुश्किल पैदा होने की आशंका भी जताई।

"अभियोजन ने जिन व्यावहारिक मुश्किलों की ओर इशारा किया है उस आधार पर इन प्रावधानों को लागू होने से नहीं रोका जा सकता। एक अवस्था में, जांच के दौरान ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का व्यापक प्रयोग अवश्य ही होना चाहिए और कई देशों में इसे सक्षमता से लागू किया जा चुका है।"

अदालत ने अभियोजन के इस सलाह को मान लिया कि इसे अलग-अलग चरणों में लागू किया जाना चाहिए और सामने आने वाली समस्याओं को दूर करते रहना चाहिए। अभियोजन ने यह भी कहा कि गवाहों को सुरक्षा देने की योजना को लागू करना महत्त्वपूर्ण है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने महेंदर चावला एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में अपने फैसले में कहा है।

"…आज की तारीख में यह देश का क़ानून बन गया कि जब तक गवाहों की सुरक्षा की योजना नहीं लागू की जाती, ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि, इससे गवाह और ज्यादा असुरक्षित हो जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को 2019 के अंत तक लागू कर देने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार को निर्देशित किया जाता है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुरूप इस योजना को लागू करे और इस बारे में भी वह स्थिति रिपोर्ट पेश करेगा।"

अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई 1 अप्रैल 2020 को करेगा।

Next Story