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अलग रह रही पत्नी ने मांगा पति से प्रसव का खर्च, हाईकोर्ट ने पलट दिया फैमिली कोर्ट का आदेश

LiveLaw News Network
3 Oct 2019 3:03 AM GMT
अलग रह रही पत्नी ने मांगा पति से प्रसव का खर्च, हाईकोर्ट ने पलट दिया फैमिली कोर्ट का आदेश
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कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें पति से अलग रह रही एक महिला को उसके पति से प्रसव का खर्च दिलाने से इनकार कर दिया गया था। फैमिली कोर्ट ने कहा था कि,''यह उसकी पहली डिलीवरी है, ऐसे में सभी समुदायों के रीति-रिवाज के अनुसार यह उसके (महिला के) माता-पिता का कर्तव्य है कि वे खर्च वहन करें।''

न्यायमूर्ति आलोक अराधे ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें शाइस्ता सुल्ताना द्वारा दायर अर्जी को खारिज कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने कहा कि-

'' फैमिली कोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता की तरफ से दायर अर्जी को खारिज करने के लिए कोई भी ठोस कारण नहीं दिया है, बस निष्कर्ष दर्ज कर दिया गया है, ऐसा लगता है कि यह फैसला फैमिली कोर्ट के पीठासीन अधिकारी ने अपने व्यक्तिगत ज्ञान के आधार पर दे दिया है। यह आदेश गूढ़ या स्पष्ट नहीं है और दिमाग का ठीक से प्रयोग न किए जाने के अवगुण से ग्रसित है, इसलिए, यह कानून की नजर में स्थिर नहीं हो सकता।''

महिला ने दी आदेश को चुनौती

महिला ने फैमिली कोर्ट द्वारा 26 अप्रैल, 2018 को दिए गए एक आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस आदेश में फैमिली कोर्ट ने महिला की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने अपने पति से 1,50,000 रुपये दिलाए जाने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता आर.रश्मि ने दलील दी कि ''उक्त आदेश गूढ़ है, मनमाना है और यह आदेश बिना दिमाग लगाए दिया गया है।'' जबकि, पति शकील पाशा की पैरवी कर रहे वकील अनीस अलीक खान ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश का समर्थन किया।

हाईकोर्ट का निर्देश

दोनों पक्षों द्वारा दी गई दलीलों को देखने के बाद व सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णयों पर भरोसा जताते हुए हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया है कि यह आदेश प्राप्त होने के तीन सप्ताह के अंदर वह महिला द्वारा किए गए आवेदन को नए सिरे से तय करे और इसके लिए पक्षों को सुनवाई या उनका पक्ष रखने का मौका दिया जाए। साथ ही दोनों पक्षों से कहा है कि वे कार्यवाही में सहयोग करें और अनावश्यक रूप से मामले की सुनवाई न टलवाएं।


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