संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकाय ने भारत सरकार से कहा, J&K पर प्रतिबंध आंतरिक रूप से असंगत
LiveLaw News Network
23 Aug 2019 4:55 PM IST
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ निकाय ने भारत सरकार से यह कहा है कि जम्मू और कश्मीर में 'सूचना ब्लैकआउट', वहां के लोगों पर सामूहिक दंड का एक रूप है और यह आवश्यकता और समानता (proportionality) के मूलभूत मानदंडों/आदर्शों के साथ असंगत है।
विशेषज्ञों ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि केंद्र द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य की विशेष स्थिति को निरस्त करने के बाद क्षेत्र में लगाए गए कर्फ्यू के उपाय "आंतरिक रूप से असंगत" थे।
क्या है UN मानवाधिकार के उच्चायुक्त कार्यालय का बयान? संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के उच्चायुक्त कार्यालय द्वारा गुरुवार को जारी एक बयान में कहा गया है:
"इंटरनेट और दूरसंचार नेटवर्क का, सरकार द्वारा, औचित्य के बिना बंद किया जाना, आवश्यकता और आनुपातिकता के मूलभूत मानदंडों के साथ असंगत हैं," यह ब्लैकआउट, बिना किसी पनपते अपराध की आशंका के बिना, जम्मू और कश्मीर के लोगों के लिए सामूहिक सजा का एक रूप है।"
वैश्विक निकाय ने सैन्य टुकड़ियों की भारी तैनाती और वहां कर्फ्यू लगने पर ध्यान देते हुए कहा कि:
"हम भारतीय अधिकारियों को याद दिलाते हैं कि भारत सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध आंतरिक रूप से असंगत हैं, क्योंकि वे प्रत्येक प्रस्तावित जमाव (proposed assembly) की विशिष्ट परिस्थितियों एवं जरूरतों को नकारते हैं।"
विशेषज्ञों ने कहा कि वे उन रिपोर्टों से गहराई से चिंतित थे जिनमे यह कहा गया है कि, सुरक्षा बल घरों पर रात की छापेमारी कर रहे थे, जिससे युवा लोगों की गिरफ्तारी हो रही थी। विशेषज्ञों ने कहा, "इस तरह के प्रतिबंध गंभीर मानव अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकते हैं।" आगे यह कहा गया कि, "अधिकारियों द्वारा आरोपों की पूरी जांच की जानी चाहिए, और अगर इनकी पुष्टि की जाती है, तो जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।"
विशेषज्ञों ने आगे कहा, "हम इन आरोपों को लेकर गंभीर रूप से चिंतित हैं कि हिरासत में लिए गए लोगों में से कुछ के ठिकाने का पता नहीं है और इसके साथ ही लोगों के बलपूर्वक गायब (enforced disapperance) होने का जोखिम बढ़ा है, जो, सामूहिक गिरफ्तारियों और इंटरनेट और अन्य संचार नेटवर्क तक सीमित पहुंच के मद्देनजर और बढ़ सकता है।"
क्या होता है बलपूर्वक गायब (enforced disapperance)
आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि बलपूर्वक गायब (enforced disapperance) किसी को अचानक उसकी इच्छा के विरुद्ध गायब कर देने के कार्य को कहते हैं। इसलिए यह किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी, नजरबंदी या अपहरण को संदर्भित करता है, जिसके बाद उस व्यक्ति के अस्तित्व का क्या होगा इसके विषय में स्पष्टता नहीं रह जाती है। दूसरे शब्दों में, बलपूर्वक गायब (enforced disapperance) तब होता है जब किसी व्यक्ति का किसी राज्य, राजनीतिक संगठन या किसी अन्य द्वारा राज्य या राजनीतिक संगठन के प्राधिकरण के समर्थन से, गुप्त रूप से अपहरण कर लिया जाता है या उसे कैद कर लिया जाता है, और उसके भाग्य और ठिकाने को स्वीकार करने से इनकार कर दिया जाता है, जिसका मकसद उस पीड़ित को क़ानून के संरक्षण से दूर रखने का होता है।
अत्यधिक बल के उपयोग के विषय में व्यक्त की चिंता
विशेषज्ञों ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल के उपयोग के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की, जिसमें जीवित गोला-बारूद का उपयोग भी शामिल था, जो जीवन के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। विशेषज्ञों ने कहा, "भारत की जिम्मेदारी है कि जब विरोध प्रदर्शन को रोकना हो तो न्यूनतम बल का उपयोग किया जाए। इसका मतलब है कि घातक बल का उपयोग केवल अंतिम उपाय के रूप में और जीवन की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए।"
राज्य में लगाए गए प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कुछ रिट याचिकाएं दायर की गई हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी आदेश पारित करने से इनकार कर दिया, और यह कहते हुए सुनवाई टाल दी कि वह सरकार को क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कुछ समय देना चाहेगी।