अवैध ढांचों को सिर्फ इसलिए दोबारा बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि उन्हें तोड़ते समय प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ था : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
29 Oct 2019 1:33 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवैध ढांचों को सिर्फ इसलिए फिर से बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इन्हें तोड़ते समय प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ था।
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की उस 'रेगुलर प्रैक्टिस'को अस्वीकार कर दिया ,जिसमें उन ढांचों के पुनर्निर्माण की अनुमति दे दी जाती थी, जिनको उचित प्रक्रियाओं का पालन किए बिना ही ध्वस्त कर दिया गया था।
पीठ ने टिप्पणी की-
"हाईकोर्ट स्वयं इस बात से अवगत है कि इनमें से कुछ ढांचों का निर्माण बिना अनुमति के किया गया होगा। यदि ऐसा है तो भले ही दूसरा नोटिस दिए बिना ही इनको ध्वस्त किया गया हो तो भी क्यों उस पक्षकार को फिर से अवैध निर्माण या एक अन्य अवैध निर्माण करने की अनुमति दी जाए, जिसने पहले भी अनुमति लिए बिना ही निर्माण करके कानून का उल्लंघन किया था, जबकि इस निर्माण को अंत में विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद केवल धराशायी ही होना है। आखिर क्यों ऐसे अवैध निर्माण को करने के लिए राष्ट्र के धन का दुरुपयोग और गलत प्रयोग करने दिया जाए, जिससे अंततः ध्वस्त होना ही होगा?"
अदालत ने कहा कि वह कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही नगर निगम या उसके अधिकारियों द्वारा ढांचों को ध्वस्त करने की कार्रवाई को मंजूरी नहीं दे रहे हैं, लेकिन ऐसे मामलों में दी जाने वाली राहत कानून के अनुसार होनी चाहिए और न कि कानून का उल्लंघन करते हुए।
कोर्ट ने कहा कि यदि कोई ढांचा अवैध ढांचा है, तो भले ही इसे अवैध रूप से ध्वस्त किया गया हो, लेकिन फिर भी ऐसे ढांचे को दोबारा बनाने या खड़ा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
यदि नगर निगम ने इमारत को ध्वस्त करते हुए प्रक्रिया का उल्लंघन किया है, लेकिन ढांचा पूरी तरह से अवैध है, तो कुछ मुआवजा दिया जा सकता है और, ऐसे सभी मामलों में, जहां इस तरह का मुआवजा दिया जाए,यह राशि उन अधिकारियों से उचित रूप से वसूली जानी चाहिए जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है। हालांकि, हम फिर से दोहराते हैं कि अवैध ढांचे को फिर से बनाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
पीठ ने कहा कि-
'' फिर से निर्माण करने की अनुमति देने वाले व्यापक आदेश अनियोजित और बेतरतीब निर्माण को बढ़ावा देंगे। इससे आम जनता को परेशानी होगी। भले ही इन ढांचों को गिराते समय पर्याप्त सूचना न देकर निजी व्यक्तियों के अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो, लेकिन फिर भी कानून का उल्लंघन करके बनाए गए ढांचों को फिर से खड़ा करने या निर्माण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।''
पीठ ने कहा कि-
"किसी भी निर्माण/ पुनर्निर्माण, या मरम्मत से पहले, मालिक/व्यवसायी/ बिल्डर/ठेकेदार /वास्तुकार या आर्किटैक्ट, वास्तव में इन सभी के द्वारा मौजूदा ढांचे की एक योजना प्रस्तुत करना आवश्यक होना चाहिए। इस नक्शे को रिकॉर्ड पर लिया जाए और उसके बाद ही, निर्माण की अनुमति दी जा सकती है। इस तरह किसी मामलों में भले ही ध्वस्त करना अवैध हो, परंतु यह जानना आसान होगा कि इमारत के आयाम क्या थे। यह जानकारी एक योजना की प्रकृति के तौर पर सिर्फ कागज के रूप में नहीं होनी चाहिए, बल्कि तस्वीरों, वीडियो आदि की प्रकृति में 3 डी दृश्य जानकारी या विज्युअल इंफर्मेशन के रूप में भी होनी चाहिए।
महाराष्ट्र के सभी शहर ,जहां की आबादी 50 लाख या उससे अधिक है, नगर निगम के अधिकारी न केवल नगरपालिका के क्षेत्रों में बल्कि बाहरी सीमा के 10 किलोमीटर के क्षेत्र में भी जियो-मैपिंग करवाएं। यह उपग्रह, ड्रोन या वाहनों द्वारा किया जा सकता है। एक बार जब पूरे शहर को जियोमैप्ड कर दिया जाएगा तो अवैध निर्माणों को नियंत्रित करना आसान होगा। यह सुनिश्चित किया जाए कि संबंधित नगर निगमों को इसके लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध करवाई जाए और इस आदेश की तिथि से एक वर्ष की अवधि के भीतर यह काम पूरा हो जाना चाहिए।"
अदालत ने अवैध निर्माण/ पुनर्निर्माण आदि के साक्ष्य एकत्र करने के तरीकों के बारे में भी निर्देश जारी किए हैं। वहीं सभी को नोटिस करते हुए तामील भी करवाए।
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