मामलों को टालने को सीमित किया जाए और केस निपटारे की समय-सीमा तय हो : वेंकैया नायडु
LiveLaw News Network
29 Sept 2019 1:40 PM IST
एक पुस्तक विमोचन समारोह में सभा को संबोधित करते हुए भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने लंबे समय तक चलने वाली मुकदमेबाजी और भारतीय न्यायिक प्रणाली में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या पर अपनी चिंता व्यक्त की और मामलों के निपटान में तेजी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में क्षेत्रीय पीठ (regional bench) की स्थापना का सुझाव दिया।
नायडू ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व वरिष्ठ वकील पावनी परमेश्वर राव के लेखों के संकलन 'परमेश्वर टू पीपी' नामक पुस्तक के विमोचन के दौरान समय पर और लागत प्रभावी न्याय सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न सुधारों के संबंध में सुझाव दिया।
जस्टिस नरीमन के अलावा कई वरिष्ठ वकील रहे कार्यक्रम में मौजूद
इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान जज जस्टिस आर. एफ. नरीमन, भारत के अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस ए. आर. दवे और सलमान खुर्शीद, राजीव धवन और महालक्ष्मी पावनी जैसे वरिष्ठ वकील मौजूद थे।
कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति ने कहा, "यह मानक संचालन प्रक्रियाओं (SOP) को विकसित करने पर विचार करने का समय है जो मामलों की प्रकृति के आधार पर मामलों के निपटारे के लिए समय सीमा और मामले की सुनवाई टालने की संख्या को तय करे। न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा अनुशासन को बढ़ावा देने और त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए SOP का पालन करने की आवश्यकता है।"
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बेंच स्थापित करने की आवश्यकता पर दिया जोर
यह देखते हुए कि न्यायपालिका पर देश भर की विभिन्न अदालतों में 3 करोड़ मामले लंबित हैं, जिनमें से कुछ 50 साल से अधिक समय से लंबित हैं, नायडू ने उच्चतम न्यायालय के विभाजन का सुझाव दिया। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 130 के तहत दिल्ली, चेन्नई/हैदराबाद, कोलकाता और मुंबई में क्षेत्रीय बेंच स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया, जैसा कि देश के विधि आयोग ने अपनी 229वीं रिपोर्ट में सुझाया गया था।
एंटी-डिफेक्शन कानून की समीक्षा का भी दिया सुझाव
नायडू ने अपने भाषण में विभिन्न विधानमंडलों के पीठासीन अधिकारियों को अपनी खामियों को दूर कर दलबदल के मामलों पर निर्णय लेने के लिए समय सीमा निर्धारित करने के साथ-साथ एंटी-डिफेक्शन कानून की समीक्षा का भी सुझाव दिया।
उन्होंने कहा,"मैं यह सुझाव दूंगा कि हमारे पास विशेष न्यायिक न्यायाधिकरण होने चाहिए जो उचित समय के भीतर मामलों का फैसला करें, हम इसे 6 महीने या अधिकतम 1 वर्ष में कहेंगे। मैं यह भी सुझाव दूंगा कि हम अपने संविधान की 10वीं अनुसूची को फिर से देखें, जिसमें दलबदल विरोधी के प्रावधान भी शामिल हों। ऐसे मामलों का समयबद्ध निपटान सुनिश्चित करने के लिए और खामियों को दूर करके इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कदम उठाए जाएं,"।
उपराष्ट्रपति ने की दिवंगत वकील पीपी राव के सिद्धांत एवं योगदान की सराहना
उन्होंने दिवंगत वकील पीपी राव के 'कॉमन थ्रेड' के सिद्धांत और 'क्यूरेटिव पेटिशन' को आगे बढ़ाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उनकी सराहना की।
दरअसल एसआर बोम्मई के मामले में कॉमन थ्रेड का सिद्धांत राष्ट्रपति के नियम को सही ठहराता है, जबकि एक क्यूरेटिव पिटीशन तब दायर की जाती है जब कोर्ट द्वारा गलत किए गए को सही करने के लिए दाखिल पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया जाता है।
नायडू ने कहा, "प्रधानता का सिद्धांत जिसे स्वर्गीय पीपी राव ने 40 साल लंबे कानूनी पेशे और पुरानी दुनिया के मूल्यों को निर्देशित किया वो वर्तमान पीढ़ी द्वारा अनुकरण के योग्य हैं।"
उन्होंने कई ऐतिहासिक मामलों जैसे "एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस, केशवानंद भारती केस, एमएस गिल बनाम चुनाव आयोग केस, एसआर बोम्मई केस, जेएमएम रिश्वत केस, पीयूसीएल केस, अयोध्या का मामला, बेस्ट बेकरी केस, एंट्री टैक्स केस, 2 जी स्पेक्ट्रम " मामलों में राव के सहयोग का उल्लेख किया।
नायडू ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा, "पीपी राव के पास एक स्वतंत्र दिमाग था और वह एक सरकारी वकील नहीं थे। वो उन सिद्धांतों से निर्देशित थे जिन पर वो विश्वास करते थे और वो कानून की सीमाओं और अदालतों के सिद्धांतों के भीतर कार्य करते थे। वो दुनिया 'और वर्तमान पीढ़ियों द्वारा अनुकरण के योग्य हैं। "