Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

पति का घर देर से आना, बाहर खाना खाना, नहीं है धारा 498ए के तहत क्रूरता -बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करने को सही ठहराया

LiveLaw News Network
26 Nov 2019 4:45 AM GMT
पति का घर देर से आना, बाहर खाना खाना, नहीं है धारा 498ए के तहत क्रूरता -बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करने को सही ठहराया
x

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही माना है कि पति काम या ऑफिस से देर से घर लौट रहा है, बाहर खाना खा रहा है या झगड़ा कर रहा है, उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत क्रूरता नहीं माना जा सकता है। इसी के साथ कोर्ट ने 35 वर्षीय व्यक्ति अनिल कुरकोटी को बरी किए जाने के आदेश को सही ठहराया है। अनिल की पत्नी स्वाति ने शादी के कई साल बाद आत्महत्या कर ली थी।

न्यायमूर्ति के.आर श्रीराम इस मामले में महाराष्ट्र सरकार की अपील पर सुनवाई कर रहे थे। सरकार ने निचली अदालत ने 21 मार्च, 1997 के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें अनिल, उनके माता-पिता और भाई को आईपीसी की धारा 498 ए और 306 के तहत दंडनीय अपराध से बरी कर दिया गया था।

केस की पृष्ठभूमि

अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतक स्वाति की शादी उसकी मौत से सात साल पहले अनिल से हुई थी। स्वाति का जन्म 1974 में हुआ था और विवाह 1985 में हुआ था, जिसका अर्थ है कि जब उसकी शादी हुई थी तब उसकी उम्र 11 वर्ष थी। जब से स्वाति की शादी हुई थी, तब से ही अनिल, उसके पिता, उसकी मां और उसका भाई उसे लगातार परेशान कर रहे थे।

अभियोजन पक्ष का यह भी कहना था कि आरोपी अनिल ने शिकायतकर्ता से कहा था कि वह अपनी बेटी स्वाति को अपने घर ले जाए क्योंकि वे नहीं चाहता था कि स्वाति उसके साथ रहे। हालांकि शिकायतकर्ता उसे वापस ले आया था परंतु एक तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के माध्यम से, अभियुक्तों को स्वाति के साथ अच्छा व्यवहार करने की सलाह दी गई और फिर आरोपी ने शिकायतकर्ता को आश्वासन दिया कि स्वाति के साथ अच्छा व्यवहार किया जाएगा और उसे वैवाहिक घर वापस ले गए, लेकिन स्वाति का उत्पीड़न जारी रहा। इसके बाद, अनिल और स्वाति वैवाहिक घर से बाहर चले गए और अलग रहने लगे और उस घर में स्वाति ने आत्महत्या कर ली।

23 सितंबर, 1995 को लगभग 5 बजे, स्वाति ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली और आत्महत्या के समय, स्वाति के ससुराल वाले उसके साथ नहीं रह रहे थे। अनिल ने स्वाति की मौत के बारे में पुलिस को सूचित किया और जब पुलिस ने घटनास्थल का दौरा किया, तो स्वाति छत के पंखे से एक रस्सी पर लटकी पाई गई। उसी दिन, मृतक के पिता ने शिकायत दर्ज की जिसके आधार पर केस दर्ज किया गया।

कोर्ट का फैसला

रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को देखने के बाद कोर्ट ने कुछ प्रारंभिक टिप्पणियां कीं और कहा कि,

''मृतक के पिता, जो इस मामले में शिकायतकर्ता भी हैं, ने अपने प्रतिपरीक्षण में कहा कि उसकी बेटी ने अपने ससुराल घर में युवावस्था प्राप्त की, लेकिन एक अन्य उदाहरण में, उन्होंने कहा शादी के दो साल बाद तक स्वाति पैतृक घर में रही थी, क्योंकि उसने युवावस्था प्राप्त नहीं की थी।

यह सिर्फ उन रहस्यों में से एक रहस्य है जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाया हूं। इस तरह के कई अन्य संदेहास्पद विषय या रहस्य हैं। किस तरह का उत्पीड़न, क्या वह शारीरिक था या मानसिक, कहीं भी इसको वर्णित नहीं किया गया। केवल सामान्य कथन हैं। उत्पीड़न की एक भी घटना के लिए कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं है।''

