सोशल मीडिया से एक साल तक दूर रहो, तभी मिलेगी ज़मानत, प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ एफ़बी पोस्ट लिखने वाले व्यक्ति को मद्रास हाईकोर्ट का आदेश
LiveLaw News Network
12 Nov 2019 11:40 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ कथित रूप से फ़ेसबुक पोस्ट लिखने वाले तमिलनाडु के एक व्यक्ति को अग्रिम ज़मानत इस शर्त पर देने की बात कही कि वह एक साल तक सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करेगा।
पुलिस ने कन्याकुमारी में रहने वाले जबिन चार्ल्ज़ के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 505 (ii) और सूचना तकनीक अधिनियम की धारा 67B के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ एक पोस्ट के आरोप में मामला दर्ज किया था।
अदालत ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने फ़ेसबुक पर प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ काफ़ी अपमानजनक पोस्ट लिखी थी।" मदुरै पीठ के न्यायमूर्ति जीआर स्वामिनाथन ने अग्रिम ज़मानत की उसकी याचिका इस लिखित आश्वासन पर स्वीकार कर ली कि वह एक साल तक सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करेगा।"
याचिकाकर्ता के वक़ील ने निर्देश के बाद बताया कि याचिकाकर्ता मामले की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष एक माफ़ीनामा हलफ़नामे के माध्यम से पेश करेगा। इस माफ़ीनामे की भाषा ऐसी हो जिससे लगे कि उसे स्पष्ट रूप से पश्चाताप है। यह लगना चाहिए कि उसे अपने ग़लती का एहसास है।
याचिकाकर्ता के वक़ील ने कहा कि इस निर्देश के बाद आगे वह लिखित आश्वासन भी देता है कि अगले एक साल तक याचिकाकर्ता सोशल मीडिया का प्रयोग नहीं करेगा।
जज स्वामिनाथन ने कहा,
"याचिकाकर्ता के इस लिखित आश्वासन के बाद मैं उसे कुछ शर्तों के साथ अग्रिम ज़मानत देना चाहता हूं।"
अभियोजन अग्रिम ज़मानत रद्द करने के लिए अपील कर सकता है
अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहा है जो कि उसके लिखित आश्वसन के विपरीत है तो अभियोजन उसकी अग्रिम ज़मानत रद्द करने के लिए अदालत में अपील कर सकता है।
न्यायमूर्ति स्वामिनाथन ने इसी तरह की शर्तें एक दूसरे मामले में भी रखीं जिसमें मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपमानजनक पोस्ट लिखने के लिए एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ मामला दायर किया गया था।
अग्रिम ज़मानत का यह आवेदन आर ऐलेग्ज़ैंडर @महादेव ने दायर किया था जिसके ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 153A और 505(ii) के तहत मामला दर्ज किया गया था क्योंकि उसने मुसलमान समुदाय की भावनानों को आहत करने वाला पोस्ट लिखा था।
याचककाकर्ता के आचरण की निंदा करते हुए जज ने कहा,
"याचिकाकर्ता के आचरण की प्रशंसा नहीं की जा सकती। अगर याचिकाकर्ता सोचता है कि इस तरह का आचरण करके वह अपने धर्म का पताका फहरा रहा है तो वह ग़लत है"।
इस व्यक्ति को भी इसी तरह के आधार पर ज़मानत दी गई थी कि वह एक साल के लिए सोशल मीडिया से दूर रहेगा।