हाईकोर्ट के कामकाज में क्षेत्रीय भाषाएं अमल में लाने में बहुत सारी बाधाएं : सीजेआई एनवी रमना

LiveLaw News Network

1 May 2022 3:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट के कामकाज में क्षेत्रीय भाषाएं अमल में लाने में बहुत सारी बाधाएं : सीजेआई एनवी रमना

    भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना ने शनिवार को कहा कि देश के हाईकोर्टों के कामकाज में क्षेत्रीय भाषाएं अमल में लाने ( implementation) में बहुत सारी अड़चनें हैं।

    केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के साथ आयोजित एक ज्वॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए सीजेआई ने कहा कि कई बाधाएं हैं क्योंकि कभी-कभी मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश, अलग अलग राज्यों से होने के कारण, स्थानीय भाषा से परिचित नहीं होते।

    सीजेआई ने इसे 'गंभीर मुद्दा' बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उनके आने के बाद सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्ण अदालत ने क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यान्वयन के एक अनुरोध को खारिज कर दिया था।

    उन्होंने कहा कि इसके बाद अदालत के सामने कोई प्रस्ताव नहीं आया, भले ही क्षेत्रीय भाषाओं को लागू करने की मांग की गई हो।

    सीजेआई ने आगे कहा कि न्यायपालिका के पास पर्याप्त तकनीक या सिस्टम नहीं है जहां पूरे रिकॉर्ड का स्थानीय भाषा या स्थानीय भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद किया जा सके। उन्होंने कहा कि हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को आजमाया जा चुका है और कुछ हद तक इसे अमल में लाया जा चुका है, इस संबंध में आगे की पेचीदगियों के लिए समय की आवश्यकता होगी।

    केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि अदालत में बहस करने और ऑर्डर लिखने में भाषाओं के इस्तेमाल के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के अनुमोदन की आवश्यकता होती है और इस प्रकार व्यापक परामर्श की आवश्यकता होती है। उन्होंने आश्वासन दिया कि मामले पर सकारात्मक विचार किया जाएगा।

    मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के ज्वॉइन्ट कॉन्फ्रेंस के बाद सीजेआई और कानून मंत्री एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे।

    कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आम आदमी की बेहतर समझ के लिए अदालतों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट में एक कार्यक्रम में बोलते हुए सीजेआई ने अदालतों में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा के मुद्दे के बारे में बात की थी और कहा था कि संवैधानिक न्यायालयों के समक्ष लॉ प्रैक्टिस किसी की बुद्धि और कानून की समझ पर आधारित होना चाहिए न कि यह सिर्फ भाषा में प्रवीणता पर आधारित हो।

    उन्होंने कहा था कि इस मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के आकलन के बाद कुछ निर्णय लेने का समय आ गया है।

    उन्होंने यह भी कहा कि समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही में स्थानीय भाषा के उपयोग की अनुमति दी जाए और इस मुद्दे पर बहुत बहस हुई है।

    हालांकि, कुछ बाधाएं हैं जिनसे स्थानीय भाषा हाईकोर्ट के समक्ष कार्यवाही में नहीं अपनाई जा रही हैं।

    उन्होंने आशा व्यक्त की थी कि साइंस और टैक्नोलॉजी में नवाचार और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी प्रगति के साथ हाईकोर्ट में स्थानीय भाषाओं की शुरुआत से जुड़े कुछ मुद्दों को निकट भविष्य में हल किया जा सकता है।

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