मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध : इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स ने चीन के खिलाफ यूएनएचआरसी में की शिकायत, COVID-19 के लिए क्षतिपूर्ति मांगी

LiveLaw News Network

4 April 2020 2:15 AM GMT

  • मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध : इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स ने चीन के खिलाफ यूएनएचआरसी में की शिकायत, COVID-19 के लिए क्षतिपूर्ति मांगी

    Grave Offences Against Humanity": International Council of Jurists Move UNHRC Against China Seeking COVID-19 Reparations

    इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स और ऑल इंडिया बार एसोसिएशन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में चीन के खिलाफ शिकायत दायर की है, जिसमें कहा गया है कि COVID-19 महामारी के रूप में पूरे विश्व में ''मानवता के खिलाफ गंभीर अपराध'' किया गया है।

    यह शिकायत इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ ज्यूरिस्ट्स के अध्यक्ष और ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ अदिश सी अग्रवाल ने दायर की है। जो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (चीन की आधिकारिक सेना) और वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के खिलाफ की गई है,जिसमें आरोप लगाया गया है कि इन्होंने दुनिया के खिलाफ ''एक जैविक युद्ध की साजिश'' रची है।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि COVID-19 महामारी ''चीनी सरकार की साजिश थी। जिसका उद्देश्य विश्व की महाशक्ति के रूप में खुद को उभारना और जैविक युद्ध के माध्यम से अन्य देशों को कमजोर करना था।''

    शिकायत में कहा गया है कि

    ''चीन की सरकार ने नोवल कोरोनावायरस के निष्पादन और प्रसार की सावधानीपूर्वक योजना बनाई है। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है किस तरीके से चीन ने पूरी दुनिया में वायरस के प्रसार के लिए उत्सुक तरीके से स्थिति का ध्यान रखा है। जैसा कि पहले भी कहा गया है कि यह बात अब भी रहस्य बनी हुई है कि चीन के सभी प्रांतों में वायरस कैसे नहीं फैला है,परंतु एक ही समय में दुनिया के सभी देशों में फैल गया है।''

    यह भी आरोप लगाया है कि COVID-19 महामारी से निपटने में चीनी सरकार और उनके अधिकारियों ने घोर लापरवाही और अक्षमता या अयोग्यता बरती है। जिसके लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए गए विभिन्न चार्टर्स और दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया गया है। लाखों लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया गया है। वहीं दुनिया भर में जीवन और व्यवसाय को पूरा तरीह से ठहरा या रोक दिया है।

    इस दृष्टि से यह प्रस्तुत किया गया है कि

    1.चीन ने मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 25 (1) का उल्लंघन किया है जो मानव के स्वास्थ्य और कल्याण के अधिकार को उजागर करता है।

    इस संबंध में चीनी सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य थी कि वह लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप ना करें। हालांकि, घातक वायरस के बारे में जानकारी होने के बावजूद चीनी सरकार ने जानबूझकर जानकारी को छुपा लिया या रोक दिया, जिससे वैश्विक महामारी फैल गई।

    2. चीन ने आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय करार के अनुच्छेद 12 का भी उल्लंघन किया है जो इस बात पर जोर देता है कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्य मानक का आनंद लेना सभी का अधिकार है।

    3. चीन ने अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों के अनुच्छेद 6, 7, 9 का उल्लंघन किया है जो अप्रत्याशित या असामान्य सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाओं के दौरान सूचना-साझाकरण के दायित्वों का उल्लेख करते हैं।

    इस संबंध में यह माना जा रहा है कि चीनी सरकार ने COVID-19 के संभावित प्रकोप के बारे में शीघ्र स्वास्थ्य चेतावनी जारी नहीं की थी। जबकि उनको पता था कि यह स्पष्ट और बड़ा खतरा है। उन्होंने अपने प्रशासनिक क्षेत्र में आम जनता व स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ-साथ डब्ल्यूएचओ से भी इसकी जानकारी छुपाई । जिसके परिणामस्वरूप दुनिया भर में लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावित किया गया है।

    इसके मद्देनजर, शिकायतकर्ता ने रिसपांसबिलिटी आॅफ स्टेट फाॅर इंटरनेशनल रांगफुल एक्ट, 2001 ( Responsibility Of States ForInternationally Wrongful Acts, 2001) के तहत चीन की कानूनी देनदारी बनाई है।

    यह भी दलील दी गई है कि यदि कोई देश अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, तो वह उस पूरी अवधि में उस घटना को रोकने के लिए उत्तरदायी माना जाता है, जितनी अवधि के लिए यह घटना जारी रहती है।

    इस प्रकार, डॉ. अग्रवाल ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से आग्रह किया है कि वह चीन सरकार को निर्देश दें कि वह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और उसके सदस्य राज्यों और विशेष रूप से भारत को पर्याप्त रूप से क्षतिपूर्ति प्रदान करें। क्योंकि उन्होंने पूरी दुनिया में मानव जाति के बड़े पैमाने पर विनाश में सक्षम जैविक हथियार विकसित किया है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का सम्मान करने के लिए दिखाई निष्क्रियता और बरती गई लापरवाही के कारण इन राज्यों को होने वाले गंभीर शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक नुकसान के लिए यह क्षतिपूर्ति दी जानी जरूरी है।

    न्यायविदों की अंतर्राष्ट्रीय परिषद या इंटरनेशनल काउंसिफ ऑफ ज्यूरिस्ट्स क्या है

    आईसीजे का मुख्यालय लंदन में है,जो अनुसंधान में शामिल है। जो मानव अधिकारों, संवैधानिक कर्तव्यों और अन्य मामलों पर अंतरराष्ट्रीय और घरेलू महत्व वाले विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर सम्मेलन और सेमिनार आयोजित करता रहती है।



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