हाथरस केस: सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज की
Brij Nandan
27 March 2023 1:21 PM IST
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाथरस केस (Hathras Case) में पीड़िता के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने और परिवार को हाथरस से दूसरी जगह शिफ्ट करने पर विचार करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश को चुनौती देने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका खारिज कर दी।
शुरुआत में ही, भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर आश्चर्य जाताया।
यूपी के अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने पीठ को बताया कि राज्य परिवार को स्थानांतरित करने के लिए तैयार है, लेकिन वे नोएडा या गाजियाबाद या दिल्ली चाहते हैं। एएजी ने कहा कि क्या बड़े विवाहित भाई को पीड़िता का "आश्रित" माना जा सकता है, ये कानून का सवाल है।
इस पर पीठ ने कहा कि वह मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए हस्तक्षेप करने की इच्छुक नहीं है।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने एएजी से कहा,
"ये परिवार को प्रदान की जाने वाली सुविधाएं हैं। हमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। राज्य को इन मामलों में नहीं आना चाहिए।"
बेंच ने आदेश में कहा,
"वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, हम संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।"
जब एएजी ने अनुरोध किया कि कानून के सवाल को खुला रखा जाए, तो सीजेआई ने कहा कि आदेश ने निर्दिष्ट किया है कि यह मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों में पारित किया गया है।
क्या था हाईकोर्ट का निर्देश?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि वह हाथरस सामूहिक बलात्कार पीड़िता के परिवार के सदस्यों में से एक को सरकार या सरकारी उपक्रम के तहत उसकी योग्यता के अनुरूप रोजगार देने पर विचार करे।
राज्य ने 26 जुलाई, 2022 को हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की।
हाईकोर्ट ने परिवार के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 द्वारा दिए गए अधिकारों को ध्यान में रखते हुए आदेश पारित किया। और उसके तहत बनाए गए नियमों का विश्लेषण करते हुए न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पीड़ित परिवार के पास पुनर्वास और नौकरी के उसके दावे का कानूनी आधार है। राज्य का ये तर्क कि ऐसे मामले में रोजगार का प्रावधान अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करेगा, बिना किसी संवैधानिक और कानूनी आधार के खारिज कर दिया गया।
उच्च न्यायालय ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि गांव में अधिकांश आबादी उच्च जातियों की है और ये कहा गया है कि परिवार हमेशा अन्य ग्रामीणों द्वारा टारगेट होता है और सीआरपीएफ की सुरक्षा में होने के बाद भी जब भी परिवार के सदस्य बाहर जाते हैं, उन्हें गांव में गाली-गलौज और आपत्तिजनक टिप्पणियों का शिकार होना पड़ता है। इस पृष्ठभूमि में, न्यायालय ने राज्य को परिवार को राज्य के भीतर कहीं और स्थानांतरित करने का निर्देश दिया।
कथित तौर पर परिवार की सहमति के बिना आधी रात में पुलिस द्वारा पीड़िता के शव का अंतिम संस्कार करने का वीडिया वायरल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी, जिसमें राज्य पुलिस की ओर से कथित चूक के कारण अदालत की निगरानी में जांच की मांग की गई थी।
जनहित याचिका पर प्रतिक्रिया देते हुए, यूपी सरकार ने बाद में अदालत को बताया कि वह सीबीआई जांच के लिए सहमत है और मामला बाद में केंद्रीय एजेंसी को सौंप दिया गया था।
तीन हफ्ते पहले, ट्रायल कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया, गैंगरेप से इनकार किया और चार में से तीन आरोपियों को बरी कर दिया। संदीप नाम के एक आरोपी को अदालत ने भारतीय दंड संहिता (धारा 304) के तहत गैर-इरादतन हत्या के अपराधों और एससी-एसटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया था।
केस टाइटल: स्टेट ऑफ यूपी बनाम आर पीड़िता के पिता, डायरी नंबर 6402-2023