नाबालिग़ गवाहों को सिर्फ़ इसलिए अक्षम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे जज और वक़ील को नहीं जानते: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 Aug 2019 5:21 PM GMT

  • नाबालिग़ गवाहों को सिर्फ़ इसलिए अक्षम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे जज और वक़ील को नहीं जानते: सुप्रीम कोर्ट

    "उन लोगों ने निचली अदालत को बताया कि वे अदालत में यह बताने के लिए आए हैं कि उनकी माँ की मौत किन परिस्थितियों में हुई। मामले की सुनवाई कर रहे जज को केवल यह निर्धारित करना था कि गवाही देने के लिए ये बच्चे स्वस्थ सही मनःस्थिति में हैं...

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामलों में नाबालिग़ गवाहों को सिर्फ़ इसलिए अक्षम नहीं माना जा सकता क्योंकि वे उन लोगों को नहीं जानते जिनके सामने वे अपना बयान दे रहे हैं जैसे जज और वक़ील।

    हत्या से संबंधित रमेश बनाम राज्य मामले में दो गवाह - एक आरोपी के और एक अभियोजन के - नाबालिग़ थे। निचली अदालत ने इनकी गवाही इस आधार पर रिकार्ड नहीं की कि वे उन लोगों की पहचान नहीं कर पा रहे हैं कि उनके सामने कौन बैठा है – मतलब न जज को और। न ही वक़ील को। हालाँकि, बाल गवाहों ने कहा था कि वे लोग उन परिस्थितियों के बारे में बताने के लिए अदालत आए हैं जिसकी वजह से उनकी माँ की हत्या हुई। निचली अदालत ने अन्य गवाहियों के आधार पर आरोपी को आईपीसी की धारा 302 और 498A के तहत दोषी माना।

    हाईकोर्ट ने आरोपी की अपील पर पाया कि निचली अदालत ने शुरुआती प्रश्न पूछने के बाद जिस आधार पर बाल-गवाहों की गवाही रिकार्ड करने से मना कर दिया वह ग़लत था। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट के इस मंतव्य को सही बताया और कहा कि इसकी वजह से न्याय नहीं हो सका।

    "उन लोगों ने निचली अदालत को बताया कि वे अदालत में यह बताने के लिए आए हैं कि उनकी माँ की मौत किन परिस्थितियों में हुई। मामले की सुनवाई कर रहे जज को केवल यह निर्धारित करना था कि गवाही देने के लिए ये बच्चे स्वस्थ सही मनःस्थिति में हैं कि नहीं और वहाँ पर मौजूद होने के उद्देश्य को समझ रहे हैं कि नहीं। बाल-गवाहों का बयान रिकार्ड करने के पूर्व निचली अदालत को बच्चों की क्षमताओं को जानने के लिए उसे कुछ संगत सवाल करने चाहिए ताकि यह पता चल सके कि वे इनके ठीक जवाब दे रहे हैं कि नहीं। इससे अदालत को अपराध की घटना का ब्योरा देने को लेकर बच्चे की बौद्धिक क्षमता का पता चलेगा"।

    इससे पहले इस तरह के मुक़दमे का ज़िक्र करते हुए पीठ ने बाल-गवाहों के बयान रिकार्ड करने के बारे में बताया। अदालत ने कहा,

    "…जज को बाल-गवाह की क्षमताओं की जाँच करने की छूट है और इस बारे में कोई सटीक नियम नहीं निर्धारित किया जा सकता…बाल-गवाह की क्षमताओं का निर्धारण उससे सवाल पूछकर किया जा सकता है ताकि यह पता किया जा सके कि उसमें घटना को समझने की क्षमता है कि नहीं और अदालत को वह सच बता सके। आपराधिक प्रक्रिया में किसी भी उम्र का व्यक्ति गवाही देने के लिए सक्षम है अगर वह (i) गवाह के रूप में पूछे जाने वाले प्रश्नों को समझता है; और (ii) प्रश्न का ऐसे उत्तर देता है जो समझने योग्य है।

    कम उम्र के बच्चे को गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है अगर प्रश्नों को समझने की बौद्धिक क्षमता उसके पास है और वह इसका संगत उत्तर देता है। कोई बच्चा अक्षम उसी स्थिति में अक्षम होता है जब अदालत यह कहे कि वह सवाल नहीं समझ रहा/रही है और उसका ऐसा जवाब दे रहा/रही है जिसको समझना मुश्किल है। अगर बच्चा सवाल को समझता है और उसका संगत जवाब देता तो यह माना जा सकता है कि वह एक सक्षम गवाह है जिसकी गवाही ली जा सकती है"। इस अपील को ख़ारिज करते हुए पीठ ने इस सिलसिले में आत्मा राम बनाम राजस्थान राज्य का हवाला दिया।



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