अभियोजन पक्ष ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 ए (एक विवाहित महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में अनुमान) पर भरोसा किया ताकि आत्महत्या के लिए दोषी करार दिया जा सके। इस प्रावधान के अनुसार, यदि विवाहित महिला अपनी शादी की तारीख से सात साल की अवधि के भीतर आत्महत्या कर लेती है और उसका पति या उसके पति का कोई रिश्तेदार उसे प्रताड़ित करता था, तो अदालत अन्य सभी परिस्थितियों के संबंध में विचार करते हुए यह अनुमान लगा सकती है कि इस आत्महत्या के लिए उसके पति या उसके पति के रिश्तेदार ने उसे उकसाया था।

न्यायमूर्ति श्रीराम ने कहा-

''शादी की सही तारीख कहीं भी नहीं दी गई है। यहां तक कि मृतक के पिता को भी यह याद नहीं था कि किस वर्ष उसका भाई नौकरी लगा था या अभियुक्त नंबर 3 की बेटी की कब उसके भाई से शादी की गई थी या किस वर्ष मृतक स्वाति का जन्म हुआ था। अचंभा करने बात यह है कि उसे यह भी याद नहीं था कि उसकी बेटी स्वाति की शादी 1985 में हुई थी या शादी किस तारीख को हुई थी। 23 सितम्बर 1995 को स्वाति की मौत हो गई। गवाह नंबर एक के साक्ष्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि निश्चित रूप से शादी के 7 साल से अधिक समय बाद मृतक ने आत्महत्या की थी। इसलिए, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113 ए के तहत इस मामले में अनुमान लागू नहीं किया जा सकता है।''

अंत में कोर्ट ने कहा कि-

''अभियोजन की तरफ से पेश सभी सबूतों पर विचार करने पर, मुझे लगता है कि किसी भी अभियुक्त को दोषी ठहराने के लिए कोई सामग्री या तथ्य नहीं है। कई गवाहों के साक्ष्य में बहुत सारी चूक और विरोधाभास हैं और कुछ गवाहों के बयान सुनी-सुनाई बातों पर आधारित हैं।

किसी भी वैवाहिक जीवन में साधारण या छोटी-मोटी उठा-पटक या झगड़े चलते रहते हैं। परंतु यह क्रूरता या उत्पीड़न के समान नहीं है। यह तय कानून है कि हर प्रकार का उत्पीड़न या हर प्रकार की क्रूरता, आईपीसी की धारा 498 ए या धारा 306 को आकर्षित नहीं करती।

यह स्थापित किया जाना चाहिए कि उत्पीड़न या क्रूरता पत्नी को आत्महत्या के लिए मजबूर करने या पति या ससुराल वालों की अवैध मांगों को पूरा करने के लिए की गई थी। गवाहों ने उत्पीड़न के सबूत केवल उस आधार पर दिए हैं जो मृतक स्वाति ने उन्हें बताया था

यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि आरोपी ने किसी भी तरह से स्वाति को आत्महत्या करने के उकसाया या ऐसा करने में उसकी सहायता की। इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने सही माना है कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकालने के लिए कोई सबूत नहीं है कि अभियुक्त ने किसी भी तरह से आत्महत्या के अपराध के लिए उकसाया था।''

राज्य की अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति श्रीराम ने कहा-

''अभियुक्त नंबर 1 की दलील अधिक संभावित प्रतीत होती है, जिसके अनुसार स्वाति बच्चों की शौकीन थी, लेकिन वह शादी के 7 से 8 साल बाद भी गर्भ धारण नहीं कर सकी थी, इसलिए वह दुखी थी।

इसी के साथ वह इस बात से भी नाखुश थी कि आरोपी अनिल अपने काम के कारण देर से घर लौटता था या बाहर खाना खाकर आता था। पति-पत्नी के बीच झगड़ा हुआ करता था। लेकिन बाहर खाना खाकर आना या झगड़ा करने को आईपीसी की धारा 498 ए के तहत उत्पीड़न या क्रूरता नहीं माना जा सकता है।''

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



Next Story