अगर आप पूरे राज्य में प्रतिबंध लगाना चाहते हैं तो अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगाइए : सिब्बल

LiveLaw News Network

7 Nov 2019 12:22 PM GMT

  • अगर आप पूरे राज्य में प्रतिबंध लगाना चाहते हैं तो अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगाइए : सिब्बल

     जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद प्रतिबंधों को लेकर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि पूरे राज्य में तालाबंदी केवल संविधान के तहत आपातकालीन प्रावधानों को लागू करने के द्वारा ही की जा सकती है। उन्होंने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 का मार्ग तीन महीने से अधिक समय तक पूरे राज्य को बंद रखने के लिए नहीं अपनाया जा सकता।

    सिब्बल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की ओर से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा हटाए जाने के मद्देनजर कश्मीर में पाबंदी के खिलाफ दायर याचिका पर दलीलें दे रहे हैं।

    जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बी आर गवई की पीठ के समक्ष गुरुवार को सिब्बल ने कहा कि धारा 144 के तहत सभी आदेश राज्य की विशेष स्थिति को समाप्त करने से पहले 4 अगस्त को जारी किए गए थे। 5 अगस्त से पहले जम्मू-कश्मीर पर लागू होने वाले संविधान के अनुसार, 'आंतरिक गड़बड़ी' संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लगाने का आधार हो सकता है। इसलिए यदि सरकार को लगता है कि प्रतिबंध लगाना आवश्यक है तो उसे संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल की घोषणा करनी चाहिए।

    अनुच्छेद 352 के तहत घोषणा संसद द्वारा समय-समय पर समीक्षा के अधीन होगी। इसका मतलब है कि हालात की अधिक से अधिक जांच की जाएगी। सिब्बल ने यह भी कहा कि केंद्र ने सीआरपीसी की धारा 144 के तहत पारित सभी आदेशों को प्रस्तुत नहीं किया है।केवल कुछ जिलों से संबंधित आदेश केंद्र द्वारा पेश किए गए थे। केंद्र न्यायालय की उचित सहायता नहीं कर रहा है।

    "सभी 7 मिलियन लोगों को संदिग्ध बना दिया"

    सिब्बल ने कहा कि धारा 144 के तहत पूरा जिला आदेशों का विषय नहीं हो सकता। "सभी 7 मिलियन लोगों को संदिग्ध बना दिया , उन्होंने टिप्पणी की रामलीला घटना में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सिब्बल ने कहा कि एक बार अनुच्छेद 19 के उल्लंघन का एक प्रथम दृष्टया मामला प्रस्तुत किया जाता है तो ये राज्य को साबित करना है कि राज्य के लिए प्रतिबंध वाजिब है और आवश्यक के अनुसार न्यूनतम हैं।लेकिन यहां प्रतिबंधों ने अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों का हनन किया है। केंद्र द्वारा कम से कम प्रतिबंधात्मक प्रतिबंधों के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया है।

    केंद्र कम प्रतिबंधात्मक उपाय अपना सकता था। तालाबंदी को यह सुनिश्चित करने के लिए कोई उपाय किए बिना किया गया था कि बाहरी लोग कश्मीरियों से संवाद कर सकें और आवश्यक सेवाओं तक पहुंच बनी रह सके।

    सभी प्रतिबंध अनुचित

    सिब्बल ने कहा, "लगाए गए सभी प्रतिबंध अनुचित हैं। मुझे अपने व्यापार को करने में सक्षम क्यों नहीं होना चाहिए? यह एक अनुचित प्रतिबंध है। मुझे अस्पताल जाने की अनुमति नहीं दी जा रही है .. मुझे हवाई अड्डे पर रोक रहे हैं..ये सभी अनुचित प्रतिबंध हैं।"

    सिब्बल ने कहा कि कश्मीर के बाहर के लोगों के अधिकारों पर भी असर पड़ा है। कश्मीर में घुसने वाले लोगों को श्रीनगर में रोक दिया गया है। बाहर के लोग कश्मीर के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।सिब्बल की दलीलों के बाद पीठ ने सुनवाई 14 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

    अपनी याचिका में आजाद ने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के बाद अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद राज्य में सामाजिक परिस्थितियों की जांच करने की अनुमति मांगी है। उन्होंने जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने के बाद राज्य का दौरा करने की कोशिश की थी लेकिन अधिकारियों द्वारा हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया था।

    16 सितंबर को CJI की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन्हें इस शर्त पर जम्मू-कश्मीर जाने की अनुमति दी थी कि वह 'राजनीतिक रैली या राजनीतिक गतिविधि' में शामिल नहीं होंगे।

